Summary

लेखक रामधारी सिंह दिनकर ने संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं और लक्षणों पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि संस्कृति ऐसी चीज़ है जिसे जान तो सकते हैं, पर उसे परिभाषित नहीं कर सकते। जो चीज़ हमारे पास है, वह है-सभ्यता और संस्कृति सभ्यता वस्तुओं से है और संस्कृति हमारे भीतर व्याप्त है। इस प्रकार यह नहीं कहा जा सकता कि हर सुसभ्य व्यक्ति सुसंस्कृत ही होगा। ऐसा इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह आवश्यक नहीं है कि अच्छी पोशाक वाला आदमी स्वभाव से ठीक नहीं है तो वह संस्कृति के खिलाफ है। सभ्यता की पहचान ठाट-बाट है। यदि बहुत से ऐसे लोग जो झोंपड़ी में रहते हैं तथा अच्छे कपड़े नहीं पहनते, लेकिन उनमें विनम्रता, सदाचार आदि गुण हैं तो ऐसे लोगों को हम सभ्य तो नहीं कह सकते, पर उन्हें सुसंस्कृत समझने में कोई परहेज नहीं करना चाहिए। छोटा नागपुर के आदिवासी लोग सभ्य नहीं कहे जा सकते हैं पर उनमें दया, माया, सच्चाई व सदाचार जैसे गुण हैं। प्राचीन भारत के ऋषिगण भी तो जंगलों में ही रहते थे। मिट्टी के बर्तनों में खाना, जीवों से प्यार करना यही उनका जीवन था। ऐसे ऋषियों ने ही संस्कृति का निर्माण किया। संस्कृति और सभ्यता के भेद को न समझ पाने के कारण ही कठिनाइयाँ हैं। इनकी प्रगति एक साथ होती है। उदाहरण के रूप में जब हम कोई घर बनाते हैं तो यह सभ्यता का कार्य है, पर घर कैसा बनेगा? यह निर्णय लेना सांस्कृतिक रुचि पर निर्भर करता है। इस प्रकार संस्कृति सभ्यता का अंग बन जाती है।संस्कृति और प्रकृति में भी भेद है। ईर्ष्या, मोह, लोभ, दोष, राग, और कामवासना आदि प्राकृतिक गुण है। मनुष्य यदि इन दुर्गुणों पर रोक लगाता है तो वह उतना ही संस्कृतिवान समझा जाता है। संस्कृति सभ्यता की अपेक्षा बहुत बारीक चीज़ होती है। सभ्यता के भीतर संस्कृति दूध में मक्खन और फूल में सुगन्ध की भाँति विद्यमान रहती है। सभ्यता के उपकरणों को शीघ्रता से एकत्रित किया जा सकता है पर संस्कृति ऐसी नहीं है। कोई व्यक्ति धनी तो तुरन्त हो सकता है लेकिन धनी व्यक्ति ऊँचे पद वाली संस्कृति उतनी जल्दी नहीं सीख सकता। संस्कृति की रचना में शताब्दियाँ लग जाती हैं अनेक शताब्दियों तक एक समाज के लोग जिस तरह खाते-पीते रहते, सोच-विचार करते या धर्म-कर्म करते हैं, उन सभी कार्यों से उनकी संस्कृति उत्पन्न होती है। हमारे प्रत्येक कार्य में संस्कृति की झलक होती है। सच्चाई तो यह है कि संस्कृति जीवन जीने का एक तरीका है। जिस समाज में हमारा जन्म होता है, हम रहते हैं, उसी की संस्कृति हमारी संस्कृति है। लेखक संस्कृति के विषय में कहते हैं-“असल में, संस्कृति जिन्दगी का एक तरीका है और यह तरीका सदियों से जमा होकर उस समाज में छाया रहता है जिसमें हम जन्म लेते हैं।” हम अपने जीवन में कुछ और संस्कार जमा करते हैं वह भी हमारी संस्कृति का अंग बन जाता है और मरणोपरान्त हम अन्य वस्तुओं के साथ संस्कृति की विरासत भी अपनी सन्तानों के लिए छोड़ जाते हैं।आदिकाल से ही कवि, दार्शनिक, कलाकार, मूर्तिकार आदि हमारी संस्कृति के रचयिता हैं। पूजा-पाठ, घर-बरतन, शादी-श्राद्ध आदिजो करते आये हैं वही संस्कृति का अंश है। संस्कृति आदान प्रदान से बढ़ती है। संसार में शायद ही कोई ऐसा देश हो, जो यह दावा कर सकेकि उस पर किसी अन्य देश की संस्कृति का प्रभाव नहीं पड़ा है। जो संस्कृति अन्य संस्कृतियों से उनके गुणों को लेने के लिए खुली होती है, उस संस्कृति का कभी नाश नहीं होता है। लेखक का कहना है कि- “जिस जलाशय के पानी लाने वाले दरवाजे खुले रहते हैं उसकी संस्कृति कभी नहीं सूखती उसमें सदा ही स्वच्छ जल लहराता रहता है और कमल के फूल खिलते हैं। कूप मंडूकता और दुनिया से रूठकर अलग बैठने का भाव संस्कृति को ले डूबता है।”मुसलमानों के आगमन ने इस देश को उर्दू भाषा व कलम चित्रकारी दी। यूरोप के प्रभाव से भारत ने विज्ञान के प्रति अपनी सोच बदली। संस्कृति के प्रभाव ने ही राजा राममोहन राय, दयानन्द सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द और गाँधी को जन्म दिया।सांस्कृतिक सम्पर्क का प्रभाव दर्शन और विचारों पर भी पड़ता है। इस आदान-प्रदान के कारण ही एक जाति का धार्मिक रिवाज, दूसरी जाति का रिवाज बन जाता है। एक देश की आदत दूसरे देश के लोगों की आदत में समा जाती है। भारत सांस्कृतिक दृष्टि से महान है, क्योंकि यहाँ की सामाजिक संस्कृति में अधिक जातियों की संस्कृतियाँ समायी हुई हैं।

