(i) आजकल देश में आवासीय विद्यालयों (Boarding Schools) की बाढ़ सी आ गई है। आवासीय विद्यालयों की छात्रों के जीवन में क्या उपयोगिता हो सकती है ?” – इस प्रकार के विद्यालयों की अच्छाइयों एवं बुराइयों के बारे में बताते हुए वर्तमान में इनकी आवश्यकता पर अपने विचार लिखिए।
आवासीय विदयालय आज का युग भौतिकवाद का युग है। इस युग में प्रदर्शनप्रियता का बोलबाला है। प्रत्येक क्षेत्र में प्रदर्शन ही प्रदर्शन देखने में आ रहा है। शिक्षा और शिक्षा-व्यवस्था भी इसी भौतिकवाद का शिकार हो चुकी है। आज की शिक्षा व्यवसाय में बदल चुकी है। एक ओर अभिभावक अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होने के लिए कितना भी पैसा लुटाने को तैयार हैं तो दूसरी ओर शिक्षा को कारोबार बनाने वाले लुटेरे, शिक्षा के नाम पर अपना सब कुछ लूटने को तैयार बैठे हैं।
आज के दौर में आवासीय विद्यालयों की बाढ़-सी आ चुकी है जिन्हें प्रायः रेज़िडेंशियल या बोर्डिंग स्कूल कहा जाता है। लोग अपने बेटे-बेटियों को तीन वर्ष तक घर में रखकर ऊब चुके होते हैं। ऐसे स्वार्थी मातापिता को इस प्रकार के आवासीय विद्यालयों में अपनी ‘चरमशांति’ दिखाई देती है। वे धन का अर्पण करके अपने मन की कथित शांति खरीदने निकल पड़ते हैं। बच्चे ऐसे आवासीय विद्यालयों में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करते हैं।
एकाकीपन, स्वार्थीपन, चंचलता, उद्विग्नता, आशाभंग, पलायन, दुराचरण आदि की समस्याएँ इन्हीं विद्यालयों की देन है। ऐसी शिक्षा व्यवस्था के कारण ही आज के युवावर्ग का सर्वाधिक नैतिक पतन हुआ है। आज मनुष्य सिद्धियों के पीछे भाग रहा है। वह अपनी उच्च संस्कृति की श्रेष्ठ साधनाओं को भूलता जा रहा है। मन की चंचलता, लोभ, उद्विग्नता, आशाभंग, दुविधा, पलायन आदि छात्रों को भ्रष्टाचार की ओर ले जा रहे हैं। वैदिक शिक्षा में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक चार फल मानव को सन्मार्ग पर अग्रसर करने के लिए स्वीकार किए गए हैं।
आज का मानव केवल अर्थ और काम के पीछे अंधा हो रहा है। उसे अर्थ या पैसा चाहिए और पैसे से वह काम अर्थात् भ्रष्ट आचरण की ओर बढ़ता है। नैतिक पतन और भ्रष्टाचार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जो मनुष्य नैतिकता से गिरेगा, वह भ्रष्टाचार की झोली में पड़ेगा। आज की सर्वव्यापी अशांति और असंतोष का मूल यही भ्रष्टाचार है। छोटे बच्चे से लेकर प्रौढ़ तक साधारण जन से लेकर शासक तक अनेकानेक लोग भ्रष्ट आचरण अपनाते जा रहे हैं। व्यक्ति का मन शुद्ध न रहने से समाज दूषित हो रहा है।
मनुष्य तो यही सोच रहा है कि भौतिक स्तर ऊँचा हो जाने से वह ऊँचा हो सकेगा। उसे यह तथ्य भूलता जा रहा है कि आत्मिक बल और नैतिक आचरण के बिना भौतिक उन्नति किसी काम की नहीं है। जो राष्ट्र, समुदाय या संप्रदाय अपने धर्म अर्थात् कर्तव्य को नैतिकता के साथ नहीं जोड़ते वहाँ असंतोष, घृणा व वैमनस्य अवश्य बढ़ता है। धर्म और राजनीतिक दोनों क्षेत्रों में अनेक प्रकार के भ्रष्टाचार आए दिन दैनिक समाचार पत्रों व केंद्रों से प्रसारित हो रहे हैं। आज समाज में ‘अर्थ’ और ‘काम’ के प्रति अंधी लालसा उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है।
मानव भोगवाद को अपनाकर भ्रष्ट मार्गों पर चलने लगा है। उसे सत्य, न्याय, दया, परोपकार, मन की शुद्धि आदि मूल्यों का कोई महत्त्व दिखाई नहीं देता। विद्यालयों के बच्चे भी इस भ्रष्टाचार से अछूते नहीं रहे। वे नये युग की संचार सुविधाओं व आवासीय विद्यालयों की संस्कृति के कारण भ्रष्ट व दुराचारी होने के साथ-साथ घर व समाज से कटते जा रहे हैं। ऐसी संस्कृति में सकारात्मक व निर्माणात्मक सुधारों की आवश्यकता है।
