सूखी डाली (Summary)

‘सूखी डाली एकांकी में एक संयुक्त परिवार प्रणाली का चित्रण है। दादा, जो इस परिवार के मुखिया हैं, परिवार को एक बरगद के पेड़ के समान मानते हैं जिसका हर सदस्य पेड़ की डाली के समान पेड़ का एक प्रमुख अंग है। दादा जी के भरे-पूरे परिवार में छोटे पोते परेश की पत्नी बेला के आ जाने से परिवार में हलचल मच जाती है। वह एक सुसंस्कृत व सभ्य परिवार की सुशिक्षित लड़की है, दूसरे परिवार में स्वयं को समायोजित नहीं कर पा रही है। वह अपने मायके के परिवार को अधिक सुसंस्कृत समझती है। जिसके कारण उसकी अपनी ननद से कुछ कहा-सुनी होती रहती है | दादाजी को जब इस बात का पता चलता है तो वे परिवार के सभी सदस्यों को बुलाकर समझाते हैं कि घृणा को घृणा से नहीं बल्कि प्रेम से जीतना चाहिए | दादाजी के समझाने पर परिवार के सभी सदस्य छोटी बहू को बहुत आदर देने लगते हैं जिससे उसे लगता है कि वह अपरिचितों में आ गई है। एक दिन अपनी ननद से पूछने पर जब उसे यह पता चलता है कि दादाजी के कहने पर ही सभी ऐसा कर रहे हैं तो वह समर्पण कर देती है। तथा सबके साथ मिलजुल कर काम करने के लिए तैयार हो जाती है। वह इन्दु से कहती है, “मैं भी तुम्हारे साथ जाऊँगी, मैं भी तुम्हारे साथ कपड़े धोऊँगी।” जब दादाजी छोटी बहू (बेला) को इन्दु के साथ कपड़े धोते देखते हैं तो उसे बुलाकर कहते हैं- “बेटा! तुम्हारा काम कपड़े धोना नहीं ..” तथा इन्दु के भाभी को ‘भाभीजी’ न कहकर केवल ‘भाभी’ शब्द का प्रयोग करने पर दादाजी को बुरा लगता है। वह इन्दु से कहते ‘इन्दु, तुझे कितनी बार कहा है कि आदर से ” तब बेला भावावेश में रुंधे हुए कंठ से कहती है-“दादाजी,आप पेड़ से किसी डाली का टूटकर अलग होना पसन्द नहीं करते, पर क्या आप यह चाहेंगे कि पेड़ से लगी- लगी वह डाल सूखकर मुरझा जाए?” यह कहकर वह सिसकने लगती है। उसका कहने का आशय है जिस प्रकार पेड़ की डाल पेड़ से अलग होकर सूख जाती है इसी प्रकार परिवार से अलग होकर वह भी सूखी डाली की तरह मुरझा सकती है। अतःवह सूखी डाली नहीं बनना चाहती । इस प्रकार परिवार एक सूत्र में बँधा हा। उसकी कोई भी डाली न तो सूखी और न ही टूटकर अलग हुई।

एकांकी का उद्देश्य/संदेश’


‘सूखी डाली’ एकांकी में संयुक्त परिवार की कथावस्तु का चित्रण किया गया है। परिवार का मुखिया दादा मूलराज ने अपने परिवार को अत्यंत सूझबूझ एवं बुद्धिमानी से एक वट वृक्ष की भाँति एकता के सूत्र में बाँध रखा है। दादा जी के इस संगठित परिवार में छोटी बहू बेला के आ जाने से अशांति का वातावरण उपस्थित होने लगता है, परंतु दादा जी की सूझबूझ एवं व्यवहार कुशलता ने पूरे परिवार को एकता के सूत्र में बाँधे रखा। सबकी मानसिकता में बदलाव आ गया और कोई भी डाली न तो सूखी और न ही टूटकर अलग हुई। एकांकीकार ने परिवार के सदस्यों के अंतर्दृवंद्व को अत्यंत कुशलता से चित्रित किया है। एकांकी का यह संदेश है कि यदि परिवार का मुखिया दूरदर्शी, बुद्धिमान तथा व्यवहारकुशल हो तो भी परिवार के सदस्यों के विचारों एवं स्वभाव में भिन्नता होते हुए भी वे सब एकता की डोर से बँधे रहते हैं।

