भेड़े और भेड़िए सार (Summary)

एक बार वन पशुओं ने वन प्रदेश में प्रजातन्त्र की स्थापना करने का निश्चय किया। पशु समाज में सुख-समृद्धि और सुरक्षा की बात सोचकर प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। उन्हें लगा कि इस क्रांतिकारी परिवर्तन से स्वर्ण युग की शुरुआत होगी।उस वन प्रदेश में बहुत सी भेड़ें थीं जो निहायत नेक, ईमानदार, कोमल, विनयी, दयालु, निर्दोष थीं। प्रजातन्त्र की स्थापना से वे बेहद खुश थीं वहीं भेड़िए इस प्रजातन्त्र से परेशान थे। क्योंकि उन्हें डर था कि भेड़ों की संख्या अधिक होने से पंचायत में उनका बहुमत होगा और अगर उन्होंने किसी पशु द्वारा दूसरे को न मारने का कानून बना दिया तो हम क्या खाएँगे? यह सोच-सोच कर भेड़ियों का दिल बैठने लगा।भेड़िए को परेशान देख एक बूढ़े सियार ने कारण पूछ तो भेड़ियों ने बताया कि वन प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद सूखी हड्डियाँ भी चबाने को नहीं मिलेंगी। हमारे पास भागने के अलावा कोई उपाय नहीं है लेकिन भाग कर जाएँ कहाँ ?तब बूढ़े सियार ने सर्कस में भर्ती होने का सुझाव दिया लेकिन भेड़िए ने वहाँ शेर और रीछ के होते उन्हें न पूछने की बात कही। तो फिर सियार ने अजायबघर जाने के लिए कहा। भेड़िए के इन्कार करने पर बूढ़े सियार ने पंचायत में भेड़ियों को बहुमत दिलाने के लिए योजना बनाई और भेड़िए से कहा कि आपको मेरी बात माननी होगी।अगले दिन बूढ़ा सियार तीन रंगे सियारों के साथ भेड़िए से मिला। उसने भेड़िए के माथे पर तिलक लगाकर गले में कंठी पहनाई और मुँह में घास के तिनके खोंस उसे संत बना दिया। उसने भेड़िए से मुँह बन्द रखने, गर्दन झुकाने तथा भेड़ों को न खाने की सख्त हिदायत दी और भेड़ों के झुंड के पास जाने के लिए कहा। बूढ़े सियार द्वारा संत के आने की अफवाह सुन भेड़ें संत के दर्शन के लिए इकट्ठी हुई थीं लेकिन भेड़िए को देखते ही भागने लगीं। तुरन्त बूढ़े सियार ने उन्हें रोककर कहा कि भेड़िए से डरने की आवश्यकता नहीं है। हृदय परिवर्तन हो जाने से भेड़िया राजा संत हो गए हैं. उन्होंने हिंसा छोड़ अपना जीवन जीवमात्र की सेवा में अर्पित कर दिया है। भेड़िया जाति द्वारा भेड़ों पर किए गए अत्याचारों से वे लज्जित है। वे आपकी सेवा करके प्रायश्चित करना चाहते हैं। आप उन्हें अपना भाई समझें। इसके बाद बूढ़ा सियार रंगे सियारों का स्वर्ग के देवता के रूप में परिचय करवाता है। पीले, नीले व हरे रंग में रंगे सियार योजनानुसार भेड़ों को बड़ी चालाकी से अपनी बातों के जाल में फंसाते हुए। भेड़िए का चुनाव प्रचार करते हैं और अपने हित की रक्षा के लिए बलवान भेड़िए को पंचायत में चुनकर भेजने के लिए भेड़ों को समझाते हैं। सब जगह भेड़ियों का इस तरह प्रचार करने से भेड़ों को विश्वास हो गया कि भेड़िए से बड़ा उनका हित-चिन्तक व हित रक्षक दूसर कोई नहीं। पंचायत के चुनाव में भेड़ें भेड़िए को अपनी रक्षा के लिए चुनती हैं भेड़िए पंचायत में उनके प्रतिनिधि बन जाते हैं, बूढ़े सियार को योजना सफल होती है। बहुमत पाते ही भेड़िए पहला कानून बनाते हैं कि हर भेड़िए को सबेरे नाश्ते में भेड़ का एक मुलायम बच्चा दोपहर को पूरी भेड़ और शाम को आधी भेड़ खाने के लिए दी जाए।

