प्रश्न 1. मामाजी ने समर को क्या-क्या कहकर समझाया ?

उत्तर – बैठक में मामाजी (चन्दन) और बाबूजी बैठे हुए बात कर रहे थे। समर अपनी कोठरी में था उसे बैठक में बुलाया गया। मामाजी उससे गले मिले और खुश हुए। दरअसल मामाजी छोटे भाई अमर का रिश्ता लेकर आये थे। समर की शादी भी इन्होंने ही कराई थी। समर ने इसका विरोध किया कि अभी वह पढ़ रहा है, मैट्रिक तक तो अभी की नहीं है। अभी से उसके पैरों में बेड़ी क्यों डालते हो? बाबूजी ने और मामाजी ने उसकी बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। मामाजी ने समर को प्यार से समझाना शुरू किया। कारण यह रहा होगी तभी तो मामाजी को पता चला और उन्होंने कहा होगा कि मैं समझाऊँगा समर को।मामाजी ने कहना शुरू किया- “शादी-ब्याह तो सभी के होते हैं भाई, लेकिन इसके लिए कोई अपने भाई-बहन, माँ-बाप को थोड़े ही छोड़ देता है? जहाँ चार बरतन होते हैं, खटकते ही हैं। औरतों का क्या है, पल में इधर, पल में उधर, समझदार आदमी को तो उनकी बातों में आना ही नहीं चाहिए। तुम खुद हमसे ज्यादा पढ़े-लिखे हो, अच्छी तरह समझते हो। वे तो अलग घर, अलंग खानदान से आई है, उन्हें किसी के आपसी रिश्ते से क्या लेना-देना। खून का रिश्ता तो तुम्हारा आपस में है। वह अलग थोड़े ही हो जायेगा। सो बेटा, ये सब तो घर-गिरस्ती के मामले हैं। खूब फूंक-फूँककर कदम रखना चाहिए। ” समर ने मन ही मन सोचा कि इस घर की हालत अगर मामाजी जानते तो अमर की शादी का रिश्ता लेकर नहीं आते। समर चुपचाप उनकी बातें सुनता रहा। “तुम कहो, सास-बहू की कहन-सुनन? तो भैया किस घर में यह नहीं होता ? बड़े-बड़े लखपतियों के घर की हालत तो मैं जानता हूँ। घर-घर मिट्टी के चूल्हे हैं समझे।” मामाजी ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा। समर ने उनके सामने यह कहा कि वह पढ़ना चाहता है। तब उन्होंने कहा – “पढ़ने को कौन नहीं पढ़ाना चाहता, बेटे लेकिन भैया, सब कुछ अपने घर की हालत देखकर होता है। तुम्हारा भैया भी है। वह भी तो अपना फर्ज पूरा कर रहा है या नहीं? घर में रहकर सब सोचना पड़ता है, मेरे मुन्ना अब तुम गिरस्ती में आये हो, समझने की कोशिश करो कि दुनिया चलती कैसे है? बहू को जरा दबा के रखो, उसे अदब-कायदा सिखाओ। और तुम्हारे बाबूजी कह रहे थे कि तुम पूजा-पाठ, धरम-करम सब छोड़ते चले जा रहे हो? एं? कहीं पढ़ना-लिखना इसलिए होता है बेटा ? सारे लोग धरम-करम को छोड़ दें तो दुनिया रहेगी कैसे ? हकीकतराय, बन्दा बहादुर पर क्या-क्या जुल्म नहीं ढाये गये। भैया, अपने धरम-करम का ही तो प्रताप है कि हम-तुम यहाँ बैठे हैं।” बाबूजी यह सब सुन रहे थे और महसूस कर रहे थे कि इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। बोले- “तुम किस पत्थर को समझा रहे हो चन्दन कहा है, सीख दीजिए। ताहि को जाको सीख सुहाय… सीख न दीजे बाँदरा घर बया कौ जाय।” उनको बीच में ही टोकते हुए मामाजी ने आखिरी बाण चलाया जो शहद से लिपटा हुआ था। नहीं जो कोई बच्चा थोड़े ही है हमारा समर बेटा। समझता तो सब है, जरा-सा लड़कपन है क्यों, है न बेटा? बाबूजी से माफी माँग लेना बेटा। यह बड़े हैं। यह सब सुनकर समर बिना कुछ कहे ऊपर अपने कमरे चला गया।

प्रश्न 2. समर की मुलाकात शिरीष भाई साहब से कहाँ हुई ? वे यहाँ क्यों आये थे ? बहन को क्या हुआ था? उसका कारण क्या था ?

