समर का चरित्र – चित्रण

समर राजेंद्र यादव द्वारा लिखित उपन्यास सारा आकाश का प्रमुख पात्र है | उपन्यास की संपूर्ण कथा समर . के जीवन के इर्द-गिर्द ही घूमती है |

  • पढ़ने वाला – समर पढ़ने वाले विद्यार्थी के रूप में सामने आता है उसकी लगन पढ़ाई में है इसलिए वह नहीं चाहता था कि उसका विवाह कर दिया जाये उसकी इच्छा के प्रतिकूल विवाह होने से उसकी पढ़ाई में बाधा पड़ती है| घर में रोज किसी न किसी बात पर चिक – चिक होती रहती इसलिए वह अक्सर अपने मित्र दिवाकर के घर में पढ़ने के लिए चला जाता है |
  • भविष्य के प्रति आशावादी – समर भविष्य के प्रति आशावादी है इसी कारण वह अभी शादी के पक्ष में नहीं था और अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहता था|
  • आत्म निर्भर – समर आत्मनिर्भर बनना चाहता है इसी कारण वह अपनी थर्ड ईयर की पढ़ाई शुरू करने के लिए पार्ट टाइम नौकरी करता है ताकि अपनी पढ़ाई का खर्चा खुद उठा सके |
  • विचारात्मक – समर एक विचारात्मक व्यक्ति का स्वामी है इसी कारण वह शिरीष भाई साहब से भी प्रभावित होता है उसके द्वारा संयुक्त परिवार , भारतीय संस्कृति इत्यादि पर व्यक्त उनके विचारों को सुनता है और अपने विचारों को प्रकट करता है एवं उनसे प्रभावित भी होता है|
  • सच्चा मित्र – समर दिवाकर का सच्चा मित्र है वह उसके साथ अपनी सभी भावनाओं को , अपनी मुसीबतों को, परेशानियों को सब उसे बताता है और उससे सलाह भी लेता है |
  • पुराने विचारों और पहनावे वाला – समर पुराने विचारों वाला व्यक्ति और साधारण कपड़े पहनने वाला है| उसे चटक – मटक फैशन वाले कपड़े पसंद नहीं है और ना ही वह इतना खर्च कर सकता है |
  • आर्थिक विनम्रता का शिकार – घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उससे बहुत कुछ सुनना पड़ता है |
  • निराशावाद का शिकार – उपन्यास के अंत में जब उसकी नौकरी छूट जाती है तो वह निराशावाद का शिकार हो जाता है घर में काफी कहासुनी के बाद जब बाहर जाता है तो कभी उसका मन करता है कि आत्महत्या कर ले |
  • संयुक्त परिवार की घुटन का शिकार – समर संयुक्त परिवार की घुटन का शिकार युवक है | उसे डर – डर कर जीना पड़ता है | अम्मा के कटाक्ष , बाबूजी का आतंक, भाभी के व्यंग – बाण – सब उसे दबाते रहते हैं|
  • समझदार – समर समझदार व्यक्ति है| इसी कारण वह प्रभा की स्थिति को समझता है वह जानता है कि प्रभा किस प्रकार सारा दिन घर के कामों में पिसती है इस कारण व उसका ख्याल रखता है |
  • आजाद देश के निराश युवा वर्ग का प्रतीक – समर आजाद देश के निराश युवा वर्ग का प्रतीक है जो देश की आजादी के साथ प्रगति के मार्ग पर आगे तो बढ़ना चाहता है परंतु समाज की स्थित, उसके पाँव की बेड़ियाँ उसे आगे बढ़ने नहीं देती उसे हर तरफ दरवाजे बंद दिखाई देते हैं जिस कारण वह आत्महत्या के भाव तक पहुंच जाता है यह स्थिति समर की है |
  • संवेदनशील – समर एक संवेदनशील युवक है| मुन्नी के प्रसंग में उसका आक्रोश इसी संवेदनशीलता का प्रतीक है| प्रभा के प्रति उसका बदलता व्यवहार भी उसके मन में भरे करुणा के सागर की ओर संकेत करता है|

प्रभा का चरित्र – चित्रण

प्रभा राजेंद्र यादव द्वारा लिखित यथार्थवादी उपन्यास सारा आकाश की नायिका है | लेखक ने उसका चित्रण अत्यंत गरिमामयी घरेलू और सुसंस्कृत स्त्री के रूप में दिखाया है| उसके चरित्र में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं:-