प्रश्नउत्तर

प्रश्न – संस्कृति क्या है?

उत्तर- संस्कृति एक ऐसी चीज है जिसे लक्षणों से तो हम जान सकते हैं परन्तु इसकी परिभाषा नहीं दे सकते। संस्कृति वह गुण है जो हममें व्याप्त है हमारी पोशाक पहनने का ढंग और भोजन करने की जो कला है वह संस्कृति है।

प्रश्न – सभ्यता से क्या भाव है?

उत्तर- सभ्यता वह चीज़ है जो हमारे पास है मोटर, महल, सड़क, हवाई जहाज, पोशाक और अच्छा भोजन यह सब हमारी सभ्यता की पहचान है।

प्रश्न – सभ्यता और संस्कृति में क्या अन्तर है?

उत्तर- सभ्यता और संस्कृति वैसे तो एक-दूसरे के ही अंग है मोटर, महल, मकान भोजन, पोशाक यह सब हमारी सभ्यता के गुण है और दूसरी तरफ भोजन एंव पोशाक पहनने में जो कला होती है वह हमारी संस्कृति है।

प्रश्न – सुसभ्य और सुसंस्कृत व्यक्ति किसे माना जाता है?

उत्तर- प्रत्येक सुसभ्य आदमी सुसंस्कृत नहीं हो सकता और न ही सुसंस्कृत आदमी सुसभ्य होता है। जो व्यक्ति विनय और सदाचार के भाव को जानता है, दूसरों के दुख में दुखी होता है दूसरों के दुख को दूर करने के लिए खुद भी मुसीबत उठाने के लिए तैयार रहता है उसे ही सुसभ्य और सुसंस्कृत आदमी माना जाता है।

अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर

  1. “छोटा नागपुर की आदिवासी जनता पूर्ण रूप से सभ्य तो नहीं कही जा सकती, क्योंकि सभ्यता के बड़े-बड़े उपकरण उनके पास नहीं हैं, लेकिन दया माया, सच्चाई और सदाचार उसमें कम नहीं है।”

प्रश्न – पाठ और लेखक का नाम बताएँ।

उत्तर- पाठ का नाम ‘संस्कृति क्या है ?’ तथा लेखक का नाम ‘रामधारी सिंह दिनकर’ है।

प्रश्न – लेखक ने संस्कृति को किस प्रकार संकेतित किया ?

