” मातृभूमि का मान ” सार (Summary)
प्रस्तुत एकांकी में हाड़ा राजपूत वीर सिंह के बलिदान का चित्रण किया गया है| मेवाड़ नरेश महाराणा लाखा ने सेनापति अभय सिंह से बूँदी के राव हेमू के पास यह संदेश भिजवाया कि बूँदी मेवाड़ की अधीनता को स्वीकार करे ताकि राजपूतों की असंगठित शक्ति को संगठित करके एक सूत्र में बाँधा जा सके, परंतु राव हेमू ने यह कहकर उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि बूँदी महाराणाओं का आदर तो करता है पर स्वतंत्र रहना चाहता है | हम शक्ति से नहीं , प्रेम का अनुशासन चाहते हैं | महाराणा लाखा क्रोधित होकर प्रतिज्ञा करते हैं कि वह जब तक बूँदी के दुर्ग ( किला) पर सेना सहित प्रवेश नहीं करूँगा , अन्न – जल ग्रहण नहीं करूँगा | महाराणा लाखा की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के लिए मेवाड़ में ही बूँदी का नकली किला बनाया जाता है | युद्ध में वास्तविकता तब आती है जब हाड़ा राजपूत वीर सिंह सहित कुछ सैनिक इस नकली दुर्ग की रक्षा करते हैं | वीर सिंह ने इस नकली दुर्ग को भी अपने प्राणों से अधिक प्रिय माना तथा बूँदी के इस नकली किले की रक्षा करते – करते मेवाड़ की भारी सेना के सामने अपना बलिदान कर देते हैं | महाराणा लाखा बहुत दु:खी होते हैं | वीर सिंह के बलिदान से एक लाभ अवश्य हुआ – राजपूतों की एकता का रास्ता साफ हो गया | राव हेमू और महाराणा लाखा ने यह कहा कि वीर सिंह के बलिदान ने हमें जन्मभूमि का मान करना सिखाया है |
एकांकी का उद्देश्य / संदेश
” मातृभूमि का मान ” एकांकी में हाड़ा राजपूत वीर सिंह के बलिदान का चित्रण किया गया है | इस एकांकी में यह दिखाया गया है कि राजपूत अपनी जन्मभूमि या मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की बलि देने में तनिक भी संकोच नहीं करते हैं | वे अपनी मातृभूमि या जन्मभूमि को किसी अन्य राज्य के अधीन नहीं देख सकते | उसको सदैव स्वतंत्र देखना चाहते हैं | उसका सदैव मान और उसकी प्रतिष्ठा चाहते हैं | पूरे एकांकी में राजपूतों की मातृभूमि के प्रति कितनी अधिक निष्ठा है यही दिखाया गया है | मातृभूमि का मान उनके प्राणों से अधिक है | एकांकी में यह संदेश दिया गया है कि राजपूतों के लिए अपनी मातृभूमि का महान सर्वोपरि होता है | प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए |
शीर्षक की सार्थकता
इस एकांकी का शीर्षक ” मातृभूमि का मान ” सर्वथा उपयुक्त है | क्योंकि पूरे एकांकी में मातृभूमि के मान को ही विशेष महत्व दिया गया है तथा अंत में मातृभूमि का मान रखने के लिए ही स्वयं महाराणा का प्रमुख सिपाही वीरसिंह शहीद हो जाता है |
चरित्र-चित्रण
महाराणा लाखा
महाराणा लाखा मेवाड़ के शासक व एकांकी ‘मातृभूमि का मान’ के प्रमुख पात्र हैं। वे वीर तथा सच्चे देशभक्त हैं। उन्हें अपने मेवाड़ पर नाज़ है। वह उनकी दृष्टि में सरताज है। वे उसे सबसे बड़े राज्य के रूप में देखना चाहते हैं। वे बूँदी और अन्य छोटे राज्यों को अपने राज्य में मिला लेना चाहते हैं ताकि चित्तौड़ एक शक्तिशाली केन्द्र हो जाए।