  • मुख्य पात्रा – प्रभा उपन्यास सारा आकाश के प्रमुख पात्र है जो एक सुशिक्षित समझदार लड़की है |
  • शिक्षित , सुसंस्कृत एवं सुशील -उपन्यासकार ने प्रभा को एक शिक्षित युवती के रूप में दिखाया है| जिस समय का यह उपन्यास है , उस समय में प्रभा का मैट्रिक पास होना अत्यंत महत्व रखता है|मैट्रिक पास होने पर भी प्रभा सुशिक्षित तथा सुशील है| उसके मन- मस्तिष्क में इस बात का कोई भी घमंड नहीं है| वह सबसे विनम्रता से पेश आती है |
  • घर के प्रति समर्पित – प्रभा घर के प्रति पूर्ण समर्पित है वह घर का सारा काम करती है कभी भी कुछ नहीं बोलती है| सारा दिन घर के काम में व्यस्त रहती है सुबह से लेकर देर रात तक स्वयं काम करती है|
  • सहनशीलता – प्रभा इतनी सहिष्णु है कि अपने ऊपर किया गया हर प्रकार का दुर्व्यवहार चुपके से सह जाती है| उसके सहनशीलता की चरम सीमा दिखाई देती है| उसे कभी किसी से ऊँचा बोलते नहीं सुना | न ही वह किसी अनावश्यक वाद-विवाद में पढ़ती है | बल्कि अम्मा की डाँट, दहेज के ताने, निरर्थक लाँछन आदि भी उसकी सहनशीलता की शीतलता को कम नहीं कर पाते हैं |
  • पति के भविष्य के सपनों की साथी – समर के भविष्य के सपनों की वह साथी थी वह समर का पूरा साथ देती है उसके नौकरी जाने पर वह सुबह जल्दी उठकर उसके लिए खाना बनाती है भविष्य के सपनों की बातों में पूरे विचार व्यक्त करती |
  • संवेदनशीलता – प्रभा संवेदनशील नारी है उसके मन में भावुकता और करुणा की तरलता है| वह अपने इस गुण के कारण समर के विरुद्धों और विरोधों भरे दृष्टिकोण को अनुकूल बनाने में सफल हो जाती है |
  • रूढ़िवाद की विरोधी – प्रभा पढ़ी-लिखी होने के कारण रूढ़िवादी विचारों की विरोधी भी थी |अंधविश्वास करने में उसकी कोई रुचि नहीं है| वह थोथी और प्राणहीन रूढ़ियो से विद्रोह करती है| वह सब का सम्मान करती है परंतु पर्दे की प्रथा को सम्मान का सूचक नहीं मानती है|
  • मर्यादा- भावना – उपन्यासकार ने प्रभा को एक मर्यादा में रहने वाली स्त्री के रूप में चित्रित किया है |उसमें उद्दंडता या अशिष्टता का लेशमात्र भी अंश नहीं है| वह जानती है कि संयुक्त परिवार में किस प्रकार की मर्यादा का पालन करना पड़ता है |
  • कार्यकुशल – प्रभा एक कार्यकुशल स्त्री है | समर की उपेक्षा के बावजूद प्रभा संयुक्त परिवार की पूरी -पूरी व्यवस्था संभाल लेती है | वह घर के सभी कार्यों को बहुत ही लगन से करती है वह हारती नहीं |उसे अपनी कार्यकुशलता पर भरोसा था |
  • जीवन – शक्ति से भरपूर – प्रभा जीवन शक्ति से भरपूर जीवन की बड़ी – बड़ी मुसीबतों से भी वह नहीं घबराती जब समर उससे पूछता भी है कि प्रभा इतनी मुसीबतो कष्टों और निराशाओं में भी तुम्हारा दिल नहीं घबराता क्या तुम्हारे मन में कभी पराजय का भाव नहीं आता तो वह कहती है – ” मुझे तुम अभी नहीं जानते मुझ में बहुत ज्यादा जीवन – शक्ति है इससे भी ज्यादा मुसीबतों में मैं विचलित नहीं हो सकती “|

दिवाकर का चरित्र चित्रण

दिवाकर राजेंद्र यादव द्वारा लिखित सारा आकाश शीर्षक उपन्यास का महत्वपूर्ण सहायक पात्र है| वह समर का अच्छा दोस्त है तथा उसके दु:ख – सुख का साथी है | वह समय की भावनाओं , व्यवस्थाओं और अभाव को अच्छी तरह समझता है उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं –

  • आदर्श मित्र – दिवाकर एक आदर्श मित्र है | वह हर परिस्थिति में बिना किसी रूकावट के समर की सहायता करता है समर की परेशानियों को दूर करने में मदद करता है | उसको नौकरी दिलाने में उसकी सहायता करता है |
  • विवाहित छात्र – दिवाकर एक विवाहित छात्र है | दिवाकर उसी प्राचीन सोच का शिकार हो जाता है | जब वह इंटर में पढ़ रहा था तभी उसका विवाह किरण से हो जाता है | उसका वैवाहिक जीवन सुखी है| वह अपनी पत्नी किरन से बहुत लगाव है |
  • हँसमुख – दिवाकर एक हँसमुख युवक है | उससे प्रायः हास – परिहास करते पाया गया है | वह गंभीर से गंभीर क्षणों में भी हँसी मजाक की आदत को ओझल नहीं होने देता है | एक बार समर के सुबह सात बजे ही घर पर आने पर वह उसे मजाक में कहता है – “” तेरी बीवी तो मैंके में है, अब बीबी वालों के आराम से क्यों जलता है |””
  • आधुनिक विचारों वाला – दिवाकर आधुनिक विचारों वाला युवक है| वह अपने घर वालों के दबाव में न आकर अपनी पत्नी किरण को खूब प्रसन्न रखता है | वह उसे बाहर घुमाने और सिनेमा दिखाने भी ले जाता है |
  • सुखद दांपत्य जीवन – दिवाकर का दांपत्य जीवन अत्यंत सुखद है | इसका कारण यह है कि वह बड़ी सूझबूझ से घर की व्यवस्था देखता है | वह अपनी माँ और पत्नी किरण के बीच संतुलन बनाकर चलता है | यदि माँ कोई रूढ़िवादी और परंपरागत बात कहती है | तो वह सही दिशा निर्देश करता है |
  • उदार हृदय का स्वामी – दिवाकर उदार हृदय वाला व्यक्ति है | वह समर की हर प्रकार से सहायता के लिए तैयार रहता है | वह उसका सच्चे अर्थ में मित्र हैं | उसका हृदय उदार है वह खुशमिजाज एवं स्वतंत्र विचारों का स्वामी है | उस पर आजकल के स्वार्थी युग का प्रभाव नहीं है | दिवाकर एक समर्थ मित्र व सजीव युवा के रूप में चित्रित हुआ है | वह एक सफल पति और आदर्श मित्र है | उसमें आधुनिक विचारों का व्यावहारिक रूप दिखाई देता है | इसलिए रूढ़िवादी विचारों का विरोध करता है |

भाभी का चरित्र चित्रण

‘सारा आकाश’ उपन्यास राजेंद्र यादव द्वारा लिखा गया एक यथार्थवादी उपन्यास है। इस उपन्यास के कथानायक (समर) की भाभी मध्यवर्गीय परिवार की परंपरागत नारियों का आदर्श प्रस्तुत करती है जिसमें रूढ़िग्रस्तता, ईर्ष्या, और दमन की नीति शामिल रहती है। वह समर के बड़े भाई धीरज की पत्नी है और संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी बहू है। उसके चरित्र में निम्नलिखित – प्रवृत्तियाँ देखी जा सकती हैं –

