दु:ख का अधिकार सार (Summary)
दु:ख का अधिकार कहानी यशपाल जी द्वारा लिखा गया है | इस कहानी के माध्यम से लेखक देश या समाज में फैले अंधविश्वासों और ऊँच-नीच के भेद भाव को बताते है | इस कहानी का प्रमुख पात्र तेइस साल का युवक है | जिसका नाम भगवाना है | उसके पास डेढ़ बीघा जमीन है और वह उस जमीन में सब्जियाँ और खरबूजे उगाकर अपने परिवार का भरण -पोषण करता है | वह जब तक जीवित था अपने परिवार के सभी सदस्यों को ( माँ,पत्नी और बच्चे ) कमाकर खिलाता था | एक दिन भगवाना अपने खरबूजे के खेत में खरबूजे तोड़ रहा था अचानक उसका पैर साँप पर पड़ गया और साँप ने उसे डस लिया | माँ ने अपने बेटे को बचाने के लिए झाड़-फूंक,ओझा,नागदेव की पूजा कराई लेकिन भगवाना नहीं बचा उसकी अंतिम क्रिया कर्म के लिए घर में बचा हुआ सारा पैसा और सारा अनाज लग गया | दूसरे दिन माँ ने सुबह अपने पोते को खरबूजे खिलाये और बुखार में तपती हुई बहू के लिए भोजन की व्यवस्था करने के लिए बाजार में खरबूजे बेचने आई , ताकि उन्हें कुछ खिला सके परंतु सब उसकी निंदा कर रहे थे | इसलिए वह रो रही थी लेखक ने उसके दु:ख की तुलना अपने पड़ोस के एक संभ्रांत महिला के दु:ख से करने लगा जिस के दु:ख से शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र – शोक से द्रवित हो उठे थे | लेखक सोचता चला जा रहा था कि ग़म मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और दुखी होने का भी एक अधिकार होता है |