कहानी का उद्देश्य

लेखक ने कहानी के माध्यम से यह तथ्य उजागर किया कि भेड़ियों (नेता) भेड़ (जनता) का प्रजातंत्र के नाम पर सीधे-साधे लोग कैसे छले जाते है। बड़ी धूर्तता के साथ शोषण किया जाता है। इसके लिए बुद्धिजीवियों का सहारा लिया जाता है। जनता की रक्षा करने का प्रलोभन देकर उनका शोषण किया जाता है। प्रस्तुत लेख हमें समाज की राजनैतिक अवस्था के प्रति जागृत होने तथा अपने मत का सही प्रयोग करने का संदेश देता है। लेखक ने भेड़ों और भेड़ियों को प्रतीक बनाकर राजनेता और राजनीति व्यवस्था का चित्रण किया है। राजनेता चुनाव जीतने के लिए भोली-भाली जनता को तरह-तरह के वायदे और प्रलोभन देकर चुनाव तो जीत जाते है परन्तु चुनाव जीतने के बाद सारे वादे से मुकर जाते हैं। इस तरह से जनता का शोषण होता है। इसलिए हमें सदैव सर्तक रहना चाहिए और अपने अधिकारों का सही प्रयोग करना चाहिए।

शीर्षक की सार्थकता

‘भेड़े और भेड़िए’ कहानी का यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है। भेड़ें और भेड़िए को लेकर ही कथानक आगे बढ़ता है। भेड़ें वन प्रजातंत्र की स्थापना को लेकर प्रसन्न थीं। कैसे नेता बने भेडिए का दुष्प्रचार सियारों ने छल-प्रपंच के द्वारा किया, किस प्रकार भेड़िए सत्ता में आये और अंत में उन्होंने कैसे अन्यायपूर्ण कानून बनाए, जिसके कारण भेड़ों की ही क्षति हुई। इस कहानी में भेड़, भेड़िए एवं सियारों को माध्यम बना पाखंडी नेताओं की वास्तविकता प्रकट की गई है, अत: शीर्षक सटीक है।

चरित्र-चित्रण

भेड़ें

भेड़ें और भेड़िए’ कहानी में भेड़े भोली- सीधी, त्रस्त साधारण जनता का प्रतीक हैं। वे इस आशा में रहीं कि ‘प्रजातंत्र’ अर्थात् प्रजा का शासन वन-भाग में आने वाला हैं, जहाँ उनका विकास, सुरक्षा एवं समृद्धि होगी किंतु हुआ उनकी आशा के विपरीत। वे धूर्त सियार तथा उनके साथियों के वाग्-जाल में फँस जाती हैं, उन्हें विश्वास हो जाता है कि भेड़िया ही उनका शुभचिंतक तथा रक्षक है, अतः वे पुन भेड़ियों को अपना मत देकर सत्ता में लाती हैं और छली जाती हैं। ऐसी ही स्थिति वर्तमान में साधारण जनता की भी है। चुनावी समय में नेता चिकनी-चुपड़ी बातें करते हुए जनता को छलते हैं और रक्षक की जगह भक्षक बनते हैं। इस कहानी में भेड़िए का चरित्र इसी प्रकार का है। जनता जिनको अपना रक्षक समझती है, वे ही उनके भक्षक बन जाते हैं।

भेड़िए

भेड़िए स्वार्थी एवं पाखंडी नेताओं के प्रतीक हैं| चुनाव निकट आने के कारण वे अपने आपको संत, महापुरुष तथा परोपकारी बनने का नाटक करते हैं । वे चुनाव-प्रचार में मिथ्या वायदे करते हैं। अपने घोषणा-पत्र में जनता को आकृष्ट करने के लिए आदर्श एवं आकर्षक कल्याणकारी योजनाएँ प्रस्तुत करते हैं। कुछ चाटुकार (चापलूस) व्यक्ति जोर-शोर से प्रचार करते हैं, फलतः चुनाव में विजयी घोषित होते हैं। सत्ता-आसीन होने के पश्चात नियम-कानून स्वयं के हित के लिए ही बनाते हैं और भोली-भाली जनता का शोषण करते हैं।


सियार

सियार नेताओं के निकट मँडराने वाले चापलूस व्यक्तियों के प्रतीक हैं। ये नेताओं के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं, उन्हीं के टुकड़ों पर पलते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। जनता के मध्य उम्मीदवार नेताओं का असत्य प्रचार करते हैं। बूढ़ा सियार राजनीति के दांव-पेंच जानने वाला अनुभवी व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। ये जनता की मुख्य समस्याओं से भली-भाँति परिचित रहते हैं। उन्हें ही चुनाव के समय मुख्य मुद्दा बनाकर झूठे वायदे करते हैं। आज भी चुनाव के समय पानी. बिजली, आवास, रोटी, शिक्षा, व्यवसाय आदि मुख्य समस्याओं को दूर करने पर बल दिया जाता है। किंतु सुपरिणाम बहुत कम ही आते हैं। अंततः जनता ही छली जाती है।

अवतरण संबंधित प्रश्न उत्तर

1.” एक बार एक वन के पशुओं को ऐसा लगा कि वे सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन व्यवस्था अपनानी चाहिए और एकमत से यह तय हो गया कि वन प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना हो । “

i) पशु समाज में हर्ष की लहर क्यों दौड़ गई ?