उत्तर – समर की मुलाकात शिरीष भाई साहब से दिवाकर के घर पर हुई। वैसे शिरीष से समर की मुलाकात एम्पलायमेंट एक्सचेंज के पास हुई थी, लेकिन दोनों का परिचय नहीं हुआ था। यहाँ पर दिवाकर ने उनका परिचय कराया कि वह उसके चचेरे भाई है और अपनी बहन को यहाँ मानसिक अस्पताल में भर्ती कराने के लिए आये हैं।उसने बताया कि उसकी बहन को हिस्टीरिया के दौरे पड़ते थे। फिर अचानक वह पागलों जैसी हरकत करने लगी है? उन दौरों (Fits) का समय बढ़ता गया। डॉक्टर ने बताया कि जल्दी से जल्दी इसे किसी मेंटल हॉस्पीटल में दाखिल न किया गया तो केस काफी खराब हो जायेगा। इसलिए उसे परसों भर्ती करके आये हैं। समर के पूछने पर कि इसे, “हिस्टीरिया के दौरे क्यों आने लगे हैं, डॉक्टरों ने इसके बारे में कुछ नहीं बताया ?”शिरीष ने कहा कि इसके बारे में डॉक्टर क्या बतायेंगे। यह तो मानसिक परेशानियों, बहुत अधिक चिन्ताओं और नर्वस दबाव से आने लगते हैं। गलती शिरीष के परिवार वालों की ही रही थी। शिरीष की बहन की शादी छोटी उम्र में कर दी थी। मुश्किल से तब वह ग्यारह बारह साल की रही होगी। उसके पति उस समय पढ़ रहे थे। जब उन्होंने पढ़ाई पूरी की तो उन्हें मालूम हुआ कि उसकी पत्नी अशिक्षित है। जिसके कारण तब से एक तरह उसे छोड़ ही रखा है। शिरीष ने अपने साथ रखकर उसे मैट्रिक तो करा दिया। अगर यह रोग न लगा होता तो इस साल इण्टर कर लेती बहुत समझाया पर उसने किसी की भी न सुनी। रात को सोते सोते बर्राने लगती है। कुछ देर बाद वह बोले, “मैं तो राह देख रहा हूँ कि हिन्दू कोड बिल पास करके या वैसे ही नेता लोग एकाध कानून बना दें तो तलाक दिलाकर कहीं और शादी कर-करा दूँ।”

प्रश्न 3. प्रभा ने अपनी सखी रमा को जो पत्र लिखा था। उसके आधार पर बताइए कि वह अपने पति और ससुराल की क्या कल्पना करती थी ?

उत्तर – रमा प्रभा की प्रिय सखी थी। विवाह के पश्चात् उसका पत्र व्यवहार रमा के साथ होता था। दोनों सखियाँ एक-दूसरे से मन की बात कहती हैं। रमा को लिखे गए इस पत्र में प्रभा का स्वार्थी रूप ही झलकता है। वह अपने भावी जीवन में ससुराल के किसी भी रिश्ते को महत्त्व नहीं देती है। वह चाहती है कि उसका पति किसी ऊँचे पद पर हो। घर में केवल वह और उसका ‘पति’ दो ही प्राणी हों। वह किसी भी शादी में जाती, तो उसे कोई भी दूल्हा या उसका परिवार पसंद नहीं आता। उसे सास-ससुर, देवर-भाभी, ननद हर रिश्ते से घृणा थी। वह अपने पति की खूब बड़ी कोठी की कल्पना करती थी। उस कोठी में टेनिस या बैडमिंटन कोर्ट होगा। वह काम भी नहीं चाहती। देर से सोकर उठना चाहती है। दिन में पड़ोसियों से बातचीत करके या अखबार पढ़कर समय व्यतीत करना चाहती है। उसे सब स्कूल में ‘शेरनी’ या ‘कटखनी’ के नाम से पुकारते थे। वह अपने इन गुणों या अवगुणों को सुनकर गर्व महसूस करती थी।वह पति के घर लौटने पर सिनेमा जाना या दोस्तों के घर जाना पसंद करती थी।ये सब कोरी कल्पनाएँ ही हो सकती हैं। जीवन यथार्थ होता है। जब मनुष्य इतनी झूठी कल्पनाओं के सहारे जीता है, तो उसे दुख ही उठाना पड़ता है।