  • वाचाल – भाभी वाचाल है अर्थात् वह बोलती बहुत है बात – बात पर लड़ना बोलना उनकी आदत है अम्मा के कान भी वही भरती रहती है |
  • ईर्ष्यालू स्वभाव – भाभी का स्वभाव ईर्ष्यालू है वह प्रभा से ईर्ष्या भी करती है इसी कारण वह प्रभा के पहले दिन खाना बनाने पर दाल में नमक ज्यादा डाल देती है, और उसके पढ़ी-लिखी अधिक सुंदर समझदार होने पर भी उससे ईर्ष्या करती है

  • घरेलू नारी – भाभी को उपन्यास में एक घरेलू स्त्री के रूप में दिखाया गया है। वह पढ़ी-लिखी नहीं है। परंतु घर के काम-काज में उसे पूरा कौशल प्राप्त है। वह गृह-व्यवस्था को पूरी तरह अपने हाथ में ले लेती है। उसे घर-परिवार के सुख-दुःख की पूरी समझ है। वह घर की स्थितियों के अनुसार बदलना जानती है।

  • चुगलखोर – भाभी चुगलखोर स्वभाव की है चुगली करना उनकी आदत है प्रभा के विरुद्ध कभी वह समर के कान भरती है , तो कभी अम्मा को बातें सुनाती है , वह समर को तभी प्रभा की चुगली लगाते कहती है – ” लालाजी प्रभा को थोड़ा – सा अपनी पढ़ाई और खूबसूरती को लेकर गुमान है |”

  • रूढ़िवादी – भाभी एक रूढ़िवादी स्त्री है। उसे गली-सड़ी मान्यताओं पर पूरा विश्वास है। वह शगुन-शास्त्र, जादू-टोना, टोटका, पूजा-पाठ आदि के संबंध में पूरी आस्था रखती है। उसकी पुत्री के नामकरण संस्कार के अवसर पर प्रभा ने गणेश की मूर्ति को मिट्टी का ढेला समझ कर उससे बर्तन साफ़ कर लिए। इस पर भाभी खूब कुहराम मचाती है। उसे अंधविश्वास है कि इस प्रकार गणेश जी के अनादर का कुफल उसकी बच्ची को भोगना पड़ेगा।

  • दहेज की पक्षधर -भाभी भी दहेज की बात पर अम्मा एवं बाबू जी का पूरा साथ देती है समर को भड़काते हुए वह कहती है कि “कौन माँ – बाप अपनी बेटी को नहीं देता, यह भी तो उनकी इकलौती बेटी है फिर भी ढंग से कुछ लिया दिया नहीं , आग लगे ऐसे पैसे को तो |”

  • अपनत्व की भावना से विहीन – भाभी में अपनत्व का भाव नहीं है ससुराल में रहते भी व अपने परिवार से विरक्त है किसी के प्रति उसके मन में प्रेम का भाव नहीं है | अमर के फेल होने पर वह कहती है कि ” बताओ अब बार-बार इतना खर्चा कौन करें |”

बाबूजी का चरित्र चित्रण

घर का मुखिया – बाबूजी घर के मुखिया है घर उन्हीं की इच्छानुसार चलता है वह घर के सभी फैसले करते हैं तथा उनके फैसले का कोई विरोध नहीं करता |

रूढ़िवादी – बाबूजी रूढ़िवादी विचारधारा से ग्रस्त है इसी कारण वह बार-बार प्रभा को कहते हैं कि इस लड़की को बिल्कुल शर्म नहीं है कि बड़े – बूढ़ों के सामने घूँघट ओढ़ ले | प्रभा के छत पर जाने,, वहाँ सिर धोने पर भी वह घर में काफी झगड़ा करते हैं कि यह बहू का क्या तरीका है |

क्रोधी स्वभाव – बाबूजी का स्वभाव क्रोधी है इसी कारण बात – बात पर घर में झगड़ा शुरू कर देते हैं | समर के सेकंड डिवीजन में पास होने पर , अमर के फेल होने पर, समर के नौकरी के पैसे घर पर न देने पर वह घर में अच्छा हंगामा करते हैं |

स्वार्थी स्वभाव – बाबूजी का स्वभाव स्वार्थी भी है इसी कारण उनका रवैया भाई साहब के प्रति तो नवाब है लेकिन समर के प्रति कठोर है क्योंकि बड़े भाई साहब के सिर पर सिर्फ पर घर चलता है

सेवा मुक्त गृहस्वामी – बाबूजी एक सेवामुक्त हो चुके गृह स्वामी है | उनकी बड़ी गृहस्थी है उनमें जिसमें चार पुत्र और एक पुत्री है | बड़े पुत्र धीरज का विवाह हो चुका है और संभर का अभी – अभी हुआ है अन्य दोनों पुत्र अभी छोटी कक्षाओं में पढ़ाई कर रहे हैं , इकलौती पुत्री मुन्नी का विवाह किया था परंतु वह ससुराल पक्ष के अत्याचारों के कारण यही रहती है | धीरज के अतिरिक्त घर में कमाने वाला कोई नहीं है इसलिए वह असहाय से अनुभव करते हैं

वात्सल्य – बाबूजी का चरित्र वात्सल्य से परिपूर्ण है आर्थिक तंगी के कारण भले ही थोड़े रूखे हो गए हो परंतु उनकी वात्सल्य भावना समाप्त नहीं हुई |

दहेज के लोभी – बाबूजी दहेज प्रथा में अटूट विश्वास रखते हैं | उनकी इच्छा रहती है कि पुत्र का विवाह ऐसी जगह हो जहाँ कुछ आशा की जा सके | प्रभा की शादी पर उनके द्वारा पर्याप्त दहेज न लाने पर भी प्रभा को बार-बार सुनाया जाता है कि वह शादी में लेकर क्या आई है |

