प्रश्न – क्या निराश हुआ जाए’ शीर्षक निबंध के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – ‘क्या निराश हुआ जाए‘ शीर्षक निबंध हिंदी के सुप्रसिद्ध चिंतक, इतिहासकार व निबंधकार हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित है। वे भारतीयता, भारतीय संस्कृति तथा श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा पर आधारित निबंधों में अपने मन-मस्तिष्क की बात पाठकों के सामने रखते हैं। इसीलिए उनके निबंधों में आत्मीयता का गुण सर्वत्र विद्यमान रहता है।प्रस्तुत निबंध में आचार्य द्विवेदी ने आज के भारत और भारतवासियों की चिंतन-मनन शैली व आचार-विचार का मूल्यांकन किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि भौतिकवाद के प्रहार से आज हमारे सामाजिकों में कई प्रकार के संक्रमण आ चुके हैं, जो देश और मानवता के विरुद्ध पड़ते हैं। आज जीवन के उदात्त मूल्यों के प्रति आस्था डगमगाती दिखाई देती है परंतु इससे निराश होने की कोई बात नहीं है। उन्होंने तर्क दिया है कि सभी लोगों में, सब समय में निराशाजनक स्थितियाँ नहीं देखी जाती।आज भी मानवता, सेवा-भावना, ईमानदारी सच्चाई और आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति आस्था बनी हुई है। अनुपात में अंतर अवश्य आने लगा है परंतुष्ट नहीं हुए हैं। सपण के फेर में आकर ये मूल्य थोडे दय अवश्य गए है परंतु त्या निराश होने का कोई औचित्य नहीं।लेखक ने अपनी विचारधारा को पुष्ट करने के लिए अपने साथ जुड़ी बीती दो घटनाओं का वर्णन किया है। एक बार वरलो स्टेशन पर टिकट लेते समय दस रुपए के नोट की बजाय वो रुपए का नोट ससा देते हैं। थोड़ी देर बाद टिकट-खिड़को पर बैठा वह क्लर्क बाबू प्रत्येक व्यक्ति का चेहरा परखते-पहचानते. हुए उनके पास आता है। वह अत्यंत विनम्रता से भूल के कारण । अधिक दे दी गई धनराशी लौटा देता है। दूसरी घटना एक बस-यात्रा की है। एक बार लेखक बस द्वारा यात्रा कर रहा था। उसके साथ उसकी पत्नी तथा बच्चे भी थे। कोई पाँच मील की यात्रा तय करने के बाद बस एक सुनसान जगह पर रुक गई। सभी यात्री घबरा उठे। कंडक्टर एक साइकिल लेकर चलता बना। लोगों को संदेह हुआ क्योंकि दो दिन पहले भी इसी स्थान पर एक बस लूटी गई थी बच्चे पानी पानी चिल्ला रहे थे। कुछ नवयुवकों ने ड्राइवर को पकड़कर पीटने की योजना बनाई। ड्राइवर घबरा गया। लोगों ने उसे पकड़ लिया। उसने लेखक से आग्रह किया कि वह उसे बचाए लेखक स्वयं भी भयभीत था, परंतु उसने किसी प्रकार ड्राइवर को मारपीट से बचा लिया।लोगों ने ड्राइवर को मारा तो नहीं, पर बस से उतार कर एक जगह घेर कर रखा। उसी समय देखा कि एक खाली बस आ रही थी और उस पर हमारी बस का कंडक्टर सवार था। वह लेखक के बच्चों के लिए दूध और पानी भी लेकर आया था। यात्रियों ने ड्राइवर से क्षमा माँगी और आई हुई बस पर बैठकर बस अड्डे पर पहुंच गए।लेखक ने विचार दिया है कि उनके जीवन में ऐसी असंख्य घटनाएँ घटी हैं जिनसे सिद्ध होता है कि लोगों में ईमान, सत्यनिष्ठा, परोपकार, दया, सहयोग आदि मूल्यों के प्रति अभी भी वैसी ही आस्था है जैसी हमारे इतिहास व परंपरा में पाई जाती थी। अत: निराश होने की आवश्यकता कदापि नहीं है। इस प्रकार यह शीर्षक सटीक तथा सार्थक है।

प्रश्न – लेखक की बस की यात्रा की घटना को अपने शब्दों में लिखिय।

उत्तर- एक बार लेखक बस में यात्रा कर रहा था उसके साथ उसकी पत्नी और तीन बच्चे थे। बस में कुछ खराबी थी तो बस एक सुनसान स्थान पर खराब हो गई रात के कोई दस बजे थे बस के कंडक्टर ने बस के ऊपर से अपनी साईकिल उतारी और लेकर चला गया। बस में बैठे लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। किसी ने कहा-यहाँ तो डकैती होती है, दो दिन पहले ही यहाँ एक बस को लूट लिया गया था। लेखक के बच्चे भूख एवं प्यास के कारण रो रहे थे तभी कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को पकड़कर मारने-पीटने की योजना बनाई ड्राइवर ने लेखक से बचाने की विनती की परन्तु कोई भी सुनने को तैयार न था और कहने लगे आपको नहीं पता कंडक्टर को तो पहले ही डाकुओं के पास भेज दिया है तभी क्या देखा कि कंडक्टर एक खाली बस लेकर आ रहा था वह अड्डे से नई बस लाया था फिर उसने लेखक के पास आकर उन्हें थोड़ा दूध और एक लौटे में पानी दिया और कहा- पंडित जी, बच्चों का रोना मुझसे देखा नहीं गया। रास्ते में पानी और दूध मिल गया तो लेता आया। सबने उसका धन्यवाद किया और ड्राइवर से माफी माँगी बारह बजे से पहले वह सब बस अड्डे पहुँच गए।

