अपना – अपना भाग्य सार (Summary)


” अपना – अपना भाग्य ” कहानी श्रीजैनेंद्र कुमार द्वारा लिखी गई है | इस कहानी में एक ऐसे निर्धन असहाय तथा शोषित पहाड़ी बालक का चित्रांकन किया गया है, जो परिवार की गरीबी से तंग आकर भागकर नैनीताल आ जाता है , परंतु यहाँ आकर भी उसके दुखों का अंत नहीं होता |लेखक अपने मित्र के नैनीताल में संध्या के समय बहुत देर तक निरुद्देश्य घूमने के बाद एक बेंच पर बैठे थे कि दूर कोहरे के बीच से उन्हें एक काली-सी मूर्ति आती प्रतीत होती है। पास आने पर उन्हें एक लड़का दिखाई देता है नंगें पैर, नंगें सिर, एक मैली सी कमीज लटकाए अपने सिर के बड़े-बड़े बालों को खुजाता चला आ रहा था।उसकी चाल से कुछ भी समझ पाना लेखक को असंभव सा लग रहा था क्योंकि उसके पैर सीधे नहीं पड़ रहे थे। उस बालक का रंग गोरा था परंतु मैल खाने से काला पड़ गया था, ऑंखें अच्छी, बड़ी पर सूनी थी माथा ऐसा था जैसे अभी से झुरियों आ गईं हो दोनों को आश्चर्य होता है कि इतनी ठंड में यह बालक बाहर क्या कर रहा है। वे उससे तरह-तरह के प्रश्न करते हैं। बालक अपनी घर की गरीबी और भुखमरी से तंग आकर अपने एक साथी के साथ यहाँ भाग आया था। यहाँ आने पर उसे और उसके साथी को एक दुकान में काम के बदले में एक रूपया और झूठा खाना मिलता था। लेखक के उसके साथी के विषय में पूछने पर वह बताता है कि मालिक के मारने पर उसका साथी मर गया। उस दस वर्षीय बच्चे का मौत के विषय में इतना सहज कथन लेखक को सोचने पर मजबूर कर देता है कि जिस उम्र में बच्चों को शरारतों और खेलने-खाने से फुरसत नहीं होती उस उम्र में इस बालक की पहचान मौत से हो गई थी। लेखक के एक वकील मित्र थे, जिन्हें अपने होटल के लिए एक नौकर की आवश्यकता थी इसलिए लेखक उस बच्चे को वकील साहब के पास ले गए।वकील उस बच्चे को नौकर इसलिए नहीं रखना चाहते थे क्योंकि वे और लेखक दोनों ही उस बच्चे के बारे में कुछ जानते नहीं थे। साथ ही वकील साहब को यह लगता था कि पहाड़ी बच्चे बड़े शैतान और अवगुणों से भरे होते हैं। यदि उन्होंने ने किसी ऐरे गैरे को नौकर रख लिया और वह अगले दिन वह चीजों को लेकर चंपत हो गया तो। इस तरह भविष्य में चोरी की आशंका के कारण वकील साहब ने उस बच्चे को नौकरी पर नहीं रखा। बालक कुछ देर वहाँ ठहरा और फिर वहाँ से चला गया। लेखक और उसके मित्र भी अपने-अपने कमरों में चल पड़ते हैं। दूसरे दिन मोटर में बैठते हुए उन्हें यह समाचार मिलता है कि पिछली रात एक पहाड़ी बालक की सड़क के किनारे पेड़ के नीचे ठिठुरकर मृत्यु हो गई।ऐसा लग रहा था कि मनुष्य ने न सही प्रकृति ने शव के लिए सफ़ेद और ठंडे कफ़न का प्रबंध कर दिया था। लेखन ने लड़के के बारे में विचार किया कि अपना – अपना भाग्य और यह सोचकर संतोष कर लिया |

कहानी का उद्देश्य

प्रस्तुत कहानी के माध्यम से लेखक समाज के लोगों के बीच जो असमानता है उसे दर्शाना चाहता है | एक तरफ तो धनी वर्ग है जो अपना जीवन यापन अच्छी तरह व्यतीत करते है | दूसरी तरफ अत्यधिक गरीब वर्ग है जो छोटे-छोटे काम करके जैसे – तैसे अपना गुजारा करते हैं | इन गरीब लोगों के प्रति धनवान लोगों की कैसी मनोवृति होती है इसका चित्रण करना ही इस कहानी का उद्देश्य है साथ ही लेखक क्या चाहता है कि इस तरह की गरीब लोगों के प्रति संपन्न लोगो को सहानुभूति रखनी चाहिए तथा यथासंभव उनकी मदद करनी चाहिए |

शीर्षक की सार्थकता

कहानी का शीर्षक “अपना – अपना भाग्य ” कथानक के अनुकूल और सार्थक है | समाज के उपेक्षित एवं निर्धन वर्ग की स्थिति के लिए संपन्न वर्ग उनके भाग्य को उत्तरदायी ठहराता हैं और अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है | समाज के संपन्न वर्ग की मानसिकता इस कहानी में दृष्टिगोचर होती है | ये व्यक्ति स्वार्थी निर्दयी तथा संवेदनहीन है | समाज के दीन -हीन उपेक्षित वर्ग से इन्हें कोई मतलब नहीं होता है , जैसा कि उस पहाड़ी बालक की मौत के लिए उसके भाग्य को दोषी बताया गया | अतः कह सकते हैं कि शीर्षक उचित एवं सार्थक है कहानी के अंत में लेखक एवं मित्र बालक की मौत देखकर कह उठते हैं अपना – अपना भाग्य |

