जीवन परिचय – सूरदास हिंदी के कृष्ण भक्ति शाखा के कवियों मे प्रमुख कवि है | इनका जन्म सन् 1478 को रुनकता नामक गाँव में हुआ | सूरदास जी के माता – पिता के संबंध में कुछ जानकारी प्राप्त नहीं है सूरदास जी बचपन से अंधे थे |इनके गुरु वल्लभाचार्य थे | सूरदास आगरा – मथुरा के बीच गऊघाट पर रहते थे | वही श्रीनाथ मंदिर में कीर्तन करते थे | सूरदास जी श्री कृष्ण के भक्त थे इनका निधन सन् 1563 में हुआ
रचनाएँ – सूरदास की रचनाओं में सूरसागर , सूरसारावली तथा साहित्य लहरी प्रमुख है | सूरसागर इनकी सर्वोत्कृष्ट रचना है | इनकी ब्रजभाषा है |
शोभित कर नवनीत लिए |
घुटुरुन चलत रेनु – तन -मंडित , मुख दधि – लेप किए |
चारु कपोल लोल लोचन ,गोरोचन तिलक दिए |
लट लटकनि मनु मत्त मधुप – गन ,मादक मधुहिं। पिए
कठुला कंठ वज्र केहरि नख ,राजत रुचिर हिए |
धन्य सूर एको पल इहि सुख , का सत कल्प जिए। ||1||
प्रसंग – प्रस्तुत पदों में कवि सूरदास जी ने श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का सुंदर वर्णन किया है |
व्याख्या – सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण के हाथों में मक्खन बहुत सुंदर लग रहा है जब घुटनों के बल चलते हैं तब उनका धूल से भरा शरीर एवं मुख पर लगा दही उनकी सुंदरता को और अधिक बढ़ा रहा है | बालकृष्ण के गाल सुंदर है तथा उनके नेत्र चंचल है | उन्होंने गोरोचन का तिलक भी लगाया हुआ है | जिस प्रकार भँवरा फूलों का रस पीकर मस्त हो जाता है उसी प्रकार मानो उनके भँवरे रूपी बालों को लट उनके कमल के समान मुख को छू रही हो | उनके गले में पहनी शेर के नाखून की माला हृदय को सुंदर प्रतीत हो रही है | सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण के बाल – रूप का एक पल के लिए भी दर्शन करके सुख प्राप्त करना सैंकड़ों कल्पों (युगो) के सुख से कहीं अधिक श्रेष्ठ तथा मनोहारी है |
कहन लागे मोहन मैया – मैया |
नंद – महर सौं बाबा – बाबा ,अरु हलधर सौं भैया |
ऊँचे चढ़ि- चढ़ि कहति जसोदा , लै -लै नाम कन्हैया |
दुरि खेलन जिन जाहु लला रे ,मारैगी काहु की गैया |
गोपी ग्वाल करत कौतूहल , घर -घर बजति बधैया |
सूरदास प्रभु तुम्हारे दरस कौं ,चरननि की बलि जैया || 2||
व्याख्या – सूरदास जी कहते हैं कि श्रीकृष्ण अब माता को मैया – मैया कहकर पुकारने लगे हैं तथा नंद पिता को बाबा – बाबा कहने लगे और बलराम को भैया – भैया कहकर पुकारने लगे हैं | यशोदा माता ऊँचे चढ़कर कन्हैया नाम ले – लेकर पुकारती है कि हे लाल ! तुम कहीं दूर खेलने मत जाना ! नहीं तो किसी की गईया मारेगी |गोपियॉं तथा ग्वाल – बाल सब यह आश्चर्य एवं उत्सुकता से देखते हैं | घर-घर में बधाइयाँ बज रही है | सूरदास जी कहते हैं कि हे श्री कृष्ण ! तुम्हारे दर्शन के लिए मैं आपके चरणों पर बलिहारी जाता हूँ |
मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ |
मौं सो कहत मोल को लीन्हो , तू जसुमति कब जायो |
कहा करौं इहि रिस के मारे , खेलन हौं नहिं जात |
पुनि -पुनि कहत कौन है माता ,को है तेरौ तात |
गोरे नंद जसोदा गोरी ,तू कत स्याम सरीर |
चुटकी दै दै हँसत ग्वाल सब ,सिखै दैत बलवीर |
तू मोहि को मारन सीखी , दाउहि कबहुँ न खीझै |
मोहन मुख रिस की ये बातें जसुमति सुनि – सुनि रीझै |
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई ,जनमत ही को धूत |
सूर स्याम मोहि गोधन की सौ ,हौं माता तू पूत ||3 ||
व्याख्या – श्री कृष्ण यशोदा माता से बलराम भइया की शिकायत करते हुए कहते हैं कि मैया मुझे बलराम भैया बहुत चिढ़ाते है मुझे कहते हैं कि तुम को खरीदा गया है , मोल लिया गया है तुम्हें यशोदा माता ने जन्म नहीं दिया | क्या करूँ , इसी क्रोध के कारण मैं खेलने नहीं जाता |
वह बार-बार मुझसे कहते हैं कि तेरी माता कौन है तेरे पिता कौन है नंद बाबा का रंग भी गोरा है और यशोदा माता भी गोरे रंग की है और तुम्हारा शरीर श्याम रंग का है | इसी कारण सब ग्वाल बाल मुझे ताने दे देकर हैंसते हैं बलराम भइया ने सब को यह सिखा दिया है | कृष्ण यशोदा माता से कहते हैं कि तुम तो मुझको ही मारना जानती हो बलराम भैया को कुछ भी नहीं कहती | श्री कृष्ण के मुख से यह क्रोध भरी बातें सुनकर यशोदा माता मन ही मन प्रसन्न हो जाती है | वह कहती है हे कान्हा सुनो बलराम तो जन्म से ही चालाक और चुगलखोर है | सूरदास जी कहते हैं कि यशोदा माता कहती है कि हे कृष्ण मुझे गोऊओंकी सौगंध है मैं ही तुम्हारी माता हूँ और तुम मेरे पुत्र हो |