शीर्षक की सार्थकता


एकांकी का शीर्षक अत्यंत सार्थक है। दादा मूलराज के परिवार को एक वट वृक्ष के समान माना गया है। जिस प्रकार वट वृक्ष की अनेक शाखाएँ होती हैं, उसी प्रकार परिवार का हर सदस्य वट वृक्ष की डाली के समान उसका अंग है। जब दादा जी को पता चलता है कि छोटे पोते परेश की पत्नी बेला के आ जाने से परिवार में हलचल मच गई है, तो उन्होंने सभी को समझाया और परिवार को टूटने से बचा लिया। जिस प्रकार किसी पेड़ की डाल पेड़ से अलग होने पर सूख जाती है, उसी प्रकार यदि परिवार का कोई हिस्सा अलग हो जाए, तो वह भी सूखी डाली की तरह मुरझाकर निर्जीव हो जाता है और सूखी डाली पुनः हरी नहीं हो सकती।

चरित्र चित्रण

दादा मूलराज

एकांकी “सूखी डाली” में दादा मूलराज मुख्य पात्र हैं। जिन्होंने अपने परिवार को एक वट वृक्ष की भाँति सँजोकर रखा है | पूरे परिवार में उनकी बात कोई नहीं टालता उन्हीं के नियंत्रण के कारण परिवार एकजुट है |दादा मूलराज की उम्र 72 वर्ष है और वह एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं। वे संयुक्त परिवार में रहते हैं और घर के मुखिया हैं। उम्र के इस पड़ाव पर होने के बावजूद भी वे एक स्वस्थ व्यक्ति हैं। उनकी बढ़ी हुई लंबी – लंबी सफेद दाढ़ी हैं। वह एक संघर्षशील व्यक्ति हैं | उन्होंने अपने पोते को पढ़ाया। जब उनका पोता तहसीलदार बन गया तो उन्होंने उसकी शादी एक अच्छे परिवार की लड़की से करवा दी। उसकी पत्नी पढ़ी-लिखी होने के कारण इस घर के तौर – तरीके और रहन-सहन पसंद नहीं थे |जब दादाजी को परेश के अलग होने की संभावना का पता चलता है , तो वे अत्यंत बुद्धिमत्ता से स्थिति को संभाल लेते हैं तथा परिवार को टूटने से बचा लेते हैं | उनका स्वभाव मधुर है वे हर समस्या की गंभीरता को समझते हैं तथा परिस्थितियों के अनुकूल निर्णय लेते हैं| वह पूरे परिवार के लिए प्रेरणादायक हैं।

बेला

उपेंद्रनाथ अश्क’ द्वारा रचित एकांको ‘सूखी डाली’ को प्रमुख स्त्री पात्र का नाम बेला है, जो दादा मूलराज के पोते परेश की पत्नी है। वह लाहौर के प्रतिष्ठित एवं संपन्न कुल की सुशिक्षित लड़की है। उसके पति नायब तहसीलदार हैं। वह परिवार की सबसे छोटी बहू है। उसे अपने परिवार की संपन्नता तथा तौर-तरीकों पर नाज़ है, इसीलिए बात – बात पर अपने मायके का बड़प्पन दिखाती है। वह छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो उठती है तथा अपने मायके वालों के सामने ससुराल वालों को कुछ नहीं समझती। वह दस वर्षों से काम कर रही मिश्रानी को काम से हटा देती है। बेला दूसरों की भावनाओं को नहीं समझती। वह अपने पति परेश का भी आदर नहीं करती। उसने अपने कमर का सारा फर्नीचर निकालकर बाहर रख दिया और कहा, “इस बेडौल फ़र्नीचर से तो नीचे धरती पर चटाई बिछाकर बैठे रहना अच्छा है। बेला घर का कुछ काम नहीं करती, परंतु जब दादा जी की बातें सुनती है और दादा जी की सलाह का परिवार की अन्य स्त्रियों के व्यवहार पर पड़ने वाली मानसिकता को देखती है, तो भावुक हो उठती है। वह दुखी होकर परेश से कहती है। “मेरे सामने कोई हँसता नहीं, कोई …………. अभी – अभी सब हँस रही थीं, ठहाके पे ठहाके मार रही थी. मैं गई तो सब ऐसे सन्न रह गई जैसे भरी सभा में किसी ने चुप की सीटी बजा दी हो।” जब उसे पता लगता है कि दादा जी और सब सह सकते हैं पर किसी का परिवार से अलग होना नहीं सह सकते. तो वह परेशान हो उठती है और दादा जी से कहती है, “दादा जी, आप पेड़ से किसी डाली का टूटकर अलग होना पसंद नहीं करते, पर क्या आप चाहेंगे कि पेड़ से लगी लगी वह डाल सूखकर मुरझा जाए ” इस प्रकार वह अपने परिवर्तित व्यवहार से सबका आदर पा जाती है।