बहू बेटी में अंतर मानने वाले – बहू और बेटी में अंतर समझते इसी कारण वह प्रभा को पर्दा करने को कहते हैं कि बहू भी अगर बिना पर्दे के घूमेगी तो बेटी और बहू में क्या अंतर रह जाएगा |

इस प्रकार उपन्यासकार ने बाबूजी को एक परंपरागत और रूढ़िवादी पिता के रूप में दिखाया है उनकी जिस भी सदस्य से जो आशा होती है वह पूरी न हो तो उनका क्रोध फूट पड़ता है | वैसे, वे एक वत्सल भाव वाले और अपने दायित्वों को भली प्रकार समझने वाले गृहस्वामी है |

अम्मा का चरित्र चित्रण

अम्मा राजेंद्र यादव द्वारा लिखित सारा आकाश शीर्षक उपन्यास की सहायक पात्र हैं | जो उपन्यास की कथा को आगे बढ़ाने में सहायक रही है | जिसे सास के रूप में चित्रित किया गया है उसके चरित्र में प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार है –

वृद्धा – अम्मा को उपन्यासकार राजेंद्र यादव ने एक वृद्धा स्त्री के रूप में चित्रित किया है वह कथा नायक समर की माँ और प्रभा की सास है संयुक्त परिवार वाले घर की स्वामिनी है |

धार्मिक स्त्री – अम्मा उपन्यास में अधिकतर भगवान का जाप करती दिखाई देती हैं, परंतु वह नाम जाप करते-करते बीच में झगड़ा करने से भी हिचकिचाती नहीं है | साथ-साथ प्रभा को डाँटती भी रहती हैं |

दहेज की लोभी – अम्मा दहेज की लोभी भी है तभी वह प्रभा को बार – बार ताने देती है कि लेने – देने के नाम पर इसके घरवालों ने दिया क्या है क्ह बात – बात पर प्रभा को ताने मारती है |

रूदिवादी विचारों वाली – अम्मा एक रूढ़िवादी स्त्री है | उसे उन सभी गली – सड़ी मान्यताओं से मोह है जो बीते जमाने की हो चुकी है |

करुणा के भाव से विरक्त – अम्मा में करुणा या दया का भाव दिखाई नहीं देता क्योंकि प्रभा के दिन रात काम करते रहने पर भी वह उसका पक्ष नहीं लेती बल्कि उसे बुरा भला कहती है |
इस प्रकार अम्मा उपन्यास की एक महत्वपूर्ण पात्र है |

मुन्नी का चरित्र चित्रण

मुन्नी राजेन्द्र यादव द्वारा लिखित उपन्यास ‘सारा आकाश’ की एक प्रमुख स्त्री पात्र है।मुन्नी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

सुसंस्कृत युवती – मुन्नी एक संस्कारवान युवती है। वह समर की छोटी बहन है। संयुक्त परिवार में पली बढ़ी है। उसे घर-परिवार और सम्बन्धों से जुड़ी परम्पराओं का भरपूर ज्ञान है। वह एक-डेढ़ वर्ष तक इन्हीं संस्कारों के बल पर अपने ससुराल में रहती है पर जब उस पर अधिक अत्याचार होने लगते हैं तो वह अपने मायके लौट आती है।

अर्द्धशिक्षित – मुन्नी की शिक्षा अधूरी रह गई है। सोलह सत्रह वर्ष की आयु में उसकी पढ़ाई छुड़वा दी जाती है। इस उम्र की युवतियों को अतिशीघ्र घर गृहस्थी में बाँध दिया जाता था।उपन्यासकार ने उपन्यास के माध्यम से यह संकेत दिया है कि यदि मुन्नी जैसी नारियाँ शिक्षित हों तो अपने पैरों पर खड़ी होकर समाज द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों का सामना कर सकती हैं।

उत्पीडित नारी – पुत्री समाज की रुढ़िवादी अस्वस्थ दृष्टि के कारण प्रताड़ना तथा उत्पीड़न का शिकार होने वाली युवती है। उसका जीवन दुःखों दरिद्रता तथा अभावों में व्यतीत होता है।

चरित्रहीन पति की पत्नी – मुन्नी एक चरित्रहीन पति की पत्नी है। उसका पति आवारा है। वह रात को न जाने कहाँ कहाँ घूमता फिरता है। मुन्नी का एक-डेढ़ वर्ष तो रोते-रोते व्यतीत हो गया। उसका पति उसे दो-दो, तीन-तीन दिन तक खाना भी नहीं देता था।

दहेज उत्पीड़ित – मुत्री को कम दहेज लाने के लिए ससुराल में बार-बार प्रताड़ित किया जाता है। मुन्नी के मायके वाले इतने समर्थ नहीं थे कि वे दहेज रूपी सामाजिक कलंक की आकांक्षाओं को पूरा कर सकें। उसके विवाह की व्यवस्था ही जैसे-तैसे की जा सकी थी परन्तु ससुराल जाते ही मुनी को दहेज रूपी नाग प्रतिदिन डंक मारने लगा।

संवेदनशील – मुन्नी एक संवेदनशील युवती है। उसमें करुणा का भाव अधिक है।पूरे परिवार में उसकी ही सहानुभूति प्रभा के साथ है। वह प्रभा के दर्द को भली प्रकार समझती है। इसका कारण यह भी है कि एक दुःखी ही दूसरे दुःखी के दर्द को समझ सकता है।

निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि मुन्नी उपेक्षा, उत्पीड़न और प्रताड़ना की जीती-जागती प्रतिमा है। उसने स्वयं अनेक कष्टों को झेला है। इसीलिए उसका अपनापन और संवेदनाएँ प्रभा के साथ हैं। उपन्यासकार तथा समर की सहानुभूति मुन्नी के साथ रहती है।

 

