दो कलाकार (Summary)
मन्नू भंडारी द्वारा रचित ‘दो कलाकार’ कहानी कला के वास्तविक अर्थ की ओर संकेत करती है कि कलाकार का कार्य समाज के रंगों को चित्रित करना ही नहीं वरन् दीन-दुखियों के जीवन में खुशियों के रंग भरना भी है।यह कहानी ऐसी दो लड़कियों की है जिनका कार्य क्षेत्र व सोच अलग-अलग होते हुए भी उनमें घनिष्ठ मित्रता है। अरुणा व चित्रा हॉस्टल में साथ रहकर एक ही कॉलेज में पढ़ती हैं। चित्रा एक चित्रकार है वह हर घड़ी हर जगह अपने चित्रों के लिए मॉडल खोजा करती है। अरुणा बस्ती के निर्धन बच्चों को पढ़ाने, बाढ़ पीडितों की मदद करने जैसे समाज सेवा के कार्यों को अपने जीवन का ध्येय बना चुकी है।एक दिन चित्रा के पिता का पत्र आता है वह अमीर पिता की इकलौती संतान है। उसके पिता चित्रा को कोर्स समाप्त कर विदेश जाने की अनुमति दे देते हैं।तेज मूसलाधार बारिश के कारण बाढ़ आ जाती है। बाढ़ पीड़ितों की दशा बिगड़ने की बात जान चित्रा उनके लिए चंदा इकट्ठा करती है और स्वयं सेवकों के दल के साथ बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए जाती है। जब वह पंद्रह दिन बाद लौटती है तो उसे चित्रा के एक सप्ताह बाद विदेश जाने की बात पता चलती है। छः साल साथ रहने के बाद चित्रा से अलग होने की बात सुन अरुणा उदास हो जाती है।जिस दिन चित्रा को जाना था चित्रा सबसे मिलने के बाद गुरुजी का आशीर्वाद लेने गई लेकिन काफी देर तक नहीं लौटी। चित्रा की गाड़ी का समय हो रहा था। इसलिए अरुणा को चिंता होने लगी। तभी चित्रा आ गई उसने देरी होने का कारण बताते हुए कहा कि रास्ते में एक पेड़ के नीचे एक भिखारिन के मृत शरीर से लिपटकर उसके दो बच्चे रो रहे थे। उस दृश्य का एक स्केच बनाने लगी थी। यह सुन अरुणा कहीं चली गई। चित्रा को स्टेशन छोड़ने भी नहीं आई। विदेश में चित्रा मेहनत व लगन से शोहरत की ऊँचाइयों पर पहुँच गई। अनेक प्रतियोगिताओं में मरी भिखारिन के ‘अनाथ’ शीर्षक वाले चित्र पर उसके चित्रों को एक प्रदर्शनी लगी जिसके उद्घाटन के लिए आई चित्रा की भेंट अरुणा से हुई। अरुणा ने अपने दोनों बच्चों व पति से उसे मिलवाया। चित्रा के जोर देने पर अरुणा ने गरीब भिखारिन के दोनों अनाथ बच्चों को गोद लेने की बात बताई जिसे सुन चित्रा अरुणा की प्रशंसा में शब्दहीन हो गई।x
शीर्षक की सार्थकता
कहानी का शीर्षक ‘दो कलाकार’ कहानी के कथानक के अनुरूप ही है। आदि से अंत तक पूरा घटनाक्रम अरुणा एवं चित्रा के चरित्र के आस-पास ही घूमता है। दोनों की रुचियों को, उनके लक्ष्य को कहानी में स्पष्ट किया गया है, एक पात्र कला के प्रति समर्पित है, तो दूसरा दीन-दुःखियों के कल्याण के प्रति। कहानी में कहानीकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जो कला जीवन के कल्याण के लिए हो वही श्रेष्ठ है, इस प्रकार यह शीर्षक उचित है।
कहानी का उद्देश्य
