• यह भूमि किसी की खरीदी हुई दासी नहीं है।
  • इस भूमि पर सभी का समान रूप से अधिकार है।
  • सभी मनुष्यों को प्रकृति के तत्त्वों की समान रूप से आवश्यकता है।
  • सभी को मुक्त प्रकाश मुक्त वायु तथा बाधा रहित विकास की आवश्यकता है।
  • जब तक सभी मनुष्यों को उनके न्यायोचित सुख उपलब्ध नहीं होंगे तब तक पृथ्वी पर शांति की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
  • जब तक सभी मनुष्यों को समान रूप से सुख-साधन उपलब्ध नहीं होंगे तब तक संघर्ष की समाप्ति नहीं हो। सकती।
  • कुछ लोग स्वार्थवश केवल अपने लिए भोग वस्तुओं का संचय कर रहे हैं।
  • धरती पर भोग सामग्री का विस्तार बहुत अधिक है।
  • धरती पर उपलब्ध भोग सामग्री की तुलना में उसका उपभोग करने वाले मनुष्यों की संख्या बहुत कम है।
  • यदि कुछ लोग स्वार्थवश अपने लिए संचय करने की प्रवृत्ति को त्याग दें, तो सभी संतुष्ट हो सकते हैं और इस पृथ्वी को स्वर्ग बनाया जा सकता है।