प्रश्न – लेखक ने आशावादी दृष्टिकोण कैसे प्रस्तुत किया है।

उत्तर- लेखक ने आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करते कहा है कि चाहे आज भारत में भ्रष्टाचार, डकैती, चोरी, तस्करी का शिकार हो रहा है परन्तु आज भी भारत से अच्छाई समाप्त नहीं हुई है बुराई का बोलबाला जरूर है परन्तु अच्छाई अभी भी भारतवर्ष में व्याप्त है। रेलवे स्टेशन की घटना बताते हुए लेखक ने इसी दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है कि गलती से रेलवे बाबू को दस की जगह सौ का नोट देने पर वह उन्हें ढूँढते हुए रेल के डिब्बे में आ गए और नब्बे रुपये वापिस दिए तो लेखक कहते है कि हम कैसे मान जाए कि देश से ईमानदारी और सच्चाई समाप्त हो गई है इसी प्रकार बस यात्रा के दौरान रास्ते में सुनसान स्थान पर बस खराब हो जाने पर कंडक्टर बस स्टैण्ड से जाकर नई बस लेकर आता है और पंडित जी के बच्चों के लिए दूध भी तो यह कैसे माना जाए कि भारतवर्ष से मनुष्यता समाप्त हो गई है। इसलिए यदि आज मनुष्य की बनाई विधियां गलत नतीजे तक पहुँच रही है तो उन्हें बदलना होगा इन्हें बदला भी जा रहा है इसलिए आशा की ज्योति बुझी नहीं है महान् भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है। बनी रहेगी। लेखक ने इन्हीं के माध्यम से आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।

अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1.”एक बार मैं बस में यात्रा कर रहा था। मेरे साथ मेरी पत्नी और तीन बच्चे थे। बस में कुछ खराबी थी रुक-रुक चलती थी। गंतव्य से कोई आठ मील पहले ही एक निर्जन सुनसान स्थान में बस ने जवाब दे दिया।”

प्रश्न – बस के यात्रियों को बस कंडक्टर पर क्यों तथा कब संदेह हुआ ?

उत्तर- जब गंतव्य से लगभग आठ किलोमीटर पहले ही एक सुनसान स्थल पर बस रुक गई तब रात के दस बजे थे। कंडक्टर बस के ऊपर गया और साइकिल उतारकर चला गया। तब लोगों को संदेह हुआ।

प्रश्न – यात्रियों ने कैसी बातें करनी शुरू कर दी ?

उत्तर- यात्रियों ने डकैती, लूट और इसी प्रकार की भयानक संभावनाओं के बारे में बातें करनी शुरू कर दीं।

प्रश्न – नवयुवकों ने ड्राइवर के साथ कैसा बर्ताव किया ?

उत्तर- कुछ नवयुवकों ने ड्राइवर को पकड़कर मारने-पीटने की योजना बना ली। लोगों ने उसे पकड़ लिया। उन लोगों ने ड्राइवर को मारा-पीटा तो नहीं, पर उसे बस से उतार कर एक जगह पर घेर लिया।

प्रश्न – जब लेखक ने यात्रियों को समझाने का प्रयास किया, तो उन्होंने क्या उत्तर दिया ?

उत्तर- जब लेखक ने यात्रियों को समझाने का प्रयत्न किया तो वे उनकी बात सुनने को तैयार नहीं हुए। वे कहने लगे “इसकी बातों में मत आइए, धोखा दे रहा है। कंडक्टर को पहले ही डाकुओं के यहाँ भेज दिया है।”

2. मैं एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से मैंने दस की बजाए सौ रुपए का नोट दिया और जल्दी-जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गया………..

प्रश्न – रेलवे स्टेशन पर लेखक के साथ क्या घटना घटित हुई ?

उत्तर- रेलवे स्टेशन पर जब लेखक ने टिकट ली तो गलती से दस के नोट की बजाए सौ का नोट टिकट बाबू को दे दिया तथा जल्दी-जल्दी में गाड़ी में बैठ गए।

प्रश्न – टिकट वाले बाबू ने क्या कहा ?

उत्तर- थोड़ी देर बाद जब टिकट वाले बाबू लेखक को ढूँढते गाड़ी में आए तो नब्बे रुपये लेखक के हाथ में वापिस देते उन्होंने कहा- यह बहुत बड़ी गलती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मैंने भी नहीं देखा उसके चेहरे पर विचित्र संतोष का भाव था।

प्रश्न – लेखक ने क्या अनुभव किया ?

उत्तर- लेखक ने इस घटना के बाद अनुभव किया कि मैं कैसे मान लूँ कि दुनिया से सच्चाई और ईमानदारी लुप्त हो गई है चाहे अनेक ऐसी घटनाएं है जो नहीं होनी चाहिए परन्तु भारतवर्ष से अच्छाई अभी समाप्त नहीं हुई।

प्रश्न – लेखक किस डिब्बे में बैठा था?

उत्तर- लेखक सैकिंड क्लास के डिब्बे में बैठा था ।