उत्तर: पशु समाज को लगा कि वन में प्रजातंत्र की स्थापना होने से सुख-समृद्धि और सुरक्षा का स्वर्ण युग आएगा।

ii) वन प्रदेश में रहने वाली भेड़ों की क्या विशेषताएँ थीं ?

उत्तर: वन प्रदेश में रहने वाली भेड़ें निहायत नेक, ईमानदार, कोमल, विनयी, दयालु तथा निर्दोष पशु थीं।

iii) भेड़ियों ने क्यों सोचा कि अब संकट काल आया ?

उत्तर: भेड़ियों ने सोचा कि वन प्रदेश में भेड़ें और अन्य छोटे पशु नब्बे फीसदी हैं, इसलिए प्रजातंत्र स्थापित होने पर पंचायत में उन्हीं का बहुमत होगा, वे ही राज करेंगी। ऐसी स्थिति में हमें सूखी हड्डियाँ भी चबाने को नहीं मिलेंगी।

iv) ज्यों-ज्यों चुनाव समीप आता तो वन के पशुओं पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर: ज्यों-ज्यों चुनाव समीप आता गया भेड़ों का उल्लास बढ़ता गया और भेड़ियों का दिल बैठता गया।

2. ” दूसरे दिन बड़ा सियार अपने तीन सियारों को लेकर आया उनमे से उसने एक को पीले रंग में रंग दिया, दूसरे को नीले में और तीसरे को हरे में | “

i) बूढ़े सियार ने सियारों को क्यों रँगा ?

उत्तर: बूढ़े सियार ने भेड़ों को भेड़िए का प्रचार करने तथा भ्रमित करने के लिए सियारों को रँगा।

ii) बूढ़े सियार ने पीले रंग वाले सियार को बताया ?

उत्तर: बूढ़े सियार ने पीले रंग वाले सियार को विद्वान, विचारक, कवि और लेखक बताया।

iii) नीले रंग वाला सियार किस का प्रतिनिधित्व करता था?

उत्तर: बूढ़े सियार ने नीले रंग के सियार को नेता और स्वर्ग का पत्रकार बताया।

iv) तीसरे रंगे सियार को किसका प्रतीक बनाया गया ?

उत्तर: तीसरा सियार हरे रंग में रँगा गया था, उसे धर्मगुरु का प्रतीक बताया।

3.चुनाव अब पास आता जा रहा है। यहाँ से भागने के सिवा कोई चारा नहीं, पर जाएँ भी कहाँ ?

i) वक्ता और श्रोता कौन हैं ?

उत्तर: वक्ता भेड़िया और श्रोता सियार है।

ii) वक्ता की बात सुनकर श्रोता ने क्या सुझाव दिया ?

उत्तर: वक्ता (भेड़िए) की बात सुनकर श्रोता (सियार) ने सुझाव दिया कि उन्हें सरकस में भरती हो जाना चाहिए।

iii) श्रोता ने उस सुझाव का क्या उत्तर दिया ?

उत्तर: श्रोता (भेड़िए) ने उत्तर दिया कि आजकल सरकस में भी शेर और रीछ को ही लिया जाता है। भेड़िए इतने बदनाम हैं कि सरकार में उन्हें कोई नहीं पूछता

iv) श्रोता के दूसरे सुझाव पर वक्ता ने क्या उत्तर दिया ?

उत्तर: सियार ने दूसरा सुझाव दिया था कि आप अजायब घर में चले जाएँ। इस सुझाव को सुनकर भेड़िए ने कहा कि वहाँ भी जगह नहीं है। सुना है, वहाँ तो आदमी रखे जाने लगे हैं।

4.”मगर इनकी बात मानेगा कौन? ये तो वैसे ही छल-कपट के लिए बदनाम हैं।”

(i) वक्ता और श्रोता कौन हैं ?

उत्तर : वक्ता भेड़िया और श्रोता सियार है।

(ii) श्रोता ने वक्ता की बात सुनकर क्या कहा ?

उत्तर : श्रोता (सियार) ने कहा कि रूप रंग बदल देने से तो सुना है आदमी तक बदल जाते हैं. फिर ये तो सियार हैं।

(iii) बूढ़े सियार ने भेड़िए का रूप किस प्रकार बदला”

उत्तर : बूढ़े सियार ने भेड़िए का रंग-रूप भी बदला। उसके मस्तक पर तिलक लगाया, गले में कंठी पहनाई और मुँह में घास के तिनके खोंस दिए ।

(iv) बूढ़े सियार ने भेड़िए से किन तीन बातों का ध्यान रखने को कहा ?