महाराणा एक बार युद्धभूमि में बूँदी के राजपूतों से पराजित हो चुके हैं। वे आत्माभिमानी होने के कारण अपनी पराजय सहन नहीं कर पा रहे हैं। वे इस पराजय और अपमान का बदला बूँदी के राजपूतों को हराकर बूँदी के किले पर अपना झंडा फहराकर लेना चाहते हैं। वे जोश में आकर प्रतिज्ञा कर बैठते हैं कि जब तक बूँदी पर विजय प्राप्त नहीं कर लेंगे, अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे। यह कठिन प्रतिज्ञा पूरी करना आसान नहीं था। अत: प्रतिज्ञा के समाधान हेतु बूँदी का एक नकली किला बनवाकर उस पर विजय प्राप्त करने का सुझाव दिया गया। परन्तु युद्ध में वास्तविकता लाने के लिए महाराणा के एक सिपाही वीरसिंह और उसके कुछ साथियों को, जो बूँदी के रहने वाले थे, नकली युद्ध का विरोध करने के लिए दुर्ग में नियुक्त कर दिया जाता है। परन्तु वीरसिंह अपनी जन्मभूमि का अपमान सहन नहीं कर पाता है। वह अपने साथियोँ के साथ युद्ध में शहीद हो जाता है। महाराणा लाखा को वीरसिंह और उसके साथियों के शहीद होने का अत्यन्त दुःख होता है। वे पश्चात्ताप करते हैं तथा स्वीकार करते हैं कि उन्होंने बूँदी को अपने अधीन करने की जो प्रतिज्ञा की थी, जिसके कारण इतने राजपूत मारे गये, वह अनुचित थी। वीरसिंह के शव का आदर करके उन्होंने अपनी महानता का परिचय दिया। महाराणा स्वयं वीर होने के साथ-साथ वीरों का सम्मान करना जानते हैं। अपनी भूल का पश्चाताप करने में वे पीछे नहीं हटते। अपनी गलती को स्वीकार कर वे आत्मग्लानि की आग में जलकर स्वर्ण के समान पवित्र बन जाते हैं।
राव हेमू
राव हेमू बूँदी के शासक हैं। वे अत्यन्त स्वाभिमानी, देशभक्त, कर्त्तव्यपरायण, निर्भीक एवं सच्चे राजपूत हैं। राजपूत जाति के प्रति उन्हें गर्व है । वे अपनी बूँदी को किसी भी प्रकार किसी के अधीन नहीं देखना चाहते। बूँदी के प्रति उनके हृदय में कितना मान है यह इसी बात से ज्ञात हो जाता है जब अभयसिंह बूँदी को मेवाड़ के अधीन बताते हैं। यह बात सुनकर वे चकित हो जाते हैं और अभयसिंह से निर्भीकता के साथ कहते हैं-” हाड़ा वंश किसी की गुलामी स्वीकार नहीं करेगा, चाहे वह विदेशी शक्ति हो, चाहे वह मेवाड़ का महाराणा हो।” प्रत्येक राजपूत को अपनी ताकत पर नाज़ है। इतने बड़े दम्भ को मेवाड़ अपने प्राणों में आश्रय न दे, इसी में उसका कल्याण है।” राव हेमू एक कुशल शासक तथा राजपूतों के गौरव के प्रतीक हैं। वे जन्मभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की बलि देने को भी तैयार हैं। वे अपनी बूँदी को किसी भी प्रकार नीचा नहीं देख सकते। यही कारण है कि वे साहसपूर्वक कहते हैं कि जो माला महाराणा ने बनाई है उसको तोड़ने का श्रीगणेश हो गया है। राव हेमू अपनी बूँदी की रक्षा के लिए सदैव युद्ध के लिए तैयार रहते हैं। वे कभी अपने में हीनभाव नहीं लाते, वे किसी भी शक्तिशाली शासक से स्वयं को कम नहीं समझते। जब अभयसिंह अनुशासन के अभाव की बात करते हैं और कहते हैं कि राज्यों के अनुशासन के अभाव से हमारे देश के टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे, तब राव हेमू कहते हैं कि प्रेम का अनुशासन मानने को तो हाड़ा वंश सदा तैयार है किन्तु शक्ति का नहीं। राव हेमू के हृदय की विशालता, भावुकता तथा उनके पूरे व्यक्तित्व का पता हमें उनकी इन पंक्तियों से लगता है : “मेवाइ के महाराणा को यदि अपनी ही जाति के भाइयों पर अपनी तलवार आज़माने की इच्छा हुई है तो उससे उन्हें कोई नहीं रोक सकता। बूँदी स्वतंत्र राज्य है और स्वतंत्र रहकर वह महाराणाओं का आदर करता रह सकता है, अधीन होकर किसी की सेवा करना वह पसन्द नहीं करता।” जब वीरसिंह नकली बूँदी के लिए लड़ने वाली लड़ाई में शहीद हो जाता है और महाराणा स्वयं वीरसिंह के शव के पास बैठकर अपने अपराध को स्वीकार करते हुए क्षमा माँगते हैं और राजपूतों की वीरता का लोहा मानते हैं तब राव हेमू महाराणा से कहते हैं-महाराणा! हम युग-युग एक हैं और एक रहेंगे। आपको यह जानने की आवश्यकता थी कि राजपूतों में न कोई राजा है, कोई महाराजा; सब देश, जाति और वंश की मान-रक्षा के लिए प्राण देने वाले सैनिक हैं । हमारी तलवार अपने ही स्वजनों पर न उठनी चाहिए।’
