महाभारत की एक साँझ (Summary)

प्रस्तुत एकांकी में भारत भूषण जी ने एक पौराणिक विषय वस्तु को सर्वथा नए ढंग से प्रस्तुत किया है। एकांकी में दिखाया गया है कि महाभारत के युद्ध के लिए दुर्योधन का हठ ही जिम्मेदार नहीं था बल्कि पांडवों की महत्वकांक्षा भी समान रूप से उत्तरदायी थी। महाभारत के युद्ध के अंत में जब दुर्योधन की समस्त सेना का विनाश हो गया, तो दुर्योधन द्वैतवन के जल स्तंभ में छिप गया। एक अहेरी द्वारा सूचना पाकर पांडव भी वहाँ पहुँचे तथा सरोवर के तट पर खड़े होकर दुर्योधन को ललकारने लगे। पहले तो दुर्योधन ने उनकी ललकार पर ध्यान नहीं दिया, पर बार-बार ललकारे जाने पर दुर्योधन द्वैतवन के जलाशय से बाहर आ गया और बोला कि उसे युद्ध से विरक्ति हो गई है, अतः अब वह युद्ध नहीं करना चाहता। आप चैन से राज्य का आनंद लें, परंतु पांडव दुर्योधन को जीवित नहीं छोड़ना चाहते थे इसलिए बोले कि वे निहत्थे दुर्योधन को मार कर पाप के भागी नहीं बनेंगे। इसलिए तुम जो चाहो हथियार ले लो और हममें से किसी एक से युद्ध करो। यदि तुम जीत गए, तो सारा राज्य तुम्हारा होगा। दुर्योधन ने एक गदा की माँग की तथा भीमसेन और दुर्योधन में भंयकर गदा-युद्ध छिड़ गया। ऐसा प्रतीत होता था कि इस युद्ध में की ही जीत होगी, पर तभी श्रीकृष्ण वहाँ आ गए और उन्होंने भीमसेन को दुर्योधन की जंघा पर प्रहार करने का संकेत किया। जंघा पर किए गए। इस प्रहार से दुर्योधन चीखकर, आहत होकर गिर पड़ा और पांडव खुशी मनाते हुए चले गए। संध्या के समय अकेले युधिष्ठिर दुर्योधन के पास आए तथा उससे बातें करने लगे। बातचीत के दौरान युधिष्ठिर ने दुर्योधन को युद्ध के लिए जिम्मेदार बताया तथा कहा कि मैं तो तुम्हें शांति देने आया था, हो सकता है तुम्हें पश्चाताप हो रहा हो। दुर्योधन ने उत्तर दिया कि पश्चाताप मुझे नहीं तुम्हें होना चाहिए, क्योंकि मैंने अपने मन के भावों को गुप्त नहीं रखा, तुम्हारी तरह षड्यंत्र नहीं किया। तुम्हीं ने अपने गुरुजनों और सगे-संबंधियों का रक्त बहाया। युधिष्ठिर ने न्याय की दुहाई दी, पर दुर्योधन ने कहा जिस राज्य की बात वे कर रहे हैं वह मेरे पिता का था। फिर तुम्हारा उस पर अधिकार कैसे हुआ ? जब युधिष्ठिर ने अभिमन्यु को अन्यायपूर्वक मारने की बात कहीं, तो दुर्योधन ने उत्तर दिया कि क्या भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण आदि का वध न्यायोचित था ? इसी प्रकार द्रौपदी के अपमान का आरोप लगाए जाने पर दुर्योधन ने कहा कि तुम्हीं ने द्रौपदी को जुए में दाँव पर लगाकर उसका अपमान किया था। जुए में हार जाने के बाद वह भरी सभा में एक दासी के रूप में आयी, द्रौपदी के रूप में नहीं। दुर्योधन ने कहा कि इस युद्ध के लिए केवल तुम्हारी महत्त्वाकांक्षा जिम्मेदार थी मैं नहीं। इस प्रकार के संवाद के बाद दुर्योधन का प्राणांत हो गया।

एकांकी का उद्देश्य / संदेश

भारतभूषण द्वारा रचित एकांकी ‘महाभारत की एक साँझ’ में नाटककार ने संवादों द्वारा सम्पूर्ण महाभारत का जो सार प्रस्तुत किया है वह सराहनीय है। वैसे तो सम्पूर्ण महाभारत मानव जीवन को यह महत्वपूर्ण संदेश देती है कि परिवार में कभी भी घर या सम्पत्ति को लेकर कुल में अथवा भाइयों में वैमनस्य, ईर्ष्या अथवा द्वेष भाव नहीं होना चाहिए। धन अथवा सम्पत्ति को लेकर एक दूसरे में त्याग की भावना होनी चाहिए। त्याग और सहनशीलता का अभाव ही महाभारत के युद्ध का कारण है। ‘महाभारत की एक साँझ’ का उद्देश्य यही है कि कितनी ही क्रूरता, कूटनीतिज्ञता और निर्दयता के साथ अपने भाइयों के साथ युद्ध किया जाय, अंत में जिसने कूटनीतिज्ञता एवं क्रूरता के द्वारा भाइयों से युद्ध किया है उसी का अंत पहले होता है ।

शीर्षक की सार्थकता

‘महाभारत की एक साँझ’ एकांकी का शीर्षक अत्यंत सटीक है। एकांकी में महाभारत के युद्ध की समाप्ति पर घटी एक अंतिम घटना को साँझ कहकर संबोधित किया गया है। जिस प्रकार किसी दिवस का अंत उसकी साँझ से होता है, उसी प्रकार महाभारत के युद्ध का समापन दुर्योधन की पराजय एवं उसकी मृत्यु से हुआ। इसी घटना को ‘महाभारत की एक साँझ’ कहा गया है।

चरित्र चित्रण

युधिष्ठिर

युधिष्ठिर एकांकी का प्रमुख पात्र है। वह धर्मपारायण, विनम्र, राजनीति में कुशल, कुशल वक्ता तथा व्यवहार कुशल है। वह पांडव परिवार का ज्येष्ठ पुत्र है। उसकी समस्त बातें एवं तर्क नीतिगत होते हैं। वह निहत्थे दुर्योधन पर प्रहार नहीं करता अपितु उसे अकेले शस्त्र के साथ किसी एक पांडव के साथ युद्ध करने की चुनौती देता है। घायल एवं मरणासन्न दुर्योधन को सांत्वना देता है। उसका व्यवहार शांत एवं विनम्र है। वह अपने भाइयों से बहुत प्रेम करता है|

दुर्योधन

दुर्योधन कुरुवंशी है। वह राजा धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था। महाभारत का युद्ध दुर्योधन के हठ एवं अहंकार के कारण हुआ। धृतराष्ट्र दुर्योधन से अत्यधिक प्रेम करता था, इसीलिए उसने दुर्योधन की किसी बात में दखल नहीं दिया। दुर्योधन छल, बल, अधर्म तथा अनेक प्रकार के षड्यंत्रों द्वारा राज्य प्राप्त करना चाहता था। वह निर्दय था। उसने द्रौपदी का चीरहरण किया तथा वनवास में भी पांडवों को चैन से नहीं जीने दिया। एकांकी के अंत में वह एक तालाब में जाकर छिप जाता है, परंतु पांडवों द्वारा ललकारे जाने पर भीम द्वारा गदा युद्ध में परास्त कर दिया गया और उसका प्राणांत हो गया। यद्यपि उसने स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने के लिए अनेक प्रकार के तर्क दिए। परंतु उनमें सत्यता का अभाव था।