उत्तर : बूढ़े सियार ने भेड़िए को जिन तीन बातों का ध्यान रखने को कहा, वे हैं- अपनी हिंसक आँखों को ऊपर मत उठाना, हमेशा ज़मीन की ओर देखना और कुछ बोलना मत।

प्रश्न – उत्तर

(i) बूढ़े सियार ने पीले, नीले और हरे रंग के सियारों के बारे ही जाति के में क्या कहा ?

उत्तर : बूढ़े सियार ने तीनों रँगे सियारों के संबंध में कहा कि ये इस लोक के जीव नहीं हैं। ये स्वर्ग के देवता हैं जो हमें सदुपदेश देने के लिए जमीन पर उतरे हैं। पीले रंग वाले विचारक, कवि और लेखक हैं, नीले-नेता और स्वर्ग के पत्रकार हैं और हरे रंग वाले धर्मगुरु हैं।

(ii) कवि राज ने किस प्रकार का स्वर्ग-संगीत सुनाया ?

उत्तर : कविराज बना पीला सियार हुआँ हुआँ चिल्ला दिया। शेष सियार भी हुआँ हुआँ बोल पड़े।

(iii) नीले रंग के सियार ने भेड़िए के समर्थन में क्या कहा ?

उत्तर : नीले रंग के सियार ने भेड़िए के समर्थन में कहा कि निर्बलों की रक्षा बलवान ही कर सकते हैं। भेड़ें कोमल हैं, निर्बल हैं, इसलिए अपनी रक्षा नहीं कर सकतीं। भेड़िए भी भेड़ों के भाई हैं। दोनों एक ही जाति के हैं। भेड़िए व्यर्थ में ही बदनाम किए गए हैं। इसलिए उन्हें चुनकर पंचायत में भेजो।

(iv) हरे रंग के धर्मगुरु ने क्या उपदेश दिया ?

उत्तर : हरे रंग के धर्मगुरु ने कहा कि जो यहाँ त्याग करेगा, वह उस लोक में भी पाएगा, जो यहाँ दुख भोगेगा, वह वहाँ सुख पाएगा, जो यहाँ राजा बनाएगा, वह वहाँ राजा बनेगा, जो यहाँ वोट देगा, वह वहाँ वोट पाएगा, इसलिए सब भेड़िए को वोट दो।

कहानी के मुख्य बिंदु

  • एक बार वन के पशुओं ने तय किया कि वन प्रदेश में भी प्रजातंत्र की स्थापना होनी चाहिए।
  • पशु-समाज में हर्ष की लहर दौड़ गई।
  • भेड़ों ने सोचा कि अब पंचायत में उनका बहुमत होगा, क्योंकि उनकी संख्या अधिक है। अब उनका भय दूर हो जाएगा।
  • भेड़ियों को लगा कि उनका संकट काल आने वाला है।
  • एक बूढ़े सियार द्वारा भेड़िए से उसकी उदासी का कारण पूछने पर उसने अपनी चिंता बताई और कहा कि अब यहाँ से भागने के सिवाय कोई चारा नहीं है।
  • बूढ़े सियार ने उसे सरकस या अजायबघर में जाने की सलाह दी।
  • भेड़िया बोला, ” सरकस में शेर और रीछ को लेते हैं और अजायबघर में जगह नहीं है। सुना है वहाँ तो आदमी रखे जाते हैं।”
  • बूढ़े सियार ने कहा कि यदि आप मेरे कहे अनुसार कार्य करें तो पंचायत में आपका बहुमत हो सकता है। भेड़िये ने हामी भर ली।
  • अगले दिन बूढ़ा सियार तीन सियारों को लेकर आया जो रँगे हुए थे- एक पीले, दूसरा नीले तथा तीसरा हरे रंग में।
  • उसने बताया कि ये तीनों रँगे सियार आपका प्रचार करेंगे।
  • बूढ़े सियार ने भेड़िए का रूप भी बदला- मस्तक पर तिलक लगाया, गले में कंठी पहनाई और मुँह में घास के तिनके खोंसकर उसे संत का रूप दे दिया।
  • सियार ने भेड़िए से तीन बातों का ध्यान रखने को कहा- अपनी हिंसक आँखों को ऊपर मत उठाना, हमेशा जमीन की ओर देखना और कुछ मत बोलना।
  • बूढ़े सियार ने रँगे सियारों का परिचय दिया – पीला सियार विचारक, कवि और लेखक है; नीला सियार नेता और पत्रकार तथा हरा सियार धर्मगुरु ।
  • बूढ़ा सियार तीनों सियारों और भेड़िए को लेकर चल दिया।