लेखक द्वारा प्रस्तुत इस कहानी में कलाकर का चित्रण यह दर्शाता है कि कलाकार वह नहीं है जोकि केवल चित्रकार, संगीतकार या किसी कला से जुड़ा हुआ व्यक्ति ही हो। किसी की मदद करके उसके जीवन को संवारना भी एक कला है। अरूणा ने जिस तरह दोनों बच्चों की मदद कर उन्हें नया जीवन दिया उससे पता चलता है कि ऐसे महान लोग भी सच्चे कलाकार ही हैं।
चरित्र चित्रण
अरुणा – अरुणा एक समाज सेविका है, जो चित्रा के साथ कॉलेज में पढ़ती है और हॉस्टल के एक ही कमरे में दोनों रहती हैं। दोनों छह साल से साथ में रह रही हैं। अरुणा अपनी पढ़ाई से समय निकालकर बस्ती के चौकीदारों, नौकरों और चपरासियों के बच्चों को पढ़ाती है। अरुणा भावुक व संवेदनशील है। बाढ़ आने पर, वह बाढ़ पीड़ितों के लिए चंदा इकट्ठा करती है। स्वयंसेवकों के दल के साथ प्रिंसिपल को अनुमति लेकर बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए जाती है। जब चित्रा भिखारिन की मृत्यु और उसके बच्चों के बारे में बताती है, तो वह उनको गोद ले लेती है। उसकी सगाई मनोज नामक युवक से हो गई है।
चित्रा – चित्रा धनी पिता की इकलौती बिटिया है। वह एक चित्रकार है और उसके जीवन का उद्देश्य है कि वह एक विश्व प्रसिद्ध चित्रकार बने। वह अरुणा की अच्छी मित्र है, पर उसे अरुणा की समाज सेवा समझ नहीं आती। उसे हर घटना में अपने चित्र के लिए आइडिया ढूँढना होता है। अगर किसी घटना में उसके चित्रों के लिए आइडिया नहीं तो उसकी नज़र में उसका कोई महत्त्व नहीं। उसे भावहीन, संवेदनाहीन भी कहा जा सकता है। एक भिखारिन की मृत्यु पर उसने चित्र बनाया, पर उसके बच्चों की सहायता नहीं की। कहानी के अंत में वह विश्व प्रसिद्ध चित्रकार तो बन गई, पर अरुणा के आगे वह नतमस्तक हो गई, क्योंकि उसे सच्ची कला की परख हो गई थी।
मुख्य बिंदु
- अरुणा और चित्रा दो सहेलियाँ हैं जो छात्रावास में एक साथ रहती हैं तथा दोनों में घनिष्ठ मित्रता है।
- चित्रा दिन-रात रंगों और तूलिका में डूबी रहती है। वह एक प्रसिद्ध चित्रकार बनना चाहती है।
- अरुणा समाज सेवा में व्यस्त रहती है। वह गरीब बच्चों को पढ़ाती है महिलाओं को लायक बनाती है और बीमारों, दीन-दुखियों की सेवा में व्यस्त रहती है। कुछ सिखाकर कमाने
- अरुणा बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में पहुँचकर बाढ़ पीड़ितों की सहायता में जुट जाती है तथा चित्रा बाढ़ग्रस्त दृश्य को अपने चित्रों में उतार लेती है।
- चित्रा के अनुसार अरुणा व्यर्थ ही अपनी जिंदगी समाज सेवा में गुज़ार रही है।
- चित्रा अपने पिता की इकलौती संतान है। वह विदेश जाकर अपनी कला को बढ़ाना चाहती है।
- आखिरकार चित्रा के प्रस्थान का दिन आ जाता है। उसे पाँच बजे की गाड़ी से जाना था पर वह तीन बजे तक लौटी नहीं थी।
- देरी से आने का कारण अरुणा को बताते हुए उसने कहा कि गर्ग स्टोर के सामने एक भिखारिन की मौत हो गई थी और उसके दोनों बच्चे उसके मृत शरीर से चिपककर बुरी तरह से रो रहे थे। इस घटना का रफ स्केच बनाने में ही देर हो गई।
