” संस्कार और भावना ” समरी (Summary)

संस्कार और भावना ” विष्णु प्रभाकर जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध एकांकी है प्रस्तुत एकांकी में एक परिवार का चित्रण किया गया है | संस्कारों की पृष्ठभूमि और भावना के आवेश का द्वंद मार्मिक ढंग से उजागर किया गया है | माँ एकांकी की प्रमुख पात्र है | वह संक्रांति काल की एक हिंदू नारी है जो भारतीय संस्कृति के प्राचीन रीति – रिवाजों से बँधी हुई है | उसके दो पुत्र थे – अविनाश और अतुल | अविनाश बड़ा था और अतुल छोटा | अविनाश ने एक बंगाली लड़की से प्रेम विवाह किया था पर उसकी माँ विजातीय बहू को न अपना सकी | इसका परिणाम यह हुआ कि अविनाश अपनी पत्नी के साथ अलग रहता है | पिछले महीने अविनाश बहुत बीमार रहा | उसे हैजा हो गया था | माँ को इस बात का दु:ख हुआ कि उसका बेटा बहुत बीमार रहा और उसे पता भी न चला जब अविनाश बचपन में कभी बीमार हो जाता था तो वह कई -कई दिनों तक न खाना खाती थी न सोती थी | उसका छोटा बेटा अतुल तथा उसकी पत्नी उमा अविनाश के यहाँ आते-जाते रहते हैं | माँ को यह पता चला कि अविनाश की पत्नी गंभीर रूप से बीमार है तथा उसके बचने की कोई आशा नहीं है अतुल माँ से कहता है कि भाभी ने तो प्राणों की बाजी लगाकर भैया को बचा लिया परंतु उन्हें बचाने की शक्ति भैया में नहीं है यह सुनकर उसके मन में बेटे के प्रति ममता और स्नेह की भावना जाग उठती है | आखिर वह माँ है , माँ की ममता के सामने उसके संस्कार उसके आगे झुकते नजर आते हैं | यहाँ ‘ संस्कार और भावना ‘ का अंतर्द्वंद उभर कर आता है जिसमें ‘भावना ‘ की विजय होती है और माँ सब संस्कारों को तोड़ती हुई अपने बड़े लड़के के घर जाती है |वह अपनी बहू को अपनाने के लिए तैयार हो जाती है अविनाश के घर जाकर चलने की आग्रह करती है तथा इस प्रकार परिस्थितियों से मजबूर होकर संस्कारों की दासता से मुक्त हो जाती है |

एकांकी का उद्देश्य / संदेश

प्रस्तुत एकांकी में संस्कारों की पृष्ठभूमि और भावना के आवेश का द्वंद मार्मिक ढंग से उजागर किया गया है | संक्रांति काल की नारी – माँ के बड़े पुत्र अविनाश ने एक विजातीय बंगाली स्त्री से विवाह किया है जिसके कारण वह अपने परिवार से अलग रहता है | जब माँ को पता चलता है कि उसका बेटा बहुत बीमार रहा , उसे पता भी नहीं चला तो उसके वात्सल्य , ममता एवं पुत्रप्रेम के सामने उसके संस्कार नहीं टिक पाते है और वह संस्कारों की दासता से मुक्त हो जाती है | इसमें नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच संघर्ष और विचारों की विभिन्नता दिखाई गई है जिसमें माँ की ममता पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं पर विजय होती है यह विजय ही एक सुखी परिवार की नींव है |

शीर्षक की सार्थकता


एकांकीकार अपने शीर्षक ‘संस्कार और भावना ‘ को सार्थक करने में सफल हुआ है क्योंकि पूरे एकांकी में संस्कारों और भावनाओं के बीच द्वंद अत्यंत प्रभावित ढंग से दिखाया गया है तथा अंत में संस्कारों पर भावना की जीत होती है |