प्रश्न उत्तर

प्रश्न – समर का मन आत्म-ग्लानि से कब भर गया और क्यों? समझाकर लिखिए।

उत्तर – समर प्रसिद्ध उपन्यासकार राजेंद्र यादव कृत यर्थाथवादी उपन्यास ‘सारा आकाश’ का नायक है। उपन्यासकार ने उसका चरित्र दो भागों में चित्रित किया है। उपन्यास के प्रथम आधे चरण में समर एक दम्भी पुरुषप्रधान व नारी उत्पीड़क दृष्टि का प्रतीक बनकर आता है। उपन्यास के दूसरे चरण में उसकी दृष्टि सहिष्णु अनुशासित, तर्कशील, पत्नी-प्रेमी और न्यायसंगत व्यक्ति का उदाहरण प्रस्तुत करती है। समर एक संवेदनशील युवक है। वह पत्नी के प्रति होने वाले संयुक्त परिवार के दुर्व्यवहार व घरेलू हिंसा को निष्पक्ष होकर सोचता है, तो एकदम बदल जाता है। प्रभा की सहनशीलता उसे आत्म-ग्लानि से भर देती है। उसका व्यवहार बदलने लगता है और वह पत्नी के प्रति एकदम करुण तथा प्रेमिल हो उठता है।

समर और प्रभा के बीच सुहागरात से ही मन-मुटाव चल रहा था जो लम्बा खिंचता चला गया। विवाह के बहुत दिन बाद एक दिन आधी रात के समय छत पर अपनी पत्नी को रोता-सिसकता देख नायक समर का मन करुणाद्रवित हो उठता है और वह अपने निष्ठुर व्यवहार पर लज्जित हो, प्रभा से क्षमा माँगता है और दोनों के हृदय में एक-दूसरे के प्रति प्रेम तथा अपनाव की सरिता बहने लगती है।

प्रभा व समर दोनों रात-भर रो-रोकर अपने हृदय को हल्का करते रहे, एक-दूसरे के प्रति पूर्णतः आत्म समर्पित हो एक नया जीवन बिताने की सौगंध खाते रहे। उस मिलन ने दोनों के बीच अहं की दीवार को तोड़ दिया। प्रात:काल होते ही प्रभा तो घर का काम काज करने के लिए रसोई-घर में चली गई और समर को एक नयी अनुभूति हुई, उसे सब कुछ उल्लासमय और प्रफुल्लित दिखने लगा।

वास्तव में समर और प्रभा के बीच मन-मुटाव का मुख्य कारण असमय विवाह था। छात्रावस्था में विवाह हो जाने पर समर समस्याओं से घिर जाता है। वह आर्थिक व मानसिक दृष्टि से माता-पिता पर आश्रित था। उसकी स्वतंत्र चिंतन-धारा उसे एक अहंवादी पति बना देती। इसी कारण उसका व्यवहार अपनी सुशील, सुंदर व सुशिक्षिता पत्नी के प्रति कठोर होता गया। वह उसकी हर उचित प्रक्रिया पर भी प्रश्न चिह्न लगाने लगा था। परन्तु इस घटना ने उसे भीतर तथा बाहर से बदल दिया।

प्रश्न – “सारा आकाश” उपन्यास में वर्णित संयुक्त परिवार की समस्याओं के बारे में शिरीष भाई साहब के विचारों को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर: ‘सारा आकाश’ उपन्यास हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार राजेंद्र यादव द्वारा रचित एक पारिवारिक उपन्यास है। इसमें उन्होंने समर के मित्र शिरीष भाई साहब के माध्यम से भारतीय संयुक्त परिवारों की समस्याओं और कुंठाओं का वर्णन किया है।

प्रस्तुत उपन्यास में जिस संयुक्त परिवार की चर्चा हुई है,उसमें बाबूजी-अम्मा, उनके चार पुत्र, दो बहुएँ और दुखद दांपत्य की शिकार विवाहिता पुत्री भी है। इतने सदस्यों के परिवार में आर्थिक स्रोत केवल दो हैं-एक बाबूजी की 25 रु० की मासिक पेंशन और दूसरा बड़े पुत्र धीरज के वेतन के कुल 99 रु० मासिक। यहीं से सारे दुःख, अभाव और ईर्ष्या-भाव पनपने शुरू हो जाते हैं।

उपन्यासकार ने संकेत दिया है कि जहाँ तक संयुक्त परिवार के टूटने के कारणों का संबंध है, यह सत्य है कि समर अपनी पत्नी प्रभा की उपेक्षा करता था और चाहता था कि वह घर में अधिक-से-अधिक काम करे, किंतु क्या उसकी सास ननद या जिठानी का यह फर्ज नहीं था कि वे इस तथ्य की ओर ध्यान देती? बेचारी एक पढ़ी-लिखी लड़की को सारे दिन गृहकार्यों में लगाए रखना कहाँ तक उचित है? यदि समर और प्रभा के संबंध मधुर होते तो प्रभा से इस प्रकार काम लिया जा सकना कठिन था? जैसे ही प्रभा और समर के संबंध मधुर होते हैं, उसको यह देख-देखकर पीड़ा होती है कि घर के अन्य लोग तो निठल्ले रहते हैं, जबकि प्रभा सुबह से लेकर रात ग्यारह साढ़े ग्यारह बजे तक काम में लगी रहती है। वह इस बारे में एक बार जरा-सी शिकायत करता है तो घर में महाभारत छिड़ जाता है। उसकी भाभी जबरदस्ती चूल्हे पर से प्रभा को उठा देती है और यह उपालंभ भी देती जाती है कि “अभी तक एक को खिलाया करती थी-अब दो को खिलाती रहा करूंगी।” उसकी बच्ची रोने लगती है और प्रभा उसको गोद में उठाकर चुप कराने लगती है, तो वह उसकी गोद से उस लड़की को छीन लेती है और ताने कसने लगती है।