प्रश्न 4. शिरीष भारतीय संस्कृति की इतनी बुराइयाँ करता है। इसका क्या कारण है

उत्तर – हम सब सामाजिक प्राणी हैं। समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए अनेक नियमों की रचना करनी पड़ती है। नियम विहीन समाज को तो कल्पना ही नहीं की जा सकती, कई बार समय एवं समाज की माँग के अनुसार कुछ कड़े नियम बनाने पड़ जाते हैं। समय परिवर्तन के साथ कई बार उन नियमों के दुष्परिणाम सामने आते हैं। कई बार तो परिणाम इतने भयंकर होते हैं कि व्यक्ति विद्रोह कर बैठता है। यहाँ शिरीष के साथ हुआ। बाल विवाह प्रथा के कारण शिरीष की बहन का विवाह ग्यारह बारह वर्ष को आयु में ही कर दिया था। उस समय लड़कों की पढ़ाई के समय ही उनके विवाह हो जाते थे। जब वे लड़के पढ़-लिखकर कुछ बन जाते थे। तब उनमें से कुछ युवक अपनी अनपढ़ और कम पढ़ी लिखी पत्नी को जीवन साथी के रूप में स्वीकार नहीं कर पाते थे। यही शिरीष की बहन के साथ हुआ। कुछ लड़कियाँ तो इसे नियंति समझकर स्वीकार कर लेती थीं। कुछ सहन नहीं कर पाती थीं। शिरीष की बहन भी इस दुख को सहन नहीं कर पाई मानसिक परेशानियों और अधिक मानसिक दबाव के कारण उसे हिस्टीरिया के दौरे आने लगे। जब कलकत्ता में उसका इलाज संभव नहीं हो पाया, तो वह उसे आगरा दिवाकर के यहाँ इलाज के लिए ले आए। मजबूरी वश उन्हें अपनी बहन को मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती करवाना पड़ा। शिरीष ने अपनी बहन को ससुराल भेजने के लिए मैट्रिक तो करवा दिया, पर आगे की पढाई उसकी बीमारी के कारण संभव नहीं हो पाई। अपनी बहन का दुख समर को बताते बताते उनका गला भर आया। वह कलकत्ता ! में नौकरी करते हैं। बहन से मिले बिना वह रह नहीं सकते। इसलिए हर शनिवार को | आकर बहन से मिलकर इतवार को वापस जाते हैं। बहन की दशा देख-देखकर वे हिंदू समाज को कोसने लगते हैं। हिंदू समाज की बाल-विवाह प्रथा के कारण ही उनकी बहन का विवाह इतनी कम आयु में हुआ। में उस समय हिंदू धर्म में तलाक का प्रावधान भी नहीं था। वे इस इंतजार में हैं कि ‘हिंदू कोर्ट बिल’ पास करके या वैसे ही ये नेता लोग एकाध ऐसा कानून बना दें, जिसके अनुसार वह अपनी बहन को तलाक दिलाकर कहीं और उसका विवाह कर दें। शिरीष के घरवाले कभी भी तलाक या पुनर्विवाह की बात को स्वीकार ही नहीं कर सकते। वे सब शिरीष की बात का विरोध करते हैं। समर के माध्यम से भी लेखक ने तलाक का खंडन करवाना चाहा है। यों बहन को मरते हुए तो बिल्कुल नहीं देखा जा सकता, लेकिन उसका इलाज तलाक हो, यह समझ में नहीं आया। समर कह उठता है कि “विवाह जैसी पवित्र चीज को लोग मन बहलाने का साधन-मात्र समझने लगेंगे। दो दिन पहले शादी करेंगे, फिर तलाक ले लेंगे। विवाह गुड्डे-गुड़ियों का खेल मात्र रह जाएगा।”

प्रश्न 5. प्रूफ रीडिंग का काम क्या वास्तव में थकाऊ और कष्टदायक था ? प्रेस के वातावरण का वर्णन करते हुए बताइए कि वहाँ काम करने वाले लोग कैसे थे ?

