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1. हम नदी के द्वीप हैं
हम नहीं कहते कि हमको छोड़कर स्त्रोतस्विनी बह जाए।
वह हमें आकार देती हैं।
हमारे कोण, गलियाँ, अंतरीप, उभार, सैकत-कूल, सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी है।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि हम नदी के द्वीप है | जिस प्रकार द्वीप नदी का हिस्सा होता है उसी प्रकार हम समाज में रहने वाले व्यक्ति है । हम यह नहीं चाहते कि हमें छोड़कर समाज आगे बढ़ जाए , नदी यदि द्वीप को छोड़कर आगे बढ़ जाऐगी तो द्वीप का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा उसी प्रकार यदि समाज व्यक्ति को छोड़कर आगे निकल जाएगा तो व्यक्ति असभ्य हो जाएगा । नदी द्वीप को आकार देती है, उसके कोण, गलियाँ, द्वीप, उभार, रेतीले तट बनाती है उसकी गोलाइयाँ बनाती है उसी प्रकार समाज व्यक्ति को आकार देता है सभ्य बनाता है समाज ही व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाता है।

2. माँ है वह! इसी से हम बने हैं,
किंतु हम हैं द्वीप! हम धारा नहीं हैं,
स्थिर समर्पण है हमारा, हम सदा से द्वीप हैं स्त्रोतस्विनी के।
किंतु हम बहते नहीं हैं। क्योंकि बहना रेत होना है।
हम बहेंगे, तो रहेंगे ही नहीं।
पैर उखड़ेंगे, प्लवन होगा, ढहेंगे, सहेंगे बढ़ जाएँगे।
और फिर हम पूर्ण होकर भी कभी क्या क्या धार बन सकते?
रेत बनकर हम सलिल को तनिक गँदला ही करेंगे।
अनुपयोगी ही बनाएँगे।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि द्वीप कहता है कि नदी हमारी माँ है हम इसी से तो बने हैं भाव समाज व्यक्ति के लिए माँ के समान है क्योंकि व्यक्ति समाज से ही तो निर्मित होता है। किन्तु हम द्वीप है धारा नहीं, स्थिर एवं समर्पण से रहना ही हमारा काम है हम हमेशा से नदी के द्वीप है जिस प्रकार धारा नदी से अलग हो कर बह जाती है परन्तु द्वीप ऐसा नहीं कर सकते वह नदी का हिस्सा है उससे वह बने हैं उसी प्रकार व्यक्ति समाज से बना है वह समाज के बिना आगे नहीं बढ़ सकता। किन्तु द्वीप बहता नहीं है क्योंकि बहना रेत हो जाना है भाव वह नष्ट हो जाएगा। वह बहेगा तो रहेगा ही नहीं अगर पैर उखड़ जाऐगें, उछलना – कूदना होगा तो वह नष्ट हो जाएगा | इसी प्रकार यदि व्यक्ति समाज से अलग हो जाएगा तो व्यक्ति नष्ट हो जाएगा, उसका कोई अस्तित्व नहीं रहेगा वह असभ्य हो जाएगा। और पूर्ण होकर भी जिस प्रकार द्वीप कभी धारा नहीं बन सकता भाव अलग होकर नहीं बह सकता। रेत बनकर तो हम केवल पानी को गँद्ला ही करेगें, और व्यर्थ हो जाएगें जिस प्रकार यदि द्वीप नदी से अलग हो जाता है तो उसका कोई अस्तित्व नहीं रहता वह नष्ट हो जाता है उसी प्रकार व्यक्ति भी समाज के बिना नष्ट हो जाता है, व्यर्थ हो जाता है।

3. द्वीप है हम ! यह नहीं है शाप, यह अपनी नियति है।
हम नदी के पुत्र हैं, बैठे नदी की क्रोड में,
वह वृहत भूखंड से हमको मिलाती है,
और वह भूखंड अपना पितर है।

व्याख्या – कवि कहता है कि हम द्वीप है यह कोई अभिशाप नहीं है यह भाग्य है भाव भाग्य के अनुसार ही हम समाज का भाग हैं जिस प्रकार द्वीप नदी का पुत्र है उसकी गोद में बैठा है नदी द्वीप को विशाल जमीन से मिलाती है वह द्वीप का पूर्वज है उसी प्रकार व्यक्ति समाज का पुत्र है वह समाज की गोद में बैठा है, समाज व्यक्ति को परम्पराओं से मिलाता है और वह परम्पराएँ व्यक्ति की पूर्वज है जो निरन्तर चलती आ रही है और व्यक्त को सभ्य बनाती है।

अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर

(क) माँ है वह ! इसी से हम बने हैं,
किंतु हम हैं द्वीप ! हम धारा नहीं हैं, स्थिर समर्पण है हमारा, हम सदा से द्वीप हैं स्रोतस्विनी के ।

(i) कवि और कविता का नाम लिखकर बताएँ कि कवि किस काल की किस धारा के कवि हैं ?