सदस्यों का पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष भाव संयुक्त परिवारों के टूटने का एक प्रमुख कारण होता है। प्रस्तुत उपन्यास में दिखाया गया है कि भाभी अर्थात् बड़ी बहू या जिठानी को यह बात सहन नहीं हो पाती कि प्रभा अर्थात् छोटी बहू या देवरानी की सुंदरता की प्रशंसा की जाए। इस ईर्ष्या के कारण ही वह अपने देवर समर के कान प्रभा के विरुद्ध भरती रहती है। वह बार-बार इस बात को दोहराती है,-“प्रभा राजा इंद्र की परी थोड़े ही है, किंतु उसको अपनी सुंदरता का बड़ा घमंड है।” मुहल्ले की स्त्रियों द्वारा प्रभा की शिक्षा अर्थात् मैट्रिक पास होने की प्रशंसा किया जाना भी जिठानी को रुचिकर नहीं लगता, अत: वह उसकी निंदा करते हुए कहती है कि, “वह किसी की लाज-शरम या पर्दा न करके अपने मायके से लाई किताब पढ़ती रहती है।”

यहीं पर बस नहीं है, भाभी समर और प्रभा के बीच खाई को निरंतर गहरा और व्यापक बनाने के प्रयास में लगी रहती है। जब उसे पहली बार रसोई बनानी थी, तो भाभी दाल में अतिरिक्त नमक डाल देती है। परिणाम यह होता है कि भाभी की चाल सफल हो जाती है। समर थाली को ठोकर मार कर उठ जाता है और मुँह में डाला गया पहला कौर उल्टी के रूप में थूक देता है।

भाभी लगातार इस ताक में रहती है कि अपनी देवरानी को नीचा दिखा सके। इसका एक और अवसर मिल जाता है जब उसकी पुत्री का नामकरण संस्कार होता है। प्रभा पूजे गए मिट्टी के गणेश को साधारण मिट्टी का ढेला समझकर उससे बर्तन माँज कर फेंक देती है। इस पर घर में कुहराम मच जाता है। भाभी आसमान सिर पर उठा लेती है। वह इस बात को तूल देते हुए यह सिद्ध करने लगती है कि ऐसा उसकी पुत्री के अशुभ के लिए जानबूझकर किया गया है। अम्मा को तो ऐसे बहाने मिलने ही चाहिए थे। वह और भी उत्तेजित हो जाती है। समर ने तो हद ही कर दी है। वह न केवल उसे गाली देता है परंतु उसे एक भरपूर तमाचा भी जड़ देता है। उसके गाल पर पाँच की पाँच उँगलियाँ छप जाती हैं।

संयुक्त परिवार का दुःख केवल ईर्ष्या तक ही सीमित नहीं है। बाबूजी की डाँट-फटकार अपने आप में एक सामान्य प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया अपने अतीत में मारपीट के रूप में हुआ करती थी जिसके चिह्न समर के शरीर पर नील के रूप में अब तक विद्यमान हैं। इस मारपीट का एकमात्र कारण आर्थिक तंगी है। समर पिता से फीस के रुपए माँगता है।

पिता द्वारा यह पूछने पर कि कितनी फीस जानी है, उससे उत्तर देते नहीं बनता। संदर्भ देखिए”

पच्चीस शब्द का उच्चारण मैंने इस तरह किया मानो मेरे जीवन की पच्चीस साँसें ही बाकी रह गई हैं।”

समर के पिता यह कहते हुए कि वे तो जिंदगी भर हड्डे पेलने के लिए ही जन्मे, पेंशन में मिले पच्चीस रुपए खाट पर डाल देते हैं, तो समर की विचित्र दशा हो जाती है। लेखक के शब्दों में”

मेरी हिम्मत नहीं थी कि सामने पड़े नोटों को उठा लूँ? एकदम मन में आया कि यों ही उल्टे पैरों चला जाऊँ और इस सारी पढ़ाई-लिखाई में लात मार कर कहीं से लाकर रुपयों का इतना बड़ा ढेर लगा कि इन लोगों का भी मन भर जाए। कहूँ, लो कितना रुपया चाहिए, रुपया … रुपया … रुपया।”

अम्मा भी किसी से कम नहीं है। जब प्रभा की साड़ी तार-तार हो जाती है तो समर भाभी से धोती माँगता है। वह कहती है अम्मा से माँगो। जब अम्मा से माँगता है तो वे उस पर टूट पड़ती हैं और दहेज न लाने का ताना देने लगती हैं। इसके विपरीत जब वह नई धोती लाकर प्रभा को देता है तो दोनों स्त्रियों के पेट में शूल उठने लगता है।

उपन्यासकार ने आर्थिक तंगी के साथ-साथ रूढ़िवादी विचारधारा को भी घातक बताया है। प्रभा को घुघट न निकालने पर ताने देना, छत पर दाल बीनने, धूप में बाल सुखाने पर प्रताड़ना आदि ऐसे ही रूढ़िवादी प्रकरण हैं। इस प्रकार उपन्यासकार ने संयुक्त परिवारों के विघटन के लिए सदस्यों की नकारात्मक सोच, अहं, ईर्ष्या-द्वेष और वर्चस्व की भावना को दोषी बताया है।

प्रश्न – प्रभा के परदा न करने से परिवार में क्या प्रतिक्रिया हुई, उसका परदा न करना कहाँ तक उचित था, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – प्रभा राजेंद्र यादव द्वारा रचित सामाजिक व पारिवारिक उपन्यास ‘सारा आकाश’ की नायिका है। उसका चरित्र एक गरिमामयी, घरेलू, सुघड़ शिक्षिता व सुसंस्कृत नारी के रूप में दिखाया गया है। जिस काल का यह उपन्यास है। उस समाज में प्रभा का मैट्रिक पास होना एक विशेष उपलब्धि रखता है।

