संदेह ( summary)
संदेह कहानी जयशंकर प्रसाद जी द्वारा लिखी गयी गयी सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से एक है। जिसमें उन्होंने विभिन्न प्रकार की परिस्थिति को दर्शाया है। जो कि मनुष्य के मन में भ्रम एवं संदेह उत्पन्न करके उसके मन में हलचल कर देती हैं । संदेह नामक कहानी में इस तथ्य को उजागर किया गया है कि परिस्थितियाँ किस प्रकार मानव मन में संदेह और भ्रम पैदा कर देती है | रामनिहाल श्यामा नाम की एक महिला के यहाँ काम करता है | श्यामा विधवा है रामनिहाल उसे अपना शुभचिंतक, मित्र तथा रक्षक मानता है | एक दिन श्यामा के घर मोहन बाबू और मनोरमा नाम के दंपत्ति आए तथा राम निहाल के साथ गंगा का सौंदर्य निहारने गए | पति-पत्नी की बातचीत सुनकर यह स्पष्ट हो गया कि उन दोनों में वैचारिक मतभेद है | मोहन बाबू को संदेह है कि ब्रजकिशोर उसे पागल सिद्ध करना चाहते हैं जिससे कि ब्रजकिशोर उसकी संपत्ति के प्रबंधक बन सके राखी हाल के मन में यह संदेशा भ्रम उत्पन्न हो गया कि मनोरमा उसे चाहती है क्योंकि उसने उसे अनेक पत्र लिखे हैं | राम निहाल एक चित्र को देखकर आँसू बहाता है | यह चित्र श्यामा का है | रामनिहाल के हाथ में अपना चित्र देखकर श्यामा को आश्चर्य होता है | वह रामनिहाल के मन के संदेह को दूर करने के लिए कहती है – “न तो मनोरमा दुश्चरित्रा है और न ही वह तुमसे प्यार करती है तुमने मुझे मन के विनोद के लिए अच्छा साधन जुटाया है | वास्तविकता यह है कि मनोरमा अपनी सहायता के लिए तुम्हें बुला रही है जाओ उसकी सहायता करके लौट आओ फिर मेरे यहाँ लौट आना | तुमको अभी यहीं रहना होगा | “
कहानी का उद्देश्य
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित संदेह कहानी मनुष्य के मनोविज्ञान पर आधारित है | विभिन्न पात्रों की मानसिक स्थिति को सुंदर एवं प्रभावपूर्ण ढंग से व्यक्त किया है | मनुष्य परिस्थितियों के आधार पर , अन्य व्यक्तियों के हाव-भाव , संवाद के आधार पर अपनी एक सोच निश्चित कर लेता है, जो कभी – कभी संदेह का रूप धारण कर लेती है और मनुष्य मानसिक रूप से विक्षिप्त जैसा हो जाता है | यह संदेह भविष्य में मानसिक रोग का कारण भी बन सकता है, अस्थाई संदेश को दूर करना भी नितांत आवश्यक है | कहानी के पात्र रामनिहाल एवं मनोहर बाबू दोनों संदेश से ग्रसित है | अंत में श्यामा रामनिहाल का संदेश दूर करती है तथा अनुमान है कि रामनिहाल ने भी मनोरमा की सहायता कर उसके पति के मन में अपने प्रभु को अवश्य दूर किया होगा |
शीर्षक की सार्थकता
कहानी का शीर्षक संदेश नितांत सार्थक एवं सटीक है | संपूर्ण कथा नाथू पात्र रामनिहाल तथा मोहनलाल के मन में उत्पन्न शक को लेकर ही आगे बढ़ता दिखयी देता है | राम निहाल को संदेह है कि मनोरमा उस पर मुफ्त है तथा वह स्वयं श्यामा पर | दूसरी ओर मोहन बाबू यह मान बैठे हैं कि बृजकिशोर उनकी संपत्ति पर अधिकार करना चाहते हैं, जिसमें उनकी पत्नी का चोरी-छिपे सहयोग है | यह संदेश ही है जिस कारण उनके विचारों में असंतुलन की स्थिति पैदा होती है | कहानी के अंत में संदेह का निराकरण भी श्यामा द्वारा किया गया है | अतः शीर्षक उचित है |