चरित्र – चित्रण

पहाड़ी बालक

कहानी का मुख्य पात्र दस वर्ष का पहाड़ी बालक है | नैनीताल से पन्द्रह कोस दूर के एक गाँव में रहने वाला है जो अत्यन्त स्वाभिमानी एवं मेहनती है। उसका भाग्य उसका साथ नहीं देता है। भूख से पीड़ित हो वह नैनीताल आया है। एक जगह नौकरी करके जूठा खाना खाने के लिए गरीबी ने उसे मजबूर कर दिया है। वह नौकरी भी छुट गई। बालक निकट वर्तमान के विषय में सोचने लगा। भूखा होने पर भी उसने किसी से खाना नहीं माँगा। उसे काम की ज़रूरत थी। पर गरीब की ज़िम्मेदारी कोई नहीं लेता। लेखक के मित्र के अनुसार वह बेईमान नहीं हो सकता पर वे भी उसे कोहरे में भाग्य के हाथों मरने के लिए छोड़ देते हैं। इस बालक का सहज, निश्छल और निरीह व्यक्तित्व सहृदय पाठक की सारी सहानुभूति समेटकर उसके भाव जगत पर छा जाता है और मन में करुणा उत्पन्न कर देता है।

कहानी के मुख्य बिंदु

  • लेखक अपने मित्र के साथ नैनीताल की किसी सड़क के किनारे बेंच पर बैठा था।
  • नैनीताल की संध्या धीरे-धीरे उतर रही थी।
  • लेखक पंद्रह मिनट बाद-चलना चाहता था, पर उसका मित्र वहाँ कुछ देर और बैठना चाहता था।
  • तभी उन्हें कुछ ही हाथ की दूरी पर एक लड़का आता दिखाई दिया।
  • लड़के के बाल बड़े-बड़े थे जिन्हें वह खुजला रहा था।
  • वह नंगे सिर और नंगे पैर था और एक मैली-सी कमीज़ पहने था।
  • वह लगभग दस-बारह बरस का था।
  • लेखक के मित्र ने उससे बात की।
  • लड़के ने बताया कि वह एक दुकान पर सोया था, पर आज वहाँ से नौकरी से निकाल दिया गया है।
  • उसके माँ-बाप पंद्रह कोस दूर गाँव में हैं, जहाँ से वह भागकर आया है। उसके माँ-बाप भूखे रहते थे।
  • उसका एक साथी भी था जिसके साहब ने उसे मारा और वह मर गया।
  • लेखक और उसका मित्र लड़के को अपने एक वकील दोस्त के होटल ले गए, क्योंकि वकील को एक नौकर की जरूरत थी।
  • वकील साहब ने लड़के को नौकरी पर नहीं रखा, क्योंकि उन्हें इस पर विश्वास नहीं था।
  • बालक एक ओर बढ़कर कुहरे में गायब हो गया।
  • लेखक के मित्र ने इतनी भयानक शीत में लड़के के पास बहुत कम कपड़े होने पर सहानुभूति एवं चिंता प्रकट की।
  • ‘यह संसार है यार’- लेखक के मित्र ने उसे लड़के की चिंता छोड़ने और बिस्तर में गरम होने की सलाह दी।
  • अगले दिन वह लड़का लेखक और उसके मित्र के ‘होटल डि पब’ में निश्चित समय पर नहीं आया।
  • लेखक और उसका मित्र नैनीताल की सैर खत्म करके घर चलने के लिए मोटर पर सवार हुए।
  • मोटर पर सवार होते ही उन्हें पिछली रात एक पहाड़ी लड़के की ठंड से ठिठुरने के कारण मौत का समाचार मिला।
  • बतलाने वालों ने बताया कि उस बच्चे के मुँह, छाती, मुट्ठियों और पैरों पर बर्फ़ की हलकी-सी चादर चिपक गई थी।

अवतरण संबंधित प्रश्न – उत्तर


1- ‘ रुई के रेशे से ,भाग से, बादल हमारे सिरों को छूकर बेरोक घूम रहे थे |’


प्रश्न – लेखक और उसका मित्र कहाँ बैठे थे ?

उत्तर – लेखक और उसका मित्र नैनीताल की एक सड़क के किनारे बेंच पर बैठे थे |

प्रश्न – बादलों को देखकर लेखक को कैसा लगा ?

उत्तर – बादलों को देखकर लेखक को लगा कि हल्के प्रकाश और अँधियारी से रंगकर किसी नीले, कभी सफ़ेद और कभी जरा लाल दिखने वाले बादल उनके साथ खेलना चाह रहे हैं |

प्रश्न – लेखक को कोहरे की सफेदी में क्या दिखाई पड़ा ?

उत्तर – लेखक को कोहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ दूर से एक काली सी मूर्ति अपनी और आती दिखाई दी |

प्रश्न – लडके की क्या विशेषताएं थी ?

उत्तर – लड़का सिर के बड़े -बड़े बाल खुजलाता चला आ रहा था | वह नंगे पैर, नंगे सिर था तथा एक मैली-सी कमीज पहने था | उसके पैर न जाने कहाँ पड़ रहे थे और वह न जाने कहाँ जा रहा था और कहाँ जाना चाहता था |