परेश

परेश दादा मूलराज का पोता है, जो नायब तहसीलदार है। उसका विवाह लाहौर के एक प्रतिष्ठित परिवार की सुशिक्षित कन्या से हुआ है परेश जानता है|उसकी पत्नी इस परिवार के रहन-सहन और तौर-तरीकों को पसंद नहीं करती। वह अपनी पत्नी को समझाने-बुझाने का असफल प्रयास करता है। जब उसकी पत्नी उसकी एक भी बात नहीं सुनती, तो वह अपना-सा मुँह लेकर रह जाता है। परेश दादा जी का बहुत सम्मान करता है इसलिए अपनी पत्नी के व्यवहार आदि के संबंध में उनसे खुलकर बात करने का साहस नहीं जुटा पाता। वह उनसे पत्नी का मन न लगने का बहाना बनाता है तथा दबी जुबान से कहता है कि उसकी पत्नी को परिवार में कोई पसंद नहीं करता, इसीलिए उसे लगता है कि वह अपरिचितों में आ गई है और वह आजादी चाहती है। दादा मूलराज ने जब कहा कि वे परिवार को टूटने से बचाने के लिए हर संभव उपाय करेंगे, तो परेश नतमस्तक होकर उनकी बात को स्वीकार कर लेता है।

अवतरणों पर आधारित प्रश्नोतर

मैं कहा करता हूँ न बेटा कि एक बार वृक्ष से जो डाली टूट गई उसे लाख पानी दो उसमें वह सरसता न आएगी और हमारा परिवार बरगद के इस महान पेड़ की भाँति है।

(i) वक्ता का परिचय दीजिए तथा उसके कथन का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : उपर्युक्त वाक्य के वक्ता दादा मूलराज जी हैं जिनकी 72 वर्ष को पार कर चुकी है। उनकी सफ़ेद दाढ़ी है। वे पूरी तरह स्वस्थ हैं। उनका मंझला बेटा कर्मचंद उनके पास बैठक उनके पाँव दबा रहा है और बच्चे आँगन में खेल रहे हैं। वे वट की एक पूरी डाली लाकर आँगन में लगाते हैं और उसे पानी देते हैं। क दादा जी उपर्युक्त वाक्य कहते हैं।

(ii) वक्ता ने अपने परिवार की तुलना बरगद से क्यों की ?

उत्तर : वक्ता ने अपने परिवार की तुलना बरगद से इसलिए की क्योंकि वट वृक्ष की अनेक डालियाँ होती हैं जिन पर अनेक प्राणियों को आश्रय मिलता है। वट वृक्ष की डालियाँ आपस में बहुत मजबूत से जुड़ी होती हैं उसी प्रकार दादा जी का परिवार भी आपसी संबंध में मजबूती से जुड़ा था।उनमें छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं था।

(iii) कर्मचंद ने वक्ता को क्या बताया ?

उत्तर : कर्मचंद (दादा जी का मॅझला बेटा) ने दादा जी को बताया कि आपके वट वृक्ष से शायद एक डाली टूटकर अलग हो जाए। शायद सबसे छोटा परेश परिवार से अलग हो जाए क्योंकि उसकी पत्नी बेला को इस परिवार से अनेक प्रकार की समस्याएँ हैं।

(iv) एकांकी के माध्यम से क्या संदेश दिया गया है ?

उत्तर : एकांकी के माध्यम से उपेंद्रनाथ अश्क ने यह संदेश दिया है कि यदि दूरदर्शिता, सूझबूझ और समझदारी से काम लिया जाए, तो पारिवारिक समस्याओं को सुलझाया जा सकता है और परिवारों को टूटने से बचाया जा सकता है। एक बार परिवार में यदि दरार पड़ जाए, वह बिखर जाए, तो कितना भी प्रयत्न किया जाए वह जुड़ नहीं पाता।