- साढ़े चार बजे जब चित्रा हॉस्टल के फाटक पर आई तो अरुणा का कहीं पता न था।
- बहुत सारी लड़कियाँ उसे छोड़ने स्टेशन तक आई थीं, पर चित्रा की आँखें अरुणा को ढूँढ़ रही थीं पर वह नहीं आई।
- विदेश जाकर चित्रा अपने काम में जुट गई।
- भिखारिन और उसके दो बच्चों के चित्र ने उसे बहुत प्रसिद्धि दिलाई।
- उसके दिल्ली आने पर उसके चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया ।
- तभी भीड़ में उसकी भेंट अरुणा से हो गई।
- उसके साथ दो प्यारे बच्चे भी थे।
- अरुणा ने बच्चों से चित्रा का परिचय कराते हुए कहा कि तुम्हारी मौसी बहुत अच्छी तस्वीर बनाती है। ये सारी तस्वीरें इन्हीं की बनाई हुई हैं।
- बच्चों को भिखारिन और उसके दो बच्चों की तस्वीर अच्छी नहीं लगी। वे राजा-रानी और परियों की तस्वीरें देखना चाहते थे।
- जब चित्रा ने अरुणा से उन दो बच्चों के बारे में पूछा तो उसने उन्हें अपने बच्चे बताया।
- चित्रा को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ।
- अरुणा ने बता ही दिया कि ये बच्चे उसी भिखारिन के हैं जिनका चित्र तुमने बनाया है। चित्रा की आँखें विस्मय से फैल गईं।
अवतरण संबंधित प्रश्न उत्तर
1.किसी तरह नहीं समझ पा रही हूँ कि चौरीसी लाख योनियों में से आखिर यह किस जीव की तसवीर है ?
(i) वक्ता और श्रोता कौन हैं ?
उत्तर : वक्ता-अरुणा है और श्रोता – चित्रा ।
(ii) वक्ता ने चित्र को घनचक्कर क्यों बताया ?
उत्तर : वक्ता (अरुणा) ने देखा कि चित्र में सड़क, आदमी, ट्राम, बस, मोटर, मकान सब एक दूसरे पर चढ़ रहे हैं, मानो सबकी खिचड़ी पकाकर रख दी हो, इसीलिए उसने चित्र को घनचक्कर बताया।
(iii) वक्ता ने चित्र को किसका प्रतीक बताया ?
उत्तर : वक्ता (अरुणा) ने चित्र को चित्रा की बेवकूफ़ी का प्रतीक बताया।
(iv) श्रोता ने उस चित्र को किसका प्रतीक बताया ?
उत्तर : श्रोता (चित्रा) ने अपने चित्र को आज की दुनिया में कन्फ़्यूज़न का प्रतीक बताया।
2.आज चित्रा को जाना था। अरुणा सवेरे से ही उसका सारा सामान ठीक कर रही थी। एक-एक करके चित्रा सबसे मिल आई।
(i) चित्रा को कहाँ जाना था और क्यों ? सबसे मिलने पर भी उसका किससे मिलना रह गया था ?
उत्तर : चित्रा को चित्रकला के संबंध में विदेश जाना था। जाते समय वह सबसे मिली, बस अपने गुरु जी से मिलना रह गया था।
(ii) चित्रा ने देर से लौटने का क्या कारण बताया ?
उत्तर : चित्रा ने देर से लौटने का कारण बताते हुए कहा कि लौटते समय उसने देखा कि पेड़ के नीचे बैठी रहने वाली भिखारिन मरी पड़ी है और उसके दोनों बच्चे उसके सूखे शरीर से चिपककर बुरी तरह रो रहे हैं। मैंने उस दृश्य का स्केच बना डाला। इसीलिए देर हो गई ।
(iii) चित्रा को कितने बजे वाली गाड़ी से जाना था ?
उत्तर : चित्रा को पाँच बजे की गाड़ी से जाना था।
(iv) विदेश में उसके किस चित्र को अनेक प्रतियोगिताओं में प्रथम पुरस्कार मिल चुका था ?