चरित्र चित्रण

मांँ

मांँ इस एकांकी के प्रमुख पात्र हैं | वह संक्रांति काल की एक हिंदू नारी है, जो भारतीय संस्कृति के प्राचीन रीति-रिवाजों से बँधी हुई है | वह रूढ़ियों , जातिवाद और धर्म में विश्वास करती है | इस कारण कई बातों में उसका अपने पति से मतभेद है परंतु फिर भी वह उसका मान रखती है | जब उसके बड़े बेटे ने एक विजातीय बंगाली महिला से विवाह कर लिया था तथा उसके साथ परिवार से अलग रहने लगा था तो माँ उसके घर नहीं जा पाती | वह अत्यंत भावुक है बड़े बेटे की बीमारी की बात सुनकर व्याकुल हो उठती है | जब उसे पता लगा कि उसकी बड़ी बहू ने अविनाश की बीमारी में बहुत सेवा कर उसके प्राण बचाए तब माँ के हृदय में जो बड़ी बहू के प्रति घृणा के भाव थे वे सब दूर हो गए | बेटे की बीमारी के बाद जब उसकी बहू की तबीयत अधिक खराब हो जाती है तथा उसके बचने की कोई आशा नहीं रहती है तब माँ अपनी बड़ी बहू से मिलना चाहती है | अन्त में माँ के हृदय में बड़ी बहू के प्रति ममता जागृत हो जाती है और अंत में सब विरोध भुलाकर वह अपने बड़े बेटे अविनाश के घर अपनी बड़ी बहू को लेने जाती है माँ का हृदय परिवर्तन ही उसके चरित्र की सबसे महान विशेषता है, जो एक सुखी परिवार का प्रारंभ है |

अवतरण संबंधित प्रश्न – उत्तर

(क) “काश कि मैं निर्मम हो सकती, काश कि मैं संस्कारों की दासता से मुक्त हो सकती ! हो पाती तो कुल, धर्म और जाति का भूत मुझे संग न करता और मैं अपने बेटे से न बिछुड़ती।”

(i) वक्ता कौन है ? यह वाक्य वह किसे कह रही है ?

उत्तर – वक्ता ‘संस्कार और भावना’ शीर्षक एकांकी की पात्र माँ है। वह उक्त वाक्य अपने छोटे पुत्र अतुल की पत्नी उमा से कह रही है।

(ii) ‘संस्कारों की दासता सबसे भयंकर शत्रु है’ यह कथन एकांकी में किसका है ? उसने ऐसा क्यों कहा

उत्तर –संस्कारों की दासता सबसे भयंकर शत्रु है’-यह वाक्य माँ के सबसे बड़े बेटे ने कहा था जिसे इस समय माँ स्मरण कर रही है। उसने ऐसा इसलिए कहा था कि उसकी माँ अपनी बड़ी बहू के विषय में अच्छा नहीं सोचती थी।

(iii) संस्कारों की दासता के कारण वक्ता को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? 

उत्तर – संस्कारों की दासता के कारण माँ अपने बड़े पुत्र अविनाश तथा उसकी पत्नी से बिछुड़ जाती है। उसे इस बात का गहरा दुख था कि अविनाश ने एक विजातीय बंगाली लड़की से विवाह किया था।

(iv) प्रस्तुत एकांकी द्वारा एकांकीकार ने क्या संदेश दिया है ?

उत्तर – प्रस्तुत एकांकी द्वारा लेखक ने बताना चाहा है कि जाति, धर्म, क्षेत्रीयता आदि मानव विरोधी नहीं हो सकते हम संस्कारों के नाम पर अपनी संतान से दूर नहीं हो सकते।

(ख) अपराध और किसका है | सब मुझी को दोष देते हैं |

(i) वक्ता और श्रोता कौन है ?

उत्तर – वक्ता माँ और श्रोता उसकी बहू उमा है |

(ii) वक्ता किस बात से दुखी थी ?

उत्तर – पता मांँ को अपने बेटे अविनाश की बीमारी का पता ही नहीं चला, जो अलग रहता है और पिछले महीने गंभीर रूप से बीमार था, यह बात सुनकर दुखी थी |

(iii) वक्ता को किस घटना का स्मरण हो आता है ?

उत्तर – वक्ता माँ को बहुत समय पूर्व अपने बेटे अविनाश के बचपन की घटी एक घटना का स्मरण हो आता है बचपन में जब अविनाश को कभी खाँसी भी हो जाती थी, तो वह कई कई दिन तक न खाती थी , न सोती थी |

(iv) मिसरानी ने वक्ता को क्या बताया ?

उत्तर – मिसरानी ने मांँ को बताया कि अविनाश की बहू ने अपने प्राण खपाकर अपने पति को बचा लिया | वह अकेले थी पर किसी के आगे हाथ पसारने नहीं गई | स्वयं दवा लाती थी घर का काम करती थी और अविनाश को भी देखती थी |