उत्तर – समर ने प्रूफ रीडिंग के काम पर जाना शुरू किया। वह रेल से जाता था इसलिए उसे आने में थकान नहीं होती थी। लेकिन काम शुरू में जितना रोचक लगा, बाद में तबियत उतनी ही ऊबने लगी। पाँच से ग्यारह तक प्रूफ के गीले खुरदरे कागजों पर फैलती स्याही से छह घण्टे लगातार उलटे-सीधे निशान बनाते-बनाते सिर भन्नाने लगता था। उस समय समर और भी डर जाता कि अगर वह काम सचमुच इतना ही थका देने वाला और कष्टदायक है तो कॉलेज के दिनों में यहाँ से जाने के बाद पढ़-लिख क्या पाऊँगा? कुछ समझ में ही नहीं आयेगा। पहले कुछ दिन तो जोश-जोश में उसने इतने सारे पन्नों के प्रूफ एक-साथ देख डाले कि सारे प्रेस वाले चकित रह गये। लगता था कि इस जरा-से काम में दिक्कत ही क्या है? केवल पढ़ना ही तो है, जहाँ गलत लगे वहाँ निशान लगा दो। लेकिन मैनेजर ने बाद में सारे पन्ने लौटा दिये क्योंकि उनमें ढेरों गलतियाँ भरी पड़ी थीं। एक-एक अक्षर कॉपी से मिला-मिलाकर जाँचने के बाद उसका दिमाग थककर चूर हो जाता। प्रेस की मशीनों की खस्स और खटर-खटर चलती रहती है और इन आवाजों के ऊपर सारे गले से चीखकर दिये गये हुक्म गूंजते रहते, नोट, टाइप उभर क्यों नहीं रहा है? अब स्याही ज्यादा आने लगी। अब देख क्या रहा है मुँह फाड़कर, कागज लगा। मैनेजर अपनी स्याही लगी पतलून में दोनों हाथों को ढूँसे पास आकर खड़ा हो जाता और उसे प्रूफ देखते हुए देखता तो उसके मन में अजीब सी घबराहट होने लगती। फिर चलते-चलते कह जाता “बड़े सुस्त प्रूफ देख रहे हैं मिस्टर, मशीन खाली पड़ी है। अभी तो करैक्शन भी टाइम लेगा। जरा ध्यान से देखिए और कई बार देखिए।” एक तरफ सुमेरा बैठा-बैठा पानी में भिगो-भिगोकर कुछ कूटता रहता और दूसरी तरफ मशीन मैन चूल्हे पर स्याही औटाया करते। सरेस की बदबू से उबकाई आती। ऐसा था यह प्रूफ रीडिंग का काम। लेकिन वहाँ काम करने वाले लोग इतने दिलचस्प थे कि मन ऊबता नहीं था। पहले तो बड़ा अजनबी अजनबी सा लगता था, लेकिन जल्दी ही वे समर को अच्छे लगने लगे। टाइपों को केसों में डिस्ट्रीब्यूट करते अजनबी सा लगता था, लेकिन जल्दी ही वे समर को अच्छे ल

प्रश्न 6. नारी उत्पीड़न का जीता-जागता उदाहरण मुन्नी नामक पात्र है। इस उपन्यास के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – समर अपनी छोटी बहन मुन्नी को अपने घर में अभागिन मानता है। वह लेखक से दो वर्ष छोटी है। मुन्नी के माता-पिता उसे पढ़ा रहे थे। लोगों के इतनी बड़ी कर ली है। विवाह नहीं करना क्या ? इस तरह के तानों को सुन-सुनकर उन्होंने मुन्नी की पढ़ाई बीच में ही छुड़वाकर सोलह-सत्रह वर्ष की उम्र में उसका विवाह कर दिया। घर की कुछ चीजें बेचकर तथा भाई साहब की शादी में मिली कुछ वस्तुएँ इकट्ठी करके उसके लिए दहेज का इंतज़ाम किया। पाँच-छह हज़ार रुपये लोगों से उधार लिये सो अलग। मुन्नी के उसके विवाह के पश्चात उसकी ससुराल से बहुत करुणा से भरे हुए पत्र आते थे। मायके आने पर बिलख-बिलख कर रोती। उसकी सास और उसके पति मिलकर जो-जो अत्याचार करते उन्हें किसी से कह भी तो नहीं सकती थी। यह सब तो बाद में पता चला कि उसके पति का चाल-चलन ठीक नहीं था। वह रातों को कहाँ कहाँ घूमता था। एक-डेढ़ साल तो मुन्नी ने किसी तरह निकाल दिया। उसकी सास के मरने के बाद तो उस पर और मुसीबतें आ गई। उसने घर में एक औरत को लाकर रख लिया। नौकरानी की तरह अपनी और उस रखैल की सेवा करवाता। दो-दो, तीन-तीन दिन तक खाना नहीं देता। मुन्नी तो बताती ही नहीं थी। एक दिन अपने सारे शरीर पर बेतों के फूले हुए नीले निशान लेकर सुबह-सुबह अपने मायके आ गई। बस तब से वह यहीं है। मायके में आकर मुन्नी तटस्थ रहने लगी। सबकी निगाहों से बचती फिरती अंदर ही अंदर वह घुटती रहती। अब तो उसे शायद जिंदगी भर यहीं रहना है। इतना