उत्तर : विदेश में उसका अनाथ शीर्षक वाला चित्र अनेक प्रतियोगिताओं में प्रथम पुरस्कार पा चुका था। इसमें भिखारिन और उसके बच्चों का चित्रण किया गया था।
3.अरुणा मुँह धोने के लिए बाहर चली गई। लौटी तो देखा तीन-चार बच्चे उसके कमरे के दरवाजे पर खड़े उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
(i) कथन का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : जब चित्रा ने अरुणा को अपने चित्र को दुनिया के कन्फ़्यूज़न का प्रतीक बताया तो उसके बाद अरुणा मुँह धोने के लिए बाहर चली गई।
(ii) चित्रा ने बच्चों को क्या कहकर संबोधित किया ?
उत्तर : चित्रा ने बच्चों को ‘बंदर’ कहकर संबोधित किया।
(iii) चित्रा अरुणा की पाठशाला का चित्र क्यों बनाना चाहती थी ?
उत्तर : चित्रा अरुणा की पाठशाला का चित्र इसलिए बनाना चाहती थी जिससे कि वह लोगों को दिखा सके कि उसकी एक मित्र ऐसी भी थी जो बस्ती के चौकीदारों, नौकरों और चपरासियों के बच्चों को पढ़ा-पढ़ाकर अपने को भारी पंडिताइन और समाज सेविका समझती थी।
(iv) अरुणा को चित्रा की कला निरर्थक क्यों लगती थी ?
उत्तर : अरुणा को चित्रा की कला इसलिए निरर्थक लगती थी क्योंकि वह मानती थी कि ऐसी कला जो आदमी को आदमी न रहने दे, निरर्थक होती है।
4.जाने क्या था उस चित्र में, जो देखता चकित रह जाता।
(i) वाक्य का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : उपर्युक्त वाक्य चित्रा द्वारा बनाए गए ‘अनाथ’ शीर्षक वाले चित्र के संदर्भ में कहा गया है।
(ii) विदेश से लौटने पर चित्रा के चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन कहाँ किया गया तथा उसका उद्घाटन किसने किया ?
उत्तर : विदेश से लौटने पर चित्रा के चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन दिल्ली में किया गया तथा उसका उद्घाटन करने चित्रा को ही बुलाया गया।
(iii) उसी भीड़-भाड़ में चित्रा की भेंट किससे हुई ? चित्रा ने उससे क्या पूछा ?
उत्तर : उसी भीड़-भाड़ में चित्रा की भेंट अरुणा से हो गई चित्रा ने पूछा, ‘तुझे चित्र देखने का शौक कब से हो गया ?’
(iv) चित्रा की बात सुनकर उसने क्या उत्तर दिया ?
उत्तर : अपनी सहेली चित्रा की उपर्युक्त बात सुनकर अरुणा बोल कि वह चित्रों को नहीं बल्कि अपनी सहेली चित्रा को देखने आई है
प्रश्न – उत्तर
(i) चित्रा किस बात पर अवाक् थी ? बच्चे कौन थे ? उनकी आयु कितनी थी ?
उत्तर : जब अरुणा ने चित्रा से कहा कि वे दोनों बच्चे उसके हैं, तो चित्रा अवाक् हो गई। वह कभी बच्चों को देखती और कभी अरुणा को क्योंकि उसके लिए यह विश्वास करना कठिन था कि वे दोनों बच्चे अरुणा के ही हैं।
(ii) चित्रा के अवाक् रहने पर अरुणा ने उसे टोकते हुए क्या कहा ?
उत्तर : अरुणा बोली- ‘कैसी मौसी है, प्यार तो कर’ ।
(iii) अरुणा ने बच्चों से क्या कहा ?
उत्तर : अरुणा ने बच्चों से कहा कि ये तुम्हारी मौसी बहुत अच्छी तसवीरें बनाती हैं। ये सारी तसवीरें इन्हीं की बनाई हुई हैं।
(iv) घूमते-घूमते वे किस चित्र के सामने पहुँचे ? चित्र को देखकर बालिका ने क्या पूछा और बालक ने क्या कह ?
उत्तर : घूमते-घूमते बच्चे ‘अनाथ’ शीर्षक वाले चित्र के सामने पहुँचे। बालिका ने चित्र को देखकर पूछा कि उसमें ये बच्चे क्यों रो रहे हैं ? बालक ने तुरंत उत्तर दिया कि देखती नहीं इनकी माँ मरी पड़ी है, इसीलिए रो रहे हैं।