अभयसिंह
अभयसिंह मेवाड़ के वफ़ादार व कर्त्तव्यपरायण सेनापति हैं। महाराणा सेनापति पर विश्वास करते हैं और उन्हें कुशल सेनापति, बुद्धिमान तथा अच्छा सलाहकार मानते हैं। वे शासन का कोई भी कार्य बिना अभयसिंह की अनुमति से नहीं करते। महाराणा अपने हृदय की बात बूँदी के शासक राव हेमू को इन्हीं के द्वारा पहुँचवाते हैं। अभयसिंह महाराणा के संदेश को अत्यन्त सुन्दर ढंग से राव हेमू सम्मुख प्रस्तुत करते हैं और महाराणा के विचारों से राव हेमू को प्रभावित करने में कुछ कसर नहीं रखते। अभयसिंह किसी भी बात को तर्क से सिद्ध करने में कुशल हैं। जब भी महाराणा किसी क्षेत्र में हतोत्साहित होते हैं या कोई निश्चित निर्णय नहीं ले पाते तब अभयसिंह सदैव उनको उत्साहित तथा निर्णय लेने में उनकी सहायता करते हैं। अभयसिंह एक अत्यन्त बुद्धिमान, वाक्पटु एवं कुशल सेनापति हैं। अभयसिंह शत्रु की वीरता को भी पहचानते हैं और उसकी वीरता का वर्णन महाराणा के सामने इस प्रकार करते हैं कि महाराणा यह न समझे कि वे उनसे युद्ध में हार जाएँगे। वे महाराणा से यह कहते हैं कि उनके वीर होने के कारण युद्ध काफ़ी दिन तक चल सकता है। लेकिन विजय महाराणा की ही होगी। अपने महाराणा को वे कभी नाराज़ नहीं करना चाहते। उनकी कही हुई बात को सदैव पूरा कराने में सहायक होते हैं। महाराणा की मान-प्रतिष्ठा के लिए अभयसिंह पूर्ण रूप से समर्पित हैं। इसके अतिरिक्त जब नकली दुर्ग पर युद्ध होता है तब भी अभयसिंह पूर्ण सहयोग देते हैं और नकली दुर्ग पर विजय प्राप्त करने के बाद मेवाड़ का झण्डा फहराते हैं।
अवतरणों पर आधारित प्रश्नोतर
(क) प्रत्येक राजपूत को अपनी ताकत पर नाज़ है । इतने बड़े दंभ को मेवाड़ अपने प्राणों में आश्रय न दे, इसी में उसका कल्याण है। रह गई बात एक माला में गूंथने की, सो वह माला तो बनी है। हाँ, उस माला को तोड़ने का श्रीगणेश हो गया है।
i) वक्ता कौन है ? उसके उपर्युक्त वाक्य का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : वक्ता राव हेमू हैं, जो बूँदी के शासक हैं। मेवाड़ के सेनापति उनसे बात कर रहे हैं। उन्होंने जब यह कहा कि आज राजपूतों को एक सूत्र में बाँधने की बड़ी आवश्यकता है और जो व्यक्ति यह माला तैयार करने की ताकत रखता है, वह है महाराणा लाखा, जो मेवाड़ के शासक हैं, तो उनकी यह बात सुनकर राव हेमू ने उपर्युक्त बात कही।
(ii) वक्ता किस प्रकार का अनुशासन मानने को तैयार है ?
उत्तर : वक्ता ( राव हेम) । ने कहा कि प्रेम का अनुशासन मानने के लिए हाड़ा-वंश सदा से ही तैयार है, शक्ति का नहीं।
(iii) श्रोता के अनुसार देश के टुकड़े होने के क्या कारण है ? राजपूतों की छिन्न-भिन्न असंगठित शक्ति को एक सूत्र में बाँधने के लिए किस बात की आवश्यकता है ?
उत्तर : वक्ता के अनुसार अनुशासन के अभाव ने हमारे देश के टुकड़े । | किए हैं। उसके अनुसार यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपनी शक्ति एक केंद्र के अधीन रखें।
(iv) राव हेमू ने अभय सिंह की बात सुनकर अपना विरोध किस प्रकार प्रकट किया ?
उत्तर : राव हेमू ने कहा कि यदि मेवाड़ के महाराणा को अपने ही जाति-भाइयों पर अपनी तलवार अजमाने की इच्छा हुई है तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता। बूंदी स्वतंत्र राज्य और स्वतंत्र रहकर महाराणाओं का आदर करता रह सकता है, अधीन होकर नहीं। हाड़ावंश किसी की गुलामी स्वीकार नहीं करेगा।