(ii) ‘पर्यावरण है तो मानव है’ विषय को आधार बनाकर पर्यावरण सुरक्षा को लेकर आप क्या-क्या प्रयास कर रहे हैं ? विस्तार से लिखिए।
मानव और प्रकृति का संबंध अत्यंत प्राचीन है। प्रकृति ने मानव को अनेक साधन दिए, जिनसे उसका जीवन सुखद बना रहे, लेकिन मानव ने प्रकृति का शोषण करना आरंभ कर दिया तथा प्रकृति को अपनी ‘चेरी’ समझने की भूल करने लगा। वैज्ञानिक प्रगति’ को आधार बनाकर मनुष्य ने अपने पर्यावरण को ही प्रदूषित करना आरंभ कर दिया। वह यह भूल गया कि पर्यावरण है तो जीवन है। सृष्टि के आरंभ में प्रकृति में एक संतुलन बना हुआ था
धीरे-धीरे बढ़ती जनसंख्या, नगरों की वृद्धि, वैज्ञानिक उपलब्धियों एवं औद्योगिक विकास के कारण प्रदूषण जैसी घातक समस्या का जन्म हुआ। आजकल वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण एवं भूमि प्रदूषण के कारण स्थिति इस हद तक बिगड़ गई है कि अनेक घातक एवं असाध्य रोगों का जन्म हो रहा है तथा वातावरण अत्यंत विषाक्त हो गया है। प्रदूषण एक विश्व व्यापी समस्या है जिसका समाधान करना कठिन है, फिर भी इसकी रोकथाम के लिए समूचे विश्व में प्रयास किए जा रहे हैं; जैसे औद्योगिक इकाइयों को आबादी वाले क्षेत्रों से दूर स्थापित करना, वाहनों में पेट्रोल तथा डीजल के स्थान पर ऐसी गैसों का प्रयोग करना जो प्रदूषण मुक्त हों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिए ‘ट्रीटमेंट प्लांट’ लगाने तथा अपशिष्ट पदार्थों को किसी नदी में प्रवाहित न करने की बाध्यता तथा झुग्गी झोंपड़ियों को घनी आबादी से दूर बसाया जाना।
पर्यावरण सुरक्षा को लेकर आजकल प्रत्येक नागरिक प्रयासरत है। मैं भी इस दिशा में प्रयासरत हूँ। मैंने अपने मित्रों के साथ मिलकर ‘मित्र मंडल’ नाम से एक टोली बनाई है जो स्थान-स्थान पर जाकर स्वच्छता अभियान चलाती है तथा झुग्गी-झोंपड़ियों में जाकर उन्हें स्वच्छता रखने की प्रेरणा देती है। हमारी टोली को लोगों ने बहुत पसंद किया है तथा हमारे प्रयास से पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायता मिली है। कुछ समाजसेवी संस्थाओं की ओर से हमें ऐसे डस्टबिन’ निःशुल्क दिए गए हैं जिन्हें हमने अपने नगर के विभिन्न स्थानों पर रखा है, जिससे कि लोग बेकार की चीजें, कागज़ के टुकड़े, फलों के छिलके आदि इसमें डालें।
हमारा यह प्रयास बहुत सफल रहा है तथा हमारी टोली के साथ बहुत से लोग जुड़ते जा रहे हैं। हम स्थान-स्थान पर जाकर ‘नुक्कड़ नाटकों’ के द्वारा भी लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरुकता लाने का प्रयास कर रहे हैं। सप्ताह में एक दिन हमारी टोली विभिन्न क्षेत्रों में जाकर श्रमदान करके स्वच्छता अभियान चलाते हैं। हमारे प्रयास को देखकर उन क्षेत्रों के निवासी भी स्वच्छता अभियान में संलग्न हो जाते हैं। हमारी टोली द्वारा पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए एक ओर विशेष प्रयास किया है – वह है वृक्षारोपण का कार्यक्रम चलाना।
वृक्षारोपण पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए सर्वोत्तम उपाय माना गया है क्योंकि वृक्ष ही हमसे अशुद्ध वायु लेकर हमें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं और पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं। हमने अपने आचार्यों की सहायता से नगर निगम के उद्यान विभाग की ओर से अनेक पौधे प्राप्त कर लिए हैं, जिन्हें हम अपने आचार्यों के मार्गदर्शन में ही शहर के स्थान-स्थान पर लगाते हैं तथा वहाँ के लोगों को भी वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करते हैं। हमारे इस प्रयास की बहुत सराहना की गई है।
हमने एक सतर्कता अभियान भी चलाया है जिसके अंतर्गत पहले से लगे पेड़-पौधों के संरक्षण पर बल दिया जाता है, पहले से लगे पेड़-पौधों को पानी दिया जाता है तथा उन्हें काटने से रोका जाता है। हमारी अपेक्षा है कि हमारी तरह वे भी पर्यावरण को स्वच्छ तथा प्रदूषण मुक्त बनाने में अपना योगदान दें तथा स्वेच्छा से इसी प्रकार की गतिविधियों का संचालन करें जिनसे वातावरण प्रदूषण मुक्त हो सके।
iii ) जीवन में त्योहारों का महत्व समझाइये |
प्रस्तावनाः त्योहार पर्व मानव समाज के लिए हर्षोल्नारा के स्रोत हैं। इन त्योहार पर्वों के आधार चने हैं प्रकृति, पूर्वजों का प्रेरणादायक अतीत, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परम्पराएँ और राजनीति। ये सभी मानव को आनन्दपूर्वक जीने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए. इनको मनाने में वह जीवन की सार्थकता समझता है।
त्योहारों का महत्त्वः त्योहारों का मानव जीवन में विशेष महत्व है। हर एक त्योहार अपने आदर्श की छाप मानव जीवन में छोड़ता है। त्योहारों के इन उय आद्शों से ही मानव समान समृद्ध होता है। इस समृद्धत्ता के ही कारण प्रत्येक समाज अपने त्योहारों को हा्ोल्लास के साथ मनाता है। इनके मनाने की पृथक् विधिया त्योहार की विशिष्टता की द्योतक हैं। प्रत्येक व्योहार अपनी निश्चित तिथि पर आता है और मानव समाज बड़ी उत्सुकता से उसकी प्रतीक्षा करता है। वैसे तो, विश्व का कोई राष्ट्र नहीं, जहाँ त्योहारों का प्रचलन न हो। कम या ज्यादा त्योहार हर राष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं; किन्तु हमारे राष्ट्र में इनकी अपनी ही शान है। भारत त्योहारों की खान है। यहाँ पर विभिन्न धर्मों के लोग स्वतंत्रतापूर्वक रहते हैं। ये अपने त्योहारों को अपनी विधियों के अनुसार स्वतंत्रतापूर्वक मनाते हैं। वास्तव में ये त्योहार भारतीय संस्कृति के दर्पण हैं।
त्योहारों के वर्गः भारतीय त्योहार तीन वर्गों में बाँटे जा सकते हैं 1 धार्मिक, 2 सामाजिक 3 राष्ट्रीय । हिन्दुओं के अनेक त्योहारों में दीपावली, रक्षाबन्धन, दशहरा और होली का प्रमुख स्थान है। इन त्योहारों को हिन्दू वर्ग बड़ी धूमधाम से निश्चित तिथियों पर पारम्परिक विधियों के अनुरूप मनाता है। सिक्ख गुरुपर्व को, बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। बड़ा दिन ईसाइयों का सबसे बड़ा त्योहार है। बंगाल में ‘दुर्गा पूजा’, पंजाब में बैसाखी, महाराष्ट्र में ‘गणेश चतुर्थी और दक्षिण भारत में ‘ओणम और पोंगल’ तथा उत्तर भारत में गंगा स्नान’ आदि त्योहार भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं। गणतंत्र भारत में ‘स्वतंत्रता’, दिवस’ गणतंत्र दिवरा’ और गांधी जन्म दिवस, राष्ट्रीय त्योहारों के रूप में मनाए जाते हैं। इन्हें प्रत्येक भारतीय मिलजुल कर हर्षोल्लास के साथ मनाता है। स्वतंत्रता दिवस. देश की स्वतंत्रता की स्मृति को ताजा रखने के लिए ‘पन्द्रह अगस्त’ को मनाया जाता. है। ‘छब्बीस जनवरी’ गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी शुभ दिवस पर 1950 ई० को भारतीय संविधान लागू हुआ था । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का जन्म दिवस 2 अक्टूबर को मनाया जाता है।
उपसंहारः इस प्रकार प्रत्येक त्योहार पर्व मानव समाज को जहाँ प्रेरणा देता है वहाँ धार्मिक परम्परा, सामाजिकता, राष्ट्रीयता, सुख- समृद्धि तथा प्रगति का संदेशवाहक भी बन कर आता है। प्रत्येक त्योहार अपने राष्ट्र की सरकृति का दर्पण है। एक ही राष्ट्र में विभिन्न धर्मावलम्बी पर्व-त्योहार के मंच पर यहां अपना जातीय संगटन बना लेते हैं, वहाँ एक दूसरे के हर्षोल्लास में शामिल होकर राष्ट्रीयता का परिचय भी देते हैं। अतः ये त्योहार पर्व राष्ट्र एवं समाज के प्राण भी कहलाते हैं। इनका वास्तविक रूप में मनाया जाना ही राष्ट्र और समाज के हित में रहता है। ऐसी स्थिति में ही ये विशुद्ध प्रेम, सद्भाव तथा सहानुभूति के फूल बरसाते हैं।