चरित्र चित्रण
रामनिहाल
रामनिहाल एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था अपनी कल्पनाओं को साकार करने के लिए स्थान – स्थान पर घूमता रहा | कभी व व्यवसाय करता और कभी नौकरी | इसी कारण उसका कोई स्थाई निवास नहीं था | उसके पास एक संदूक और सीमित सामान ही था , अनेक स्थानों पर भटकने के पश्चात उसे श्यामा नामक एक विधवा स्त्री के घर आश्रय मिला यहाँ उसे घर जैसा वातावरण मिला राम निहाल श्यामा में सच्चे हितैषी मित्र एवं संरक्षक की छवि देखी कहानी में रामनिवास की मन:स्थिति को प्रकट किया गया है | कहानी मे मनोरमा के व्यवहार से उसे यह संदेह हुआ कि मनोरमा के मन में उसके प्रति कोमल भावनाएँ है, किंतु वह श्यामा से प्रेम करता है | यह उसका संदेह मात्र था | श्यामा ने उसके मन की स्थिति को जान लिया और उसके संदेह को दूर किया | इस प्रकार मानसिक उथल-पुथल से युक्त उसका चरित्र है |
श्यामा
श्यामा एक विधवा एवं आदर्श स्त्री है | उसने अपने घर में असहाय , दीन – हीन बच्चों को शरण दी है | रामनिहाल उसी के घर में काम करता है | वह बहुत समझदार तथा चरित्रवती महिला है | वह रामनिहाल की हितैषी एवं संरक्षक बन उसका उचित मार्गनिर्देशन करती है, अपनी कुशलता और दूरदर्शिता का परिचय देते हुए उसके भ्रम तथा संदेह को दूर करती है जो भ्रम मनोरमा तथा श्यामा को लेकर उसने पाल रखा था | इस प्रकार रामनिहाल के मन का संदेश दूर करके वह उसे मनोरमा की सहायता करने भेज देती है और कुछ दिनों के बाद अपने पास आ जाने का आग्रह करती है | इस प्रकार कहानी में श्यामा का अति समझदार एवं बुद्धिमानी रूप उभर कर सामने आया है |
कहानी के मुख्य बिंदु
- ठाकुर बेनी माधव सिंह गौरीपुर गाँव के ज़मींदार थे जिनके पितामह बड़े संपन्न थे, पर उनकी वर्तमान आय एक हजार रुपए वार्षिक से अधिक न थी ।
- ठाकुर साहब के दो बेटे थे- बड़े का नाम श्रीकंठ सिंह और छोटे का नाम लाल बिहारी सिंह था ।
- श्रीकंठ सिंह दुर्बल शरीर का था, जबकि लाल बिहारी सिंह दोहरे बदन का सजीला जवान था।
- श्रीकंठ सिंह बी० ए० होने पर भी पाश्चात्य सामाजिक प्रथाओं के प्रेमी नहीं थे। वे सम्मिलित परिवार के पक्षधर थे।
- श्रीकंठ सिंह की पत्नी – आनंदी उच्च कुल की लड़की थी। उसके पिता ठाकुर भूप सिंह छोटी-सी रियासत के ताल्लुकेदार थे।
- विवाह के पश्चात् जब आनंदी नए घर में आई तो उसने स्वयं को इस नए वातावरण के अनुरूप ढाल लिया।
- एक दिन लाल बिहारी सिंह दो चिड़ियाँ लेकर आया और भाभी से उन्हें पकाने को कहा। आनंदी ने जितना घी था वह सारा का सारा मांस में डाल दिया। दाल में डालने के लिए घी न बचा।
- दाल में घी न पाकर आनंदी और उसकी भाभी में नोंक-झोंक हो गई।