शिक्षिता होने के कारण प्रभा का थोथे मापदंडों और प्राणहीन रूढ़ियों या प्रथाओं में विश्वास नहीं है। वह ‘परदा प्रथा’ को भी इस प्रकार की एक थोथी प्रथा के रूप में देखती है। इसीलिए वह जब सुसराल आती है तो परदे की प्रथा को स्वीकार नहीं करती। परंतु उसके ससुर और समर के बाबूजी की विचारधारा रूढ़िवादी है। वे परंपरा से चली आ रही गली-सड़ी मान्यताओं को ओढ़े हुए हैं। उनके विचार उस काल के समाज की अंधी परंपराओं से मेल खाते हैं। इसमें एक विचार यह भी है कि युवा होते ही अपनी संतान का हर हाल में विवाह कर देना सबसे बड़ा पुण्य है। इसी सोच के कारण वे मुन्नी की पढ़ाई बीच में ही छुड़वाकर उसका विवाह कर देते हैं। समर भी उनकी इसी सोच का शिकार होता है। उसे छात्रावस्था में ही विवाह के कठिन बंधन में बाँध दिया जाता है।

बाबूजी पर्दे की प्रथा जैसी प्राणहीन रूढ़ियों का समर्थन करते हैं। इसीलिए अपनी बहू प्रभा को यदा-कदा इस बात को लेकर डाँटते रहते हैं कि वह चूँघट नहीं निकालती। उनके विचार देखिए-

“फिर बेटी और बहू में फर्क ही क्या रह गया? बेटी भी मुँह खोले बाल बिखेरे घूमती है और बहू को भी चिंता नहीं है कि पल्ला किधर जा रहा है।” वे प्रभा को छत पर दाल बीनने के लिए जाने से भी मना करते है।

परदे की प्रथा प्रभा के घर में बवाल मचा देती है। बाबूजी किसी न किसी बात पर बहूरानी प्रभा को परदे में रहने के लिए कोंचते रहते हैं। एक स्थल देखिए

“अरे, इससे परदा नहीं करती तो मत करो। छाती पर पत्थर रखके उसे भी सह लेंगे, लेकिन बेशर्मी की ऐसी हद तो मत करो। ऊपर जाकर सिर धोते समय तुम्हें दिखा नहीं कि लोग क्या कहेंगे? जाड़ों में धूप सेंकने के बहाने सभी तो ऊपर छतों पर चले जाते हैं। इधर-उधर ताक-झाँक करने में उनके बाप का क्या जाता है। यह मुन्नी भी इतनी बड़ी हो गई, इसे नहीं सूझा? बैठी-बैठी सिर पर पानी डाल रही थी………….” दूसरी ओर उनकी अपनी पुत्री मुन्नी विरोध पर उतर आती है। वह भी प्रभा की इस बात का समर्थन करती है कि घर में परदे की प्रथा का क्या काम? वह पिता का विरोध करती है और प्रभा भाभी के छत पर जाने, बाल धोने और सुखाने की आदत का समर्थन करती है। वह पिता से कहती है-

“बाबू जी तुम भी अनोखी बातें करते हो अब ऐसी तो ठंड है। तुमने तो राम-राम करके उल्टा सीधा पानी दो लोटे डाला, और नहाने का नाम करके चल दिए, पर हम लोगों का सिर कोई ऐसे धुलता है? दो घंटे लगते हैं। तब तक नीचे ऐसे जाड़े में कोई कैसे भीगे? हाथ में पानी लो, तो काटने को दौड़ता है। ऊपर छत पर धूप थी, अगर चली ही गई तो क्या ऐसी आफत आ गई?”

प्रभा का परदा न करना सर्वथा उचित था। वास्तव में यह समाज पुरातनपंथी सोच को छोड़ना नहीं चाहता। अनेक प्रथाएँ ऐसी हैं, जो सर्वथा निंदनीय व अर्थहीन हैं। परदे की प्रथा भी ऐसी ही एक प्रथा थी जो समाज में स्त्रियों पर बलपूर्वक लादी जाती थी। शिक्षित व सभ्य समाज में इस प्रकार के परदे की कोई आवश्यकता नहीं। आज स्त्री समाज में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। ऐसे आधुनिक समाज में उक्त
प्राणहीन प्रथाओं के लिए कोई भी स्थान नहीं है।

 

अवतरण संबंधित प्रश्न-उत्तर

(क) – “बाबू जी तुम मुझे अपने हाथ से जहर देकर मार डालो
मेरा गला घोट दो ……… मुझे वहाँ मत भेजो ………….॥”

(i) इस कथन का वक्ता कौन है.? उसका परिचय दीजिए।

उत्तर –  प्रस्तुत गद्यांश राजेंद्र यादव कृत उपन्यास ‘सारा आकाश’ में से उद्धृत है। इस संवाद की वक्ता मुन्नी नामक स्त्री है। वह उपन्यास के नायक समर की बहन है जिसका वैवाहिक जीवन अत्यंत करुण, विपन्न, उत्पीड़क तथा घातक सिद्ध होता है। परिणाम स्वरूप उसे प्रताड़ना का बोझ न सहते हुए आत्महत्या करनी पड़ती है।


(ii) उसे कहाँ भेजा गया और क्यों? समझाकर लिखिए।

उत्तर-मुन्नी को अपने सुसराल में पति का उत्पीड़न तथा घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता था। जब वह तंग आकर मायके आ गई तो उसका पति उसे पुनः मनाने आ गया। वह वस्तु स्थिति जानती थी जिसके कारण पुनः सुसराल नहीं जाना चाहती थी। उसे पता था कि सास के देहांत के बाद अब सुसराल में उसका पक्ष लेने वाला कोई न था।


(iii) बेटी की दुर्दशा देखकर माता-पिता की क्या स्थिति थी?

