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मुख्य बिंदु
- कवयित्री का हृदय व्यथित है, क्योंकि देश को विदेशी शासन से मुक्ति नहीं मिल रही है।
- कवयित्री मातृ मंदिर में जाकर भारत माँ को अपना सुख-दुख सुनाकर अपने चित्त को हलका करना चाहती
- वह भारत माँ के चरणों को पकड़कर अपनी पीड़ा रो-रोकर सुनाना चाहती है।
- कवयित्री को इस बात का आभास है कि मातृ मंदिर तक पहुँचने का मार्ग अत्यंत दुर्गम है और वह स्वयं कमजोर, अज्ञानी और छोटी है।
- वह भगवान से वहाँ तक पहुँचने का उपाय बताने की विनती करती है।
- मातृ मंदिर के मार्ग में पहरेदार (विदेशी शासक) हैं जिनके कारण वहाँ पहुँचना कठिन है।
- कवयित्री को एहसास हो रहा है कि अब भारत की स्वतंत्रता दूर नहीं है।
- कवयित्री जल्दी से जल्दी भारत माँ की प्यारी, मुसकराती मूर्ति को देखकर नई स्फूर्ति प्राप्त करना चाहती है।
- भारत माँ को भी अपने बच्चों की याद आती होगी। माँ का हृदय अत्यंत उदार एवं विशाल होता है। वह अपनी संतान के दोषों को भी क्षमा कर देती है।
- कवयित्री स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपना बलिदान देना चाहती है। वह प्राण देकर भी देशवासियों पर किसी प्रकार के अत्याचार नहीं होने देना चाहती।
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