उत्तर – कवि का नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और कविता का नाम ‘नदी के द्वीप’ है। कवि आधुनिक काल की प्रयोगवादी काव्यधारा के कवि हैं।

(ii) किसे माँ कहा जा रहा है और क्यों ?

उत्तर – नदी को माँ कहा जा रहा है। माँ कहने वाले द्वीप हैं। उनका मानना है कि द्वीपों की रचना तथा संरचना नदी द्वारा ही की जाती है । वही उनको आकार या स्वरूप देती है |

(iii) द्वीप की विशेषता क्या है ?

उत्तर – द्वीप की विशेषता है कि वह नदी का एक भाग होकर भी उससे अलग अस्तित्व रखता है। नदी ही द्वीपों का निर्माण करती है। उसकी धारा उन्हें रूप स्वरूप देती है। उन्हें कटाव व कोण प्रदान करती है परंतु फिर भी वे धारा नहीं है। वे धारा के साथ नहीं बहते बल्कि अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं। उनका समर्पण नदी के प्रति स्थिर है।

(iv) कविता का मूल संदेश बताइए।

उत्तर – प्रस्तुत कविता एक अस्तित्ववादी कविता है। इसका महत्त्व समाज और सामाजिकता से जुड़ा है। कवि ने नदी और उसके द्वीपों की कल्पना द्वारा व्यक्ति और समाज के परस्पर संबंधों का संकेत दिया है। नदी की विशेषता है कि वह द्वीप को भूखंड से मिलाती है। कवि ने भूखंड को द्वीप का पितर बताया है।

(ख) किंतु हम बहते नहीं हैं। क्योंकि बहना रेत होता है। हम बहेंगे, तो रहेंगे ही नहीं पैर उखड़ेंगे, प्लवन होगा, ढहेंगे, सहेंगे बढ़ जाएंगे, और फिर हम पूर्ण होकर भी कभी क्या धार बन सकते ?

(i) कौन बहते नहीं हैं ? कविता के प्रसंग में बताइए।

उत्तर – द्वीप’ स्वयं को नदी का हिस्सा तो मानते हैं परंतु वे बहते नहीं हैं। यदि वे धारा के साथ बह जाएँ तो उनका अस्तित्व ही नहीं रहेगा।

(ii) ‘बहना रेत होना’ कैसे है ?

उत्तर – बहना रेत होना है क्योंकि नदी की धारा के साथ मिलकर द्वीप का अपना अस्तित्व ही मिट जाएगा। यदि धारा द्वीप को अपने साथ बहाकर ले जाएगी, तो द्वीप का रूप-स्वरूप नष्ट हो जाएगा।

(iii) ‘बहना’ प्रक्रिया का क्या प्रभाव पड़ता है ? कविता के संदर्भ में समझाइए।

उत्तर – ‘बहना’ प्रक्रिया का प्रभाव यह होता है कि द्वीप की अपनी कोई सत्ता ही नहीं रहती। यदि वे बहने लगेंगे, तो उनका अस्तित्व रेत बन जाएगा और वे नदी की धारा में विलीन हो जाएँगे।

(iv) प्रस्तुत कविता का सामाजिक संदर्भ उजागर करें।

उत्तर – प्रस्तुत कविता एक प्रतीकात्मक कविता है। इसमें नदी द्वीप तथा भूखंड को प्रतीक के रूप में चुना गया है। इसमें व्यक्ति, समाज और परंपरा के आपसी संबंधों को सर्वथा नवीन दृष्टि से देखा गया है। यहाँ द्वीप, नदी और भूखंड को क्रमशः व्यक्ति परंपरा और समाज के प्रतीक के रूप में चुना गया है। कवि का विचार है कि जिस प्रकार द्वीप ‘भू’ का ही एक खंड है परंतु नदी के कारण उसका अस्तित्व अलग है, उसी प्रकार व्यक्ति भी समाज का एक अंग है परंतु सामाजिक परंपराएँ उसे विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदान करती हैं।