उत्तर- लेखक के अनुसार संस्कृति ऐसी चीज़ है जिसे लक्षणों से तो हम जान सकते हैं, परंतु उसकी परिभाषा नहीं दे सकते। विभिन्न कलाएँ व श्रेष्ठ साधनाएँ ही संस्कृति कहलाती हैं। हर सुसभ्य आदमी सुसंस्कृत ही होता है, ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि अच्छी पोशाक पहनने वाला भी विचार या दृष्टि से कुसंस्कृत हो सकता है।

प्रश्न – सभ्यता का क्या अर्थ ग्रहण करवाया गया है ?

उत्तर- सभ्यता की पहचान सुख-सुविधा और ठाठ-बाट है। मगर बहुत से ऐसे लोग हैं जो दरिद्र व भूखे-नंगे होकर भी, झोंपड़ों में गली-सड़ी जिंदगी जीते हुए भी विनयी और सदाचारी होते हैं। अतः सभ्यता को केवल रहन सहन की श्रेष्ठता के मापदंड से नहीं मापा जा सकता।

प्रश्न – सुसंस्कृत किसे समझा जा सकता है ?

उत्तर- सुसंस्कृत व्यक्ति वह है जिसमें श्रेष्ठ साधनाएँ व उच्च विचार हैं। दया, ममता, सत्य, सदाचार परोपकार, अहिंसा आदि श्रेष्ठ मूल्य हैं। इन्हें अपनाने वाला सुसंस्कृत कहलाएगा भले ही वह आदिवासी का जीवन व्यतीत कर रहा हो। लेखक ने छोटा नागपुर का उदाहरण इसीलिए दिया है।

2. ” हम जो भी करते हैं उसमें हमारी संस्कृति की झलक होती है, यहाँ तक कि हमारे उठने-बैठने, पहनने-ओढ़ने, घूमने फिरने और रोने-हंसने में भी हमारी संस्कृति की पहचान होती है।”

प्रश्न – लेखक ने संस्कृति को किस प्रकार समझाया है ?

उत्तर- लेखक ने बताया है कि संस्कृति का संबंध हमारी जीवन-शैली से होता है। हमारे प्रत्येक कार्य में हमारी संस्कृति झलकती है। फिर भी हमारा कोई भी काम हमारी संस्कृति का पर्याय नहीं बन सकता। वास्तव में संस्कृति जीवन जीने का एक तरीका है।

प्रश्न – संस्कृति की रचना किस प्रकार होती है ?

उत्तर- लेखक ने बताया है कि संस्कृति की रचना दस-बीस या सौ पचास वर्षों में नहीं की जा सकती। अनेक शताब्दियों तक एक समाज के लोग जिस तरह खाते पीते, रहते-सहते, पढ़ते लिखते, सोचते-समझते और राज-काज चलाते या धर्म-कर्म करते हैं, उन सभी कार्यों से उसकी संस्कृति उत्पन्न होती है।

प्रश्न – समाज व संस्कृति का क्या संबंध है ?

उत्तर- लेखक ने समझाया है कि हम जिस समाज में पैदा हुए हैं या जिस समाज में मिलकर हम जीते हैं, उसकी संस्कृति हमारी संस्कृति है। हम अपने जीवन में जो संस्कार जमा करते हैं, वह भी हमारी संस्कृति का अंग बन जाता है और मरने के बाद हम अन्य वस्तुओं के साथ अपनी संस्कृति की विरासत भी अपनी संतानों के लिए छोड़ जाते हैं। अतः संस्कृति अनेक सदियों के अनुभव का प्रतिफल होती है।

प्रश्न – संस्कृति हमारा किस प्रकार पीछा करती है ? पाठ के अनुसार समझाइए।

उत्तर- संस्कृति हमारा पीछा जन्म-जन्मांतर तक करती है। इसका कारण यह है कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी सांस्कृतिक गुणों को विकसित व प्रचारित करते जाते हैं। लेखक ने बताया है कि हमारे यहाँ एक कहावत है कि हमारे संस्कारों के अनुसार ही हमारा पुनर्जन्म होता है। जब हम किसी बालक या बालिका को बहुत तेज़ पाते हैं, तब हम अचानक कहते हैं कि यह पूर्वजन्म का संस्कार है। अतः संस्कार शरीर का नहीं आत्मा का गुण है और यह गुण हमारा जन्मों तक पीछा करता है।