हरि आप हरो जन री भीर ।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर ।
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर ।।
प्रसंग – इस पद की कवयित्री मीरा है। इसमें कवयित्री भगवान श्री कृष्ण के भक्त – प्रेम को दर्शा रही हैं और स्वयं की रक्षा की प्रार्थना कर रही है ।
व्याख्या -: इस पद में मीरा भगवान श्री कृष्ण के भक्त – प्रेम का वर्णन करते हुए कहती हैं कि आप अपने भक्तों के सभी प्रकार के दुखों को हरने वाले हैं | मीरा उदाहरण देते हुए कहती हैं कि जिस तरह आपने द्रोपदी की लाज को बचाया और साडी के कपडे को बढ़ाते चले गए , आपने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का शरीर धारण कर लिया और आपने हाथियों के राजा ऐरावत हाथी को मगरमच्छ से बचाया था ,हे ! श्री कृष्ण उसी तरह अपनी इस दासी के भी सारे दुःख हर लो।
कला पक्ष:
- भाषा सरल एवं सरस है।
- ब्रजभाषा के शब्दों के साथ-साथ राजस्थानी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।
- ‘काटी-कुण्जर’ में अनुप्रास अलंकार है।
- पूरे पद में दृष्टांत अलंकार का प्रयोग किया गया है।
स्याम म्हाने चाकर राखे जी,गिरिधरी लाल म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ , सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनू बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
उँचा उँचा महल बणाव , बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ , पहर कुसुम्बी साडी।
आधी रात प्रभु दरसण , दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवडो घणो अधीराँ॥
प्रसंग -: इस पद में कवयित्री मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम का वर्णन कर रही है और श्री कृष्ण के दर्शन के लिए वह कितनी व्याकुल है यह दर्शा रही है।
व्याख्या -: इस पद में मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति भावना को उजागर करते हुए कहती हैं कि हे !श्री कृष्ण मुझे अपना नौकर बना कर रखो अर्थात मीरा किसी भी तरह श्री कृष्ण के नजदीक रहना चाहती है । मीरा कहती हैं कि नौकर बनकर मैं बागीचा लगाउंगी ताकि सुबह उठ कर रोज आपके दर्शन पा सकूँ। मीरा कहती हैं कि वृन्दावन की संकरी गलियों में मैं अपने स्वामी की लीलाओं का बखान करुँगी। मीरा का मानना है कि नौकर बनकर उन्हें तीन फायदे होंगे पहला – उन्हें हमेशा कृष्ण के दर्शन प्राप्त होंगे , दूसरा- उन्हें अपने प्रिय की याद नहीं सताएगी और तीसरा- उनकी भाव भक्ति का साम्राज्य बढ़ता ही जायेगा।
मीरा श्री कृष्ण के रूप का बखान करते हुए कहती हैं कि उन्होंने पीले वस्त्र धारण किये हुए हैं ,सर पर मोर के पंखों का मुकुट विराजमान है और गले में वैजन्ती माला को धारण किया हुआ है।
वृन्दावन में गाय चराते हुए जब वह मोहन मुरली बजाता है तो सबका मन मोह लेता है।
मीरा कहती है कि मैं बगीचों के बीच ही ऊँचे ऊँचे महल बनाउंगी और कुसुम्बी साड़ी पहन कर अपने प्रिय के दर्शन करुँगी । मीरा कहती हैं कि हे !मेरे प्रभु गिरधर स्वामी मेरा मन आपके दर्शन के लिए इतना बेचैन है कि वह सुबह का इन्तजार नहीं कर सकता। मीरा चाहती है की श्री कृष्ण आधी रात को ही जमुना नदी के किनारे उसे दर्शन दे दें।
कला पक्ष:
- राजस्थानी भाषा का प्रयोग है|
- ‘भाव-भगती’, ‘मोर-मुकुट’, ‘मोहन-मुरली’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है|
- ‘ऊँचा-ऊँचा’, ‘बिच-बिच’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
- संपूर्ण पद्य में माधुर्य गुण विद्यमान है|
- गेयात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।