उत्तर– मुन्नी की दुर्दशा दहेज उत्पीड़न तथा घरेलू हिंसा का जीवंत उदाहरण है। अपनी बेटी की दुर्दशा देखकर माता-पिता का दिल दहल जाता था। परन्तु सामाजिक रीति को निभाते हुए उन्होंने उसे दूसरी बार उसके नारकीय ससुराल में भेजने का निर्णय ले लिया।


(iv) उपन्यास के आधार पर तत्कालीन नारी की दशा का वर्णन कीजिए।

उत्तर– प्रस्तुत उपन्यास एक यथार्थवादी उपन्यास है जिसमें मुख्यतः नारी पर होने वाले अनुदार अत्याचारों का चित्रांकन हुआ है। समर की पत्नी प्रभा और बहन मुन्नी नामक दो नारियों का जीवन तत्कालीन समाज की भेदभाव भरी दृष्टि तथा उत्पीड़क व्यवहार की ओर संकेत करता है। प्रभा को न केवल दहेज के लिए ताने सुनने पड़ते हैं बल्कि पति के दुर्व्यवहार (पूर्वार्द्ध भाग में) का भी सामना करना पड़ता है। उसकी सास व भाभी उत्पीड़क पात्रों के रूप में स्थित हैं। दूसरी ओर मुन्नी का करुण और त्रासद जीवन तत्कालीन पुरुष की लम्पट तथा अमानवीय विचारधारा का प्रतीक है। यहाँ उपन्यासकार की दृष्टि नारी के प्रति संवेदना प्रकट करती दिखाई देती है।

(ख) – अपने काँपते और बेज़ान हाथों को निहायत डरते-डरते उसके कंधे पर रखकर भर्राए और खंडित स्वर में कहा,”प्रभा तुम मुझसे नाराज हो ………………………….?” साथ ही मुझे आश्चर्य हो रहा था कि यह कौन मेरे भीतर से बोल रहा है।

(i) प्रभा कौन थी और वह किससे नाराज थी ?

उत्तर: प्रभा समर की पत्नी तथा ‘सारा आकाश’ शीर्षक उपन्यास की नायिका है। वह अपने पति तथा ससुराल पक्ष की यंत्रणा से पीड़ित होने के कारण नाराज़ थी। उसका अपने पति से ‘अबोला’ चल रहा था।


(ii) उपन्यास के नायक का नाम लिखते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि उसके आत्मविश्लेषण का क्या परिणाम निकला?

उत्तर: उपन्यास के नायक का नाम समर है। उसका विवाह छात्रावस्था में ही प्रभा से हो गया था परन्तु लम्बे समय तक दोनों के बीच संबंध मधुर नहीं हो पाए थे। इन दिनों समर में कुछ परिवर्तन आने लगा था। वह आत्मविश्लेषण करके अपने द्वारा पत्नी पर किए गए अत्याचारों का लेखा-जोखा करने लगा था। इसका परिणाम यह निकला कि वह प्रभा से प्रेम करने लगा था।”


(iii) पति ने अपने बदले स्वभाव का परिचय किस प्रकार दिया?

उत्तर: पति समर ने अपने स्वभाव को प्रभा के प्रति संवेदनशील होते हुए बदलना शुरू कर दिया। उसे लगा कि वह बिना किसी अपराध के पारिवारिक अत्याचार वह अपमान सहती आ रही थी। इसीलिए उनका दांपत्य जीवन भी विषाक्त हो चला था। परन्तु अब वह अपनी माँ और भाभी द्वारा दी गई यंत्रणाओं के विपरीत प्रभा से प्रेम करने लगा था और उसका हर बात में ध्यान रखने लगा था।


(iv) पति को अपने बदले हुए व्यवहार पर कैसा अनुभव हुआ और इससे क्या स्पष्ट होता है?


उत्तर:पति समर को अपनी पत्नी प्रभा के प्रति बदले हुए स्वभाव पर विस्मय हुआ। उसके अहं को थोड़ी चोट भी पहुँची। जो पति अपनी पत्नी को अब तक दुत्कारता आ रहा था, वही अब उसकी चिंता व अपेक्षा करने लगा था। उसे लगा कि जिस पत्नी ने उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ा और सदैव उसका ध्यान रखा, उससे मन-मुटाव रखना उचित नहीं। फलतः उसका हृदय परिवर्तित हो गया।

(ग) “मुझे पता होता तो मैं कभी भी नहीं करती। मैंने समझा कि कोई सादा मिट्टी का ढेला है।”

(i) प्रस्तुत पंक्तियों के वक्ता और श्रोता कौन-कौन हैं? उनके बीच किस विषय पर चर्चा हो रही है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों की वक्ता राजेंद्र यादव द्वारा रचित उपन्यास ‘सारा आकाश’ की नायिका प्रभा है। श्रोता उसका पति समर है।

(ii) वक्ता की बात सुनकर श्रोता ने गुस्से में क्या-क्या कहा ? 

उत्तर- जब वक्ता प्रभा ने बताया कि उसने पूजा में रखे गणेश को साधारण मिट्टी का ढेला समझकर उससे बर्तन माँज दिए, तो समर की भाभी ने बहुत ही हल्ला मचाया। वह सोचती है कि अब पूजा के अपमान पर कुछ अनिष्ट अवश्य होगा। इस पर समर ने प्रभा के चाँटा जड़ दिया।

(iii) उक्त घटना के सन्दर्भ में समर की क्या प्रतिक्रिया थी?

उत्तर- चाँटा जड़ने के बाद समर को पश्चात्ताप होने लगता है। उसको दुःख था कि वह सात-आठ महीने से प्रभा के साथ बोल नहीं रहा था। इस लम्बे ‘अबोले’ के बाद वह पहली बार बोला,तो गाली और तमाचे के साथ।

(iv) समर की आत्मग्लानि का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।

उत्तर- समर का अपनी पत्नी से ‘अबोली’ चल रहा था। गणेश की मूर्ति से बर्तन माँजने के प्रसंग ने उसे इतना उत्तेजित व क्रुद्ध कर दिया कि प्रभा को तमाचा जड़ दिया और गाली भी दी। यहीं से समर की आत्मग्लानि का प्रकरण प्रारम्भ होता है। वह देर तक उस गाली व चाँटे के व्यवहार पर पश्चात्ताप करता रहा। उसे लगा कि औरत पर हाथ उठाना कतई ठीक नहीं था। यहीं से उसका हृदय-परिवर्तन शुरू होता है।