- लाल बिहारी ने क्रोध में आकर आनंदी के मैके पर व्यंग्य किया।
- आनंदी अपने मैके का अपमान नहीं सह सकी। बोली, “वहाँ इतना घी तो नित्य नाई-कहार खा जाते हैं।”
- लाल बिहारी ने क्रोध में आकर एक खड़ाऊँ आनंदी की तरफ़ फेंकी।
- आनंदी ने खड़ाऊँ हाथ से रोकी। उसका सिर तो बच गया, पर उँगली में चोट आई। वह खून का घूँट पीकर रह गई।
- श्रीकंठ सिंह शनिवार को घर आया करते थे। उनके आने पर आनंदी ने आँखों में आँसू भरकर उन्हें सारी घटना कह सुनाई और अपनी उँगली की चोट भी दिखाई।
- श्रीकंठ सिंह क्रोध में भरकर अपने पिता के पास गए और बोले, ” इस घर में मेरा निर्वाह न होगा।”
- उनके पिता ने उन्हें समझा-बुझाकर शांत करने का प्रयास किया, पर श्रीकंठ सिंह बोले, “मैं लाल बिहारी के साथ इस घर में नहीं रह सकता।”
- लाल बिहारी अपने भाई का बहुत आदर करता था। भाई के मुख से ऐसी बात सुनकर उसे बहुत ग्लानि हुई। वह फूट-फूटकर रोने लगा। उसने स्वयं ही घर छोड़ने का निश्चय कर लिया। उसने आनंदी से क्षमा माँगी।
अवतरण संबंधित प्रश्न उत्तर
(क) बात क्या है ? कुछ सुनूँ भी ? तुम क्यों जाने के समय ऐसी दुखी हो रहे हो ? क्या हम लोगों से कुछ अपराध हुआ ?
i) वक्ता और श्रोता कौन है ?
उत्तर– वक्ता श्यामा है और श्रोता रामनिहाल |
¡¡) श्रोता के हाथों में क्या था?
उत्तर– श्रोता रामनिहाल के हाथों में कागजों का एक बंडल था, जिसे संदूक में रखने से पहले वह खोलना चाहता था |
¡¡¡) कमरे में कौन-कौन सी दो प्रतिमाएंँ थी ?
उत्तर– कमरे में तो प्रतिमाएं थी – बुद्धदेव की और रामनिहाल की |
iv) श्रोता ने अपनी रोने का क्या कारण बताया ?
उत्तर– श्रोता रामनिहाल प्रायश्चित करना चाहता था , इसलिए रो रहा था |
(ख) मैं चतुर था, इतना चतुर जितना मनुष्य को नहीं होना चाहिए, क्योंकि मुझे विश्वास हो गया है कि मनुष्य अधिक चतुर बनकर अपने को अभागा बना लेता है और भगवान की दया से वंचित हो जाता है।
(i) वक्ता कौन है ? उसका परिचय दीजिए।
उत्तर – वक्ता रामनिहाल है। वह भारत के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में छोटा-मोटा व्यवसाय, नौकरी और पेट पालने की सुविधाओं को खोजता हुआ अब श्यामा के यहाँ रहता है।
(ii) वक्ता ने किन चीज़ों को अपने उत्तराधिकार का अंश बताया ?
उत्तर – वक्ता ने अपने संदूक और थोड़े-से सामान को अपने उत्तराधिकार का अंश बताया।
(iii) वक्ता ने किसे मृगमरीचिका बताया ?
उत्तर – रामनिहाल की महत्त्वाकांक्षा और उन्नतिशील विचार उसे बराबर दौड़ाते रहे। वह किसी भी स्थान पर जमकर न ठहर सका । कभी-कभी उसे ऐसा मालूम होता था कि अब वह अपने आप पर विजयी हो गया है और अब वह संतुष्ट होकर एक स्थान पर चैन से टिक जाएगा, परंतु यह मृगमरीचिका थी।
(iv) वक्ता जिनके यहाँ अब तक नौकरी करता था, उनके बारे में उसने क्या कहा ?
उत्तर – वक्ता (रामनिहाल) ने बताया कि अब तक वह जिनके यहाँ नौकरी करता रहा, वे लोग बड़े सुशिक्षित और सज्जन हैं। उसे मानते भी बहुत हैं।