1. चिर सजग आँखें उनींदी, आज कैसा व्यस्त बाना।
जाग तुझको दूर जाना।।
अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कंप हो ले, या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले, आज पी आलोक की डोले तिमिर की घोर छाया, आज या विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफ़ान बोले। पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना । जाग तुझको दूर जाना।
व्याख्या – कवयित्री पथिक को सदैव आगे बढ़ने का संदेश देती हुई कहती है कि हे पथिक! हमेशा से तेरी सजग व सचेत आँखे आज नींद व आलस्य से भरी हुई क्यों दिखाई दे रही है। आज तू इतना व्यस्त सा क्यों लग रहा है अभी तो तुझे बहुत लम्बा रास्ता तय करना है। स्थिर रहने वालों हिमालय पर्वत डोल उठें या आलस्य से भरे हुए आकाश में चाहे प्रलय आ जाए । चाहे आज चारों तरफ फैलने वाला प्रकाश ही अंधेरे में क्यों न छा जाए । चाहे ऐसा समय आ जाए कि आकाश में चमकने वाली बिजली ही एक कठोर तूफान का रूप धारण कर ले परन्तु इन सब मुश्किलों और बाधाओं के आने पर भी तुझे अपने कर्त्तव्य को नहीं भूलना है। तुझे अपने पथ पर अपने निशान छोड़ कर आगे ही आगे बढ़ते जाना है। हे पथिक तू जाग जा। तू जाग और अपने मंजिल की – तरफ बढ़।
2. बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले? पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रँगीले? विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन, क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले? तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना। जाग तुझको दूर जाना।।
व्याख्या – कवयित्री महादेवी वर्मा कहती है पथिक तू अपने रास्ते पर चलते हुए बहुत सारे सुखों व दुखों को अनुभव करेगा लेकिन तुझे उन बंधनों में बंधने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम्हारे आस-पास के लोगों के मोह-माया के बंधन तुझे बाँधने की कोशिश जरूर करेंगे लेकिन तुझे उनमें बंधना नहीं है। क्या तुम्हें तुम्हारे रास्ते में दिखाई देने वाली आकर्षक चीजें अपनी तरफ खींच लेंगी और तुम बंध जाओगे? लेकिन संसार का दुख और रोना तुझे तेरे भँवरे की मधुर गान को भी भुला देगा अर्थात् जब तुम अपने रास्ते पर बढ़ोगे तो कोई भी बाधा तुझे अपने बंधन में नहीं बाँध पाएगी। तुम्हारे रास्ते में ओस के गीले कणों के जैसे पल भी आएँगे क्या तुझे ये ओस के गीले कण – बाँधने की कोशिश करेंगे और तुम उनके अहसास में बँध जाओगे । लेकिन तू । परछाई को किसी भी बंधन में बंधने मत देना बल्कि आस-पास के सुख-दुख का ध्यान न करके सदैव आगे बढ़ते जाना क्योंकि अभी तुम्हारी मंजिल बहुत दूर है और तुझे बहुत चलना है। इसलिए तू अपनी मंजिल की तरफ लगातार बढ़ते जा।
3. वज्र का उर छोटे अश्रुकण में धो गलाया?
दे किसे जीवन-सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया? सो गई आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या? विश्व का अभिशाप क्या चिर नींद बनकर पास आया? अमरता-सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना ? जाग तुझको दूर जाना।।
व्याख्या – कवियत्री पथिक को पूछती है कि क्या तुमने अपना वज्र जैसा कठोर मन एक छोटे से आँसू के कण में धोकर गला दिया है जो तू थक-हार कर बैठ गया है।
तू किसे अपना जीवन रूपी अमृत देकर दो घूँट मदिरा माँग कर ले आया है। अर्थात् तूनेअपने अमृत स्वरूप जीवन को मदिरा या अन्य प्रकार के नशों में क्यों धकेल दिया है।
तुम्हारे मन में जो विचारों की आँधी थी या तुम्हारे मन में आगे बढ़ने का जो साहस था वो क्या चंदन की सुगन्ध में डूब कर सो गया है? क्या तुम्हें हमेशा सोए रहने का अभिशाप मिल गया है जो तू थक-हार कर बैठ गया है। क्या तुझे अपने कर्त्तव्य भूल गया है? तू तो देवताओं की सन्तान है। तुझे अमरता का वरदान है तू जो चाहे कर सकता है। तुम्हारे अन्दर इतना साहस है कि तू सब कुछ प्राप्त कर सकता है फिर क्यों तू आलस से भर कर बैठ गया है। तू अपने अन्दर की शक्ति को जगा और आगे बढ़। अभी तो तुझे बड़ा लम्बा रास्ता तय करके अपनी मंजिल तक पहुँचना है।
4. कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी; हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका, राख क्षणिक पतंक की है अमर दीपक की निशानी, है तुझे अंगार शैय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना। जाग तुझको दूर जाना।।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि हे मनुष्य ! तू मत बोल कि आज तू अपने अतित की जलती हुई कहानी को भूल गया है। अगर तेरे हृदय में आग है तभी तेरी आँखों में पानी आ पाएगा अगर तू साहस से लड़ेगा तो तेरी हार हो या जीत हो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। तेरा कर्त्तव्य केवल लड़ना है। लड़ कर तू अगर हार भी जाएगा तब भी तू विजयी ही बनेगा क्योंकि तू तेरा साहस तेरे गले का हार बनेगा। जिस प्रकार दीपक के पास जल गया पंतगा मृत्यु को प्राप्त कर लेता है फिर भी दीपक जलता रहता है उस पतंगे साथ वह अपना साहस कभी नहीं खोता। इसी तरह तुझे अपने साहस को सदैव जिन्दा रखने की आवश्यकता है। आज तुझे अंगारों की शय्या पर कोमल कलियाँ बिछाने की आवश्यकता है अर्थात् तुझे अपने क्रोध पर काबू पाकर सदैव आगे बढ़ते जाना है।
अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर
1.”अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कंप हो ले, या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले; आज पी आलोक की डोले तिमिर की घोर छाया, आज या विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफ़ान बोले ! पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना। है जाग तुझको दूर जाना।।”
(i) कवि और कविता का नाम बताते हुए लिखिए कि यह कविता किस कोटि की कविता है ?
उत्तर – कवयित्री का नाम महादेवी वर्मा और कविता का नाम जाग तुझको दूर जाना है। यह कविता एक प्रेरणा गीत की कोटि में भी रखा जा सकता है।
(ii) कविता में किसे संबोधित किया गया है ?
उत्तर- कविता में मनुष्य रूपी पथिक को संबोधित किया गया है। कवयित्री चाहती है कि मनुष्य हर प्रकार की परिस्थिति में निरंतर आगे बढ़ता रहे। मार्ग में आने वाली बाधाओं से डरना व्यर्थ है। संघर्ष ही जीवन है और संघर्ष करते रहना ही उसकी सार्थकता है।
(iii) किस प्रकार के चिह्न छोड़ने की प्रेरणा दी जा रही है ?
उत्तर – कवयित्री चाहती है कि मनुष्य निरंतर आगे बढ़ते हुए विनाश या विध्वंस के बीच नवनिर्माण के चिह्न छोड़ता जाए। यह तभी संभव है, जब वह विपरीत परिस्थितियों से कभी न घबराए।
(iv) इस कविता का आध्यात्मिक पक्ष संकेतित करें।
उत्तर – महादेवी वर्मा की अधिकांश कविताओं का लौकिक पक्ष भी अध्यात्म की ओर संकेत करता है। इसमें उन्होंने पथिक अर्थात् जीवात्मा के अपने अज्ञात प्रियतम की ओर निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। कवयित्री का विचार है कि जीवन पथ पर बढ़ना और अध्यात्म की ओर चलना संघर्ष की ओर संकेत देता है।
2.कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी, आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी; हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका, राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी, है तुझे अंगार शैय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना। जाग तुझको दूर जाना।।
(i) प्रस्तुत पद्यांश में किसे संबोधित किया गया है?
उत्तर – प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री महादेवी वर्मा ने मनुष्य को निरंतर संघर्ष के लिए तैयार रहने की प्रेरणा दी है। कवयित्री पथिक के साथ-साथ मनुष्य की जीवात्मा को भी संबोधित कर रही है।
(ii) जय की पताका कौन बनेगी और कैसे ?
उत्तर – कवयित्री प्रेरणा गीत द्वारा जहाँ एक ओर पथिक को संबोधित कर रही हैं वहीं दूसरी ओर जीवात्मा को भी प्रेरित करती दिखाई देती हैं। उनका विचार है कि मनुष्य को अपनी हार से कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए। हार ही हमारे लिए जीत का मार्ग खोलती है। असफलता ही सफलता की सीढ़ी बनती है
(iii) दीपक और पतंग से क्या आशय है ?
उत्तर – पतंगा अपने प्रेम के कारण दीपक की लौ पर स्वयं को बलिदान कर देता है । पतंगे की राख भी अमर दीपक का भाग बनकर अमरत्व प्राप्त कर लेती है।
(iv) कविता का मूल संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – प्रस्तुत कविता का मूल भाव प्रेरणा देना है। इसमें कवयित्री महादेवी वर्मा ने मनुष्य को जीवनमें निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया है। हमारे जीवन में अनेक बाधाएँ आती हैं। यह जीवन उनसे संघर्ष करके ही सार्थकता पाता है। इसी प्रकार इस गीत का आध्यात्मिक पक्ष भी है जिसमें जीवात्मा को ईश्वर की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी गई है।