अवतरण संबंधित प्रश्न – उत्तर

1.आरामकुर्सी पर बैठे एक दूसरे सज्जन को देखकर मैं सकुचा आधे शरीर को उन्होंने सामने लंबा-चौड़ा अखबार तानकर छिपा था। मैंने हाथ के इशारे से पूछा- कौन हैं? “सुनिए, अखबार तो यहीं रहेगा न। आइए, अपने दोस्त से आपका परिचय गया। अपनेकराएँ। ” दिवाकर ने उनका अखबार पकड़कर खींचते हुए कहा न व्यक्ति के आने पर भी यों लीन होकर अखबार पढ़ते रहना मुझे उनके असभ्यता लगी।अखबार हटते ही जब एक कलीन शेव्ड़ सूरत बाहर आई तो मैं चौकका उछल-सा पड़ा, “अरे, आप?”

क) समर सकुचा क्यों गया ?

उत्तर – क्योंकि जब वह दिवाकर के घर गया तो सामने आराम कुर्सी पर एक सवन बैठे थे जिन्हें देखकर समर सकुचा गया।

ख) वह सज्जन क्या कर रहे थे ?

उत्तर- वह सज्जन अखबार पढ़ रहे थे।

ग) दिवाकर ने उन्हें क्या कहा ?

उत्तर- दिवाकर ने कहा अखवार तो यही रहेगी, आइए, अपने दोस्त से मैं आपका परिचय करवाता हूँ।

घ) समर उस सज्जन को देखकर उछल क्यों गया?

उत्तर- क्योंकि वह वही सज्जन थे जो समर को एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज में मिले थे उनसे दोबारा मिलने की समर को चाहत थी इसी कारण दिवाकर के घर उन्हें देखकर समर उछल-सा पड़ा।

2.“नहीं, मिलाने तो नहीं लाया।” इस बार वे सुस्त होकर अपने में खो गए, “पर हाँ, मिलाने ही समझिए… क्यों दिवाकर, तुमने नहीं बताया इन्हें भई समर साहब, बात कुछ यों है कि हमारी बहन को पहले हिस्टीरिया के दौरे आते थे, फिर अचानक वह एकदम पागलों जैसी हरकत करने लगी कहें, उन दौरों का समय बढ़ता चला गया। डॉक्टर ने बताया कि जल्दी से • जल्दी किसी मेंटल हॉस्पिटल में दाखिल न किया गया तो केस काफी खराब हो जाएगा। परसों उसे भर्ती करके आए हैं।”

क)”नहीं, मिलाने तो नहीं लाया” वाक्य किसने कहा ?

उत्तर – यह वाक्य शिरीष भाईसाहब ने कहा।

ख) शिरीष भाईसाहब किस कारण दिवाकर के यहाँ आए थे?

उत्तर – शिरीष भाईसाहब अपनी बहन को मेंटल हॉस्पिटल में दाखिल आप थे।

ग) उनकी बहन को क्या समस्या थी।

उत्तर- बहन को हिस्टीरिया के दौरे आते थे, वह पागल होने की हरकतें करनेलगी थी जिस कारण डॉक्टर ने उसे मेंटल हॉस्पिटल में दाखिल करवाने की सलाह दी।

घ) “परसों उसे भर्ती करके आए है” शिरीष भाईसाहब किसे भर्ती करके आए थे।

उत्तर- शिरीष भाईसाहब अपनी बहन को दाखिल करवा के आए थे।

3.“महाशय,” इतनी देर सुनने के बाद कुछ कड़े स्वर में उन्होंने कहा, “पता नहीं आप इन सबको किन निगाहों से देखते हैं। मगर मैं तो समझता हूँ कि वह युग तब भी इससे अच्छा होगा। अब आपके मन में अपनी बहन के लिए दया या प्रेम है। यह न तो कानूनी बंधन है, न बाहरी सामाजिक दबाव। आप दया भी न करें, जरा-से बेशर्म हो जाएँ तो वह बेचारी कुछ नहीं कर सकती। रोएगी, दो-एक आदमियों से शिकायतें करेगी और अपनी किस्मत को कोसेगी। इससे उसे आपकी इच्छा पर जीने को तो नहीं मजबूर होना पड़ेगा।

क) “पता नहीं आप इन सबको किन निगाहों से देखते हैं” वाक्य किसने किसको कहा।

उत्तर – यह वाक्य शिरीष भाईसाहब ने समर से कहा।

ख) भाई बहन के सम्बन्धों के बारे में उन्होंने क्या कहा।

उत्तर – उन्होंने कहा कि आपके मन में अपनी बहन के लिए दया या प्रेम है, यह न तो कानूनी बंधन है, बाहरी सामाजिक दबाव।

ग) “इससे उसे अपनी इच्छा पर जीने को तो मजबूर होना पड़ेगा?” वाक्य किसने कहा ?