प्रश्न उत्तर
प्रश्न – “बाल लीला” के आधार पर बताइए कि सूरदास जी ने श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप का कैसा वर्णन किया है? श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम की शिकायत किससे करते हैं और क्या शिकायत करते हैं?
उत्तर- सूरदास भक्तिकालीन कृष्ण-काव्य धारा के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्होंने अपने काव्य में कृष्ण बाल-लीलाओं का अद्भुत वर्णन किया है। इस वर्णन में स्वाभाविकता और वात्सल्य रस का सुंदर योग मिलता है। सूरदास जी बालरूप कृष्ण की जिस झलक का वर्णन कर रहे हैं, उसमें उनके हाथ में मक्खन है। उनके मक्खन में सने हाथ अत्यंत सुंदर लग रहे हैं। वे घुटनों के बल चल रहे हैं जिसके कारण उनका शरीर धूल से सना है। कृष्ण को मक्खन और दही बहुत भाता है। अतः उनके मुँह पर दही लगी हुई है।
कृष्ण के स्वरूप की सुंदरता का वर्णन करते हुए कवि ने उनके सुंदर गालों तथा चंचल आँखों की चर्चा की है। उनके माथे पर गोरोचन का तिलक लगा है। बालों की लटाएँ लटक रही हैं, जो मुख पर फैल रही हैं। ऐसा लगता है मानो मस्त भौरे गालों रूपी फूलों का मादक रस पी रहे हों। उनके गले में कठुला और शेर का नाखून अत्यंत शोभा दे रहा है। सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण के बाल रूप का एक पल के लिए दर्शन करके सुख प्राप्त करना सैंकड़ों युगों के सुख से भी अधिक श्रेष्ठ तथा मनोहर है।
जब कृष्ण थोड़े बड़े हो जाते हैं तो वे बोलना सीख जाते हैं। यशोदा को वे मैया, नंद को बाबा और बलराम को भैया कहने लगे हैं। वे चलने लगे हैं जिसके कारण माता उन्हें खेलते-खेलते दूर तक जाने से रोकती है। उसे भय है कि कोई गाय उनके बच्चे को कोई हानि न पहुँचा दे। ब्रज की गोपियाँ और गोपालों के बच्चे आश्चर्य तथा उत्सुकता से वात्सल्य रस का यह दृश्य देखते हैं। प्रत्येक घर में इस बात की बधाइयाँ दी जा रही हैं। सूरदास भी कृष्ण के इस बालरूप पर न्योछावर हो रहे हैं।
समवयस्क बच्चे प्रायः खेलते-खेलते लड़ पड़ते हैं और एक-दूसरे को चिढ़ाने लगते हैं। इसी का मार्मिक और हृदयस्पर्शी वर्णन करते हुए कवि ने कृष्ण द्वारा बलराम भैया की शिकायत करने का दृश्य उपस्थित किया है।
बलराम कहता है कि कृष्ण यशोदा का पुत्र नहीं अपितु उसे वे लोग कहीं से खरीद कर लाए हैं। वह बार-बार उनके वास्तविक माता-पिता के नाम पूछता है।
बलराम तर्क देकर पूछता है कि नंद और यशोदा तो दोनों गोरे रंग के हैं, फिर उनके यहाँ तुझ जैसा साँवला कैसे हो सकता है? बलराम के इस तर्क पर सभी ग्वालों के बच्चे चुटकी बजा-बजाकर उपहास उड़ाते हैं और बलराम उन्हें बढ़ावा देता है। कृष्ण अब अपनी माँ पर भी संदेह व्यक्त करते हैं क्योंकि वह बलराम को कभी कुछ नहीं कहती उल्टे उसे डाँटती रहती है। ये बातें सुनकर यशोदा मैया मन ही मन प्रसन्न हो रही है। वह उन्हें समझाने के लिए कहती हैं कि बलराम तो जन्म से अत्यंत धूर्त है। अर्थात् उसकी इन बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। वह उन्हें विश्वास दिलाने के लिए गोधन की शपथ लेकर कहती है कि वहीं उसकी माता है और वह उन्हीं का अपना पुत्र है।
इस प्रकार सूरदास ने श्रीकृष्ण के बालरूप और वात्सल्य रस का सुंदर, मनोहर और स्वाभाविक चित्रण किया है। उनका यह चित्रण बालमनोविज्ञान के अनुसार चित्रित हुआ है जो आज तक अद्वितीय माना जाता है।
अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर
1.” शोभित कर नवनीत लिए ।
घुटुरुन चलत रेनु-तन-मंडित, मुख दधि-लेप किए। चारु कपोल लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए। लट लटकनि मनु मत्त मधुप-गन, मादक मधुहिं पिए। “
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर- कवि का नाम सूरदास और कविता का नाम ‘बाल लीला’ है।
(ii) कवि किस भक्ति शाखा के कवि थे ?