उत्तर – यह शिरीष भाईसाहब ने कहा।

4.वे बोलते रहे और कभी मेरे सामने मुन्नी की और कभी प्रभा की तसवी आती रहीं। लगता था जैसे ये सारी बातें केवल उन दोनों को ही ध्यान में रखकर कही जा रही हैं, सिर्फ मेरे लिए ही कही जा रही हैं।“मजबूरी में घुल-घुल और घुट-घुटकर मरने को भारतीय नारी की सहनशीलता का नाम दे-देकर मत पूजिए। करोड़ों व्यक्तियों के हजारों सालों के इतिहास से निकाले गए दो नाम, सीता और सावित्री! मैं पूछता है सीता का नाम लेते समय हमारा माथा शरम से झुक नहीं जाता? निर्दोष के कितने बड़े कलंक और कितनी अमानुषिक यातना को हम लोग झंडों पर गाड़कर पूजते हैं?”

क) समर के सामने किन की तस्वीरें आती रही।

उत्तर – समर के सामने कभी मुन्नी तो कभी प्रभा की तस्वीरें आती रही।

ख) समर को क्या लग रहा था?

उत्तर – समर को लग रहा था कि मानो यह सारी बातें उसी को ध्यान में रखकर क जा रही है।

ग) शिरीष भाईसाहब ने नारी के बारे में क्या विचार व्यक्त किए?

उत्तर – उन्होंने कहा- मजबूरी में घुल-घुलकर और घुट-घुटटकर मरने को भारत नारी की सहनशीलता का नाम दे देकर मत पूजिए।

घ) “सीता का नाम लेते समय हमारा माथा शरम से झुक नहीं जाता” वा किसने कहा ?

उत्तर – यह वाक्य शिरीष भाईसाहब ने कहा।

प्रश्न – उत्तर

1. समर की किस सज्जन से भेंट हुई थी दोबारा वह उनसे कहाँ मिला ?

उत्तर- समर की इम्प्लॉयमेंट-एक्सचेंज में जिस सज्जन से भेंट हुई थी उनका नाम शिरीष भाईसाहब था समर उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ तथा उनसे दोबारा मिलने की इच्छा रखता था एक दिन जब वह दिवाकर के घर गया तो उसने देखा कि वहाँ एक सज्जन कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे हैं अखबार उनके मुँह के आगे होने के कारण उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था परन्तु जैसे ही परिचय करवाने के लिए दिवाकर ने अखबार हटाई तो समर खुशी से उछल पड़ा क्योंकि यह शिरीप भाईसाहब ही थे जिनसे दिवाकर उनका परिचय करवाना चाहता था।

2. आप तलाक या पिता की संपत्ति में पुत्री के भी बराबर हिस्से के पक्ष में हैं इस बात पर समर और शिरीष भाईसाहब में क्या बातचीत हुई ?

उत्तर – इस बात पर शिरीष भाईसाहब ने कहा कि मैं इसके पक्ष में हूँ तो समर ने कहा – इससे तो समाज का ढाँचा हिल जाएगा तब शिरीष भाईसाहब ने कहा, किस समाज का ? समर ने कहा लोग शादी-विवाह जैसी पवित्र चीज़ को मन बहलाव का एक साधन बना लेंगे। दो दिन पहले शादी की और फिर तलाक हो गया बहनोई और भाईयों में झगड़े होंगे, भाई और बहन लड़ेंगे तब सम्बन्धों में प्रेम कहाँ रह जाएगा। शिरीष भाईसाहब ने समझाते हुए कड़े स्वर में कहा कि वह युग तब भी इससे अच्छा होगा अब आपके मन में अपनी बहन के लिए दया या प्रेम है, यह न तो कानूनी बंधन है, न बाहरी सामाजिक दबाव, समाज तो पहले ही गड़बड़ा गया है तो फिर और क्या होगा जिससे समाज की स्थिति खराब होगी इस प्रकार दोनों में इस विषय पर काफी बहस ती रही।