उत्तर- कवि सूरदास भक्तिकाल की सगुण काव्यधारा के अंतर्गत आने वाली कृष्ण काव्यधारा के कवि थे। कृष्ण ही उनके आराध्य देव हैं।
(iii) प्रस्तुत काव्यांश में कौन-सा रस है ? सप्रसंग स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रस्तुत काव्यांश में वात्सल्य रस है। वात्सल्य का संबंध बच्चों के प्रति प्रेम से मिलने वाले आनंद से होता है। कवि सूरदास ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर व मोहक वर्णन किया है।
(iv) कृष्ण का बालरूप कवि को किस प्रकार मोहित करता है ?
उत्तर- सूरदास श्रीकृष्ण के बालरूप से बहुत प्रभावित हैं। वे उनकी बाल क्रीड़ाओं से अत्यंत मोहित हैं। उनका रूप-स्वरूप एक दिव्य आनंद प्रदान करता है। कृष्ण का माखन लेकर चलना, घुटनों के बल चलना, धूल में सना शरीर, मुँह पर दही का लेप आदि सम्मोहन भाव देते हैं। इसीलिए कवि सूरदास ने उनके ऐसे ही रूप स्वरूप व क्रीड़ाओं का बाल सुलभ वर्णन किया है।
2.मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ । माँ सो कहत मोल को लीन्हो, तू जसुमति कब जायो । कहा करौं इहि रिस के मारे, खेलन हौं नहिं जात पुनि पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात। गोरे नंद जसोदा गोरी, तू कत स्याम सरीर ।
(i) दाऊ का क्या अर्थ है ? वह किसे खिझाता है ?
उत्तर – यहाँ दाऊ का अर्थ बलराम से है। वे कृष्ण के बड़े भाई हैं। वे कृष्ण को खिझाते हैं।
(ii) ‘मोल को लीन्हो’ का क्या आशय है ?
उत्तर – ‘मोल को लीन्हो’ का अर्थ ‘खरीद कर लाया हुआ’ है। बलराम बालरूप कृष्ण को छेड़ते हैं कि उन्हें बाहर से खरीदा गया है क्योंकि उनका जन्म इस घर में नहीं हुआ है।
(iii) नंद और यशोदा का संदर्भ किसलिए उभारा गया है ?
उत्तर – नंद और यशोदा गोरे शरीर वाले हैं। बच्चे जब अपने किसी साथी को छेड़ते या खिझाते हैं, तो वे तरह तरह के तर्कों का प्रयोग करते हैं। बलराम आयु में बड़े हैं। वे तर्क देते हैं कि कृष्ण साँवले रंग वाला है तो नंद व यशोदा उसके माता-पिता कैसे हो सकते हैं ? अवश्य ही वह बाहर से लाकर पाला जा रहा कोई बाहरी बच्चा है।
(iv) प्रस्तुत पद के आधार पर कवि की भक्ति-भावना का उल्लेख करें।
उत्तर – प्रस्तुत पद में सूरदास ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को सुंदर व आकर्षक वर्णन किया है। उन्होंने भक्ति का ऐसा मार्ग चुना जिसका संबंध वात्सल्य रस से है। वे भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप का मनोवैज्ञानिक वर्णन करते हैं। इसीलिए उन्हें हिंदी के वात्सल्य रस के सम्राट के रूप में